विरासत शिक्षा पर जोर देने की जरूरत : सिसोदिया
'दिल्ली का नागरिक होने के नाते मैं अपने शहर और देश के समृद्घ वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत के बारे में सोचने के लिए मजबूर हूं, लेकिन मेरा मानना है कि इस विरासत और संस्कृति को संरक्षित रखना मात्र काफी;
नई दिल्ली। 'दिल्ली का नागरिक होने के नाते मैं अपने शहर और देश के समृद्घ वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत के बारे में सोचने के लिए मजबूर हूं, लेकिन मेरा मानना है कि इस विरासत और संस्कृति को संरक्षित रखना मात्र काफी नहीं है। जैसे इन विरासतों को लोकतांत्रिक तरीके से संरक्षित, सुरक्षित कैसे रखें इस चुनौती से जूझ रहे हैं।
वहीं, विरासत के संरक्षण के साथ साथ यह विरासत भविष्य को संवारने में क्या योगदान कर सकता है इस पर विचार होना चाहिए।Ó दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने यह विचार राजधानी में आयोजित इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मोन्यूमेंट्स एंड साइट्स की सभा में व्यक्त किए।
उन्होने देश-विदेश के विरासत प्रेमियों के बीच कहा कि क्या हम इन स्मारकों को सिर्फ पर्यटकों के सेल्फी प्वाइंट के तौर पर संरक्षित कर रहे हैं अथवा उनकी वास्तुशिल्पीय अहमियत को देखते हुए संरक्षित कर रहे हैं। उन्होने सवाल पूछा कि क्या हमारी विरासतें सिर्फ इतिहास का हिस्सा मात्र हैं, लेकिन यदि हम अपनी विरासत को सदैव सजीव रखना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसे विकसित किया जाए और इस प्रक्रिया में मौजूदा पीढ़ी, जहां इसका हिस्सा बने और भविष्य में समाज को लाभ मिल सके।
हमें ऐसे रास्ते खोजने होंगे, जहां आर्ट, कल्चर, हेरिटेज व शिक्षा को ऐसे बढ़ाना होगा, जिससे लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
सिसोदिया ने कहा कि यदि हम किताबों को देखें तो स्मारक के फोटो और उसके साथ ही उसके बारे में सूचना देते हुए शब्दों का एक कैप्शन लिखा होता है। स्मारक जब बना उसके बारे में अनूठे तरीके से जानकारी देनी चाहिए साथ ही विरासत पर शिक्षित करना चाहिए।
ताकि अगली पीढ़ी को विरासत शिक्षा व इतिहास के साथ रोचक तरीके से रूबरू करवाया जा सके। उन्होंने बताया किइस बाबत लक्ष्य निर्धारित कर दिल्ली सरकार, आर्ट कल्चर, हेरिटेज और लोकतंत्र पर इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन करेगी। यह आयोजन अगले वर्ष 2018 में किया जाएगा।