फिल्म रिव्यु - खानदानी शफाखाना और फास्ट एंड फ्यूरियस - हॉब्स एंड शॉ

यह सप्ताह तीन फिल्में लेकर आया जिसमें दो बॉलीवुड और एक हॉलीवुड की फिल्म है, पहली फिल्म निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता की 'खानदानी;

Update: 2019-08-02 18:20 GMT

यह सप्ताह तीन फिल्में लेकर आया जिसमें दो बॉलीवुड और एक हॉलीवुड की फिल्म है, पहली फिल्म निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता की 'खानदानी शफाखाना' जिसमें सोनाक्षी सिन्हा, बादशाह, वरुण शर्मा, प्रियांश जोरा, अन्नू कपूर, नादिरा बब्बर और कुलभूषण खरबंदा जैसे कलाकार है यह फिल्म पूरी तरह ड्रामा और कॉमेडी से भरी पड़ी है, दूसरी फिल्म निर्देशक प्रशांत सिंह की 'जबरिया जोड़ी' जिसमें परिणीति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, संजय मिश्रा, जावेद जाफरी और अपारशक्ति खुराना है, यह एक एक्शन, रोमांटिक, कॉमेडी फिल्म है जो बिहार की पृष्ठ भूमि पर बनी है जहाँ पर विवाह के लिए लड़के को किडनैप किया जाता है और उसकी शादी जबरदस्ती करा दी जाती है इसी में बंधे परिणीति और सिद्धार्थ किस तरह जीवन जीते है यह इस फिल्म की छोटी सी स्टोरी लाइन है।  इसी के साथ रिलीज़ हुई 'फास्ट एंड फ्यूरियस - हॉब्स एंड शॉ' जिसके निर्देशक है डेविड लीच।

                                    

फिल्म रिव्यु - खानदानी शफाखाना  

आजकल फिल्मों का ट्रेंड कुछ डिफ्रेंट हो चुका है जिसमें दर्शकों के मनोरंजन के लिए नए नए एक्सपेरिमेंट किये जा रहे है या यूँ कहे की आम ज़िन्दगी की छोटी छोटी चीज़ो को कॉमेडी पंच के साथ परोसा जा रहा है, इसीलिए निर्देशक शिल्पी दासगुप्ता ने एक ऐसे सब्जेक्ट को चुना जिसके बारे में लोग बात करते हुए भी घबराते है और जो बात करता है उसको हेय दृष्टि से देखते है और वो सब्जेक्ट है सेक्स, इसीलिए उन्होंने फिल्म के नाम के साथ एक टैगलाइन भी दी है की 'बात तो करो'। 

कहानी - एक छोटे से शहर होशियारपुर में बॉबी बेदी यानि सोनाक्षी सिन्हा जो मेडिकल की छात्रा है और अपनी हर बात को रखने में सक्षम है रहती है, उसके घर में माँ नादिरा बब्बर और छोटा भाई भूषित बेदी यानि वरुण शर्मा है जो कुछ काम नहीं करता और उसने अपनी ज़रूरतों की ज़िम्मेदारी भी माँ और बहन पर डाल रखी है, वही उसके चाचा पुश्तैनी जमीन को हड़पने के लिए लगे हुए है क्योकि बॉबी के पापा ने उनसे अपनी बड़ी बेटी की शादी के लिए अच्छी खासी मोटी रकम ले रखी थी। उधर बॉबी के मामा कुलभूषण खरबंदा एक खानदानी शफाखाना चलाते है और यह उनका पुश्तैनी काम है। परिस्थिति तब बदलती है जब मामा अपनी सारी जायदाद और शफाखाना बॉबी के नाम कर जाते है पर यह प्रॉपर्टी उसे तभी मिलेगी जब वह इस शफाखाना को छः महीने तक सफलतापूर्वक चलाए। अपने घर का क़र्ज़ चुकाने के लिए वो इसे स्वीकार करती है लेकिन जैसा की भारतीय समाज में होता है लोग उसे घृणा की दृष्टि से देखना शुरू कर देते है और बड़े बुज़ुर्ग इसका विरोध करते है क्योकि उनको हज़म नहीं होता की एक छोटे शहर की लड़की सेक्स और गुप्त रोगों के बारे में खुलकर बातें करे। इन सबमें उसका साथ देता है प्रियांश जोरा जो उसे दिल ही दिल चाहता है। 

निर्देशन - शिल्पी दासगुप्ता का निर्देशन बहुत बढ़िया है और उन्होंने इस बोल्ड सब्जेक्ट को चुनकर एक खलबली सी मचा दी है। फिल्म में उन्होंने भावनात्मक होने के साथ साथ कॉमेडी को भी ज्यादा स्थान दिया है, दो घंटे और पेंतीस मिनट की इस फिल्म को छोटा किया जा सकता था क्योकि कुछ सीन ज्यादा लम्बे और सुस्त नज़र आते है। लेकिन छोटे शहरों की मानसिकता को उन्होंने बखूबी दिखाया है। 

म्यूजिक - फिल्म का 'कोका कोका' गीत इन दिनों काफी पसंद किया जा रहा है। 

एक्टिंग - सोनाक्षी सिन्हा इस किरदार के लिए बिल्कुल परफेक्ट नज़र आती है क्योकि इस सब्जेक्ट  के बारे में बात करते हुए उनके चेहरे पर मासूमियत और घबराहट दोनों नज़र आती है। हीरो प्रियांश ज़ोरा का किरदार ज्यादा लम्बा नहीं है लेकिन वो अपने किरदार को निभा गए है, वरुण शर्मा अपने पुराने स्टाइल में नज़र आये है वही नादिरा बब्बर को भी पर्दे पर देखकर अच्छा लगता है तो बादशाह फिल्म में बादशाह ही बने है। 

फिल्म की खास बात - एक बोल्ड फिल्म को हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ दिखाया गया है और जो लोग सब्जेक्टिकल मूवी देखना चाहते है उनके लिए यह फिल्म बनी है। नाम के अनुसार अगर कोई फिल्म देखने जाना चाहता है तो उसे निराशा ही मिलेगी। 

                                     

 

फिल्म रिव्यु -   फास्ट एंड फ्यूरियस - हॉब्स एंड शॉ

हॉलीवुड ने भारतीय लोगों की नब्ज़ पकड़ ली है और वो है एक्शन थ्रिलर, जो उनको हिंदी सिनेमा में कमतर ही देखने को मिलते है, हॉलीवुड के डायरेक्टर्स को भी पता चल गया है की भारत में इस तरह की फिल्मों से अच्छा बिज़नेस किया जा सकता है इसीलिए एवेंजर्स और फ़ास्ट एंड फ्यूरियस जैसी फिल्मों को देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों पर टूट पड़ते है। इस सप्ताह रिलीज़ फिल्म 'फास्ट एंड फ्यूरियस - हॉब्स एंड शॉ' के साथ भी ऐसा ही हुआ। 

कहानी - कहानी की शुरुआत हेटी शॉ यानि वैनेसा किर्बी से होती है, जो दुनिया को बचाने के लिए खुद में एक हानिकारक वायरस का इंजेक्शन लगा लेती है | ब्रिक्सटन यानि इदरीस एल्बा एक सुपर ह्यूमन है और बुरे लोगों का साथ देता है | ब्रिक्सटन, हेटी शॉ का वायरस पाना चाहता है। हॉब्स यानि ड्वेन जॉनसन और शॉ यानि जेसन स्टैथम हमेशा से ही एक दूसरे के दुश्मन रहे है लेकिन जब इस खतरे के बारे में उन्हें पता चलता है तो वो न चाहते हुए भी मिलकर दुश्मनो का खात्मा करते है और मानवता की रक्षा करते है । 

निर्देशन - निर्देशक डेविड लीच ने इससे पहले ‘डेडपूल 2’ फिल्म का निर्देशन किया था, उन्होंने 'फास्ट एंड फ्यूरियस - हॉब्स एंड शॉ'  को दर्शकों के सामने बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया है, शुरुआत से लेकर अंत तक फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है | फिल्म के एक्शन को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है और ग्राफिक्स का भी उन्होंने खूब अच्छे से इस्तमाल किया है। फिल्म में कॉमेडी और एक्शन दोनों ही जबरदस्त है।  

एक्टिंग - वहीं अभिनय की बात की जाए तो ड्वेन जॉनसन और जेसन स्टैथम का एक्शन सीन जबरदस्त है और साथ में कॉमेडी टाइमिंग भी। वैनेसा किर्बी के सभी एक्शन सीन पर दर्शक ताली  बजाने से नहीं चूकते। वहीं सुपर ह्यूमन के रूप में इदरीस एल्बा भी एक अच्छे विलेन लगे है। 

फिल्म की खास बात - जो दर्शक एक्शन थ्रिलर फिल्में देखना पसंद करते है उन्हें यह फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए। जिन दर्शकों ने फ़ास्ट एंड फ्यूरियस की पिछली कड़ी नहीं देखी है वह भी इस फिल्म को देख सकते है क्योकि इसका पिछली कड़ियों से कोई कनेक्शन नहीं है।

कुल मिलाकर - बिज़नेस के बारे में देखा जाए तो बॉलीवुड की फिल्मों से ज्यादा कमाई फ़ास्ट एंड फ्यूरियस को दर्शक ज्यादा मिले। 

 

                           

 

फिल्म समीक्षक 

सुनील पाराशर 

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