मेयर की कुर्सी को आरक्षण ने दिया झटका
सरकार की एक अधिसूचना ने शहर के मेयर की कुर्सी पर ताजपोशी का सपना देख रहे नेताओं को झटका दे दिया है;
गजियाबाद। सरकार की एक अधिसूचना ने शहर के मेयर की कुर्सी पर ताजपोशी का सपना देख रहे नेताओं को झटका दे दिया है। यह सीट महिला के लिए आरक्षित कर दी गई है। इसके साथ ही कुछ नेता अब इस कुर्सी के लिए अपनी अपनी बीवियों के सहारे पर आ टिके है। आलम यह है कि भाजपा समेत अधिकतर राजनीतिक दलों में सक्रिय महिला नेताओं का टोटा है। सबसे पहले सत्तारूढ़ दल भाजपा को ही लीजिए। ले देकर दो चार महिला नेताओं के सहारे ही सह संगठन आधी आबादी ध्यान रख रही है।
भाजपा में निर्वतमान मेयर अशु वर्मा, दिनेश गोयल, ललित जायसवाल, मयंक गोयल, प्रशान्त गूर्जर और अशोक मोंगा जैसे नेताओं ने आरक्षण चार्ट जारी होते ही अपनी-अपनी पत्नियों के फोटो के साथ दिपावली की शुभकामनाओं के पोस्टर तैयार कराने का ऑर्डर दे दिया है। कांग्रेस में पूर्व सांसद सुरेन्द्र प्रकाश गोयल अपनी पुत्र वधू को चुनाव लड़ा सकते है। इसके अलावा विजय चौधरी, सुनील चौधरी भी पत्नी के सहारे इस सीट को लेकर जंग लड़ सकते है। वरिष्ठ कांगेस नेता सुभाष शर्मा भी हाईकमान का इशारा मिलते ही चुनाव मैदान में अपनी पत्नी पूनम शर्मा को उतार सकते है।
भाजपा में आशा शर्मा और सुनीता दयाल पर ही लोगों की निगाह टिकी हुई है। बुजुर्ग हो चली लज्जा रानी गर्ग के अलावा विमला रावत, उर्मिला मुदगल, सुनीता नागपाल, पूनम कौशिक, अर्चना सिंह, कौशल शर्मा और मीना भंडारी भी भाजपा के प्रोग्राम्स में दिखाई पड़ती है। सुनीता दयाल विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं। कांग्रेस में पूजा चड्ढ़ा, पूजा मल्होत्रा, माया देवी के अलावा किसी की सक्रियता नहीं है। बेशक बसपा की सुप्रीमों महिला हो लेकिन गाजियाबाद में एक भी स्वैच्छिक महिला नेता नहीं है। पतियों के सहारे जरूर कुछ महिला नेताओं को चुनाव में उतारा जाता है।
इसके बावजूद विभा रावत जो कि फिलहाल बसपा नेता सुधन रावत की पत्नी, कुछ हद तक स्वैच्छिक महिला नेता है। वे कही न कही सक्रिय भी रहती हैं। सपा में कई पुरानी महिला नेत्री है। इन्हें संघर्ष के नाम पर भी जाना जाता है। प्रमुख रूप से मधु चौधरी, राजदेवी चौधरी, रितू खन्ना, रश्मि चौधरी, नीलम श्रीवास्तव, पुष्पा शर्मा जैसी महिला मेयर के टिकट के लिए प्रबल दावेदार मौजूद है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख पार्टी आरएलडी में महिला नेत्री के नाम पर सूखा पड़ा हुआ है।
कभी रेखा चौधरी का नाम जरूर सुना जाता था लेकिन अब आरएलडी नेताओं की पत्नियों का भी एकाएक इतना दबदबा कैसे हो पाएगा, जब उनके पतियों की साख ही दाव पर है। आम आदमी पार्टी भी इस चुनाव में बड़ा फैक्टर होगा। इनके पास कोई नामचीन महिला उम्मीदवार तो नहीं है लेकिन पिछले कुछ महीनों से शालू त्यागी आम आदमी पार्टी की टोपी लगाकर गली-मौहल्लों में घूम रही है। महिला सीट होने के बाद निजी स्कूलों के खिलाफ जंग लड रहे अभिभावक भी किसी न किसी महिला उम्मीदवार को समर्थन देने का मन बना रहे है।