मौरीकला-पटेवा में संपन्नता के चलते लॉकडाऊन की परवाह नहीं
जमीन के नीचे भरपूर पानी व इससे हुई समृद्ध कृषि के कारण आई संपन्नता किस प्रकार बेफिक्र जीवन शैली की राह प्रशस्त करती है;
- डॉ. दीपक पाचपोर व एसआर घाटगे
रायपुर। जमीन के नीचे भरपूर पानी व इससे हुई समृद्ध कृषि के कारण आई संपन्नता किस प्रकार बेफिक्र जीवन शैली की राह प्रशस्त करती है, यह देखने को मिला लॉकडाऊन में ग्रामीण जीवन के दर्शन करने निकले इन संवाददातों को मौरीकला और पटेवा गांवों में। यहां न लॉकडाऊन लंबा खींचे जाने की आशंका का कोई तनाव है और न ही कोरोना वायरस को लेकर कोई भय। इन गांवों की पंचायतों के ही कारण जो कुछ कदम उटाये जा रहे हैं, बस उनका ही हल्का-फुल्का असर दीखलाई पड़ता है।
कोरोना संक्रमण के कारण लागू किये गये लॉकडाऊन का असर ग्रामीण इलाके में परखने के दौरान पहुंचे मौरीकला और पटेवा दोनों ही गांवों में ऊपरी तौर पर तो यही दिखा कि कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता तो है, परंतु क्रियान्वयन के स्तर पर जैसा होना चाहिये, वैसा बहुत कुछ नज़र नहीं आया। दोनों ही गांवों को अभी कोरोना से बचाव के लिए काफी कुछ करने की ज़रूरत है। दोनों ही ग्रामों की बसाहट कुछ इस प्रकार है कि वहां खुलापन न होकर सटे हुए मकान और तंग गलियां हैं। दोनों गांवों के लोगों को अधिक सावधान रहने की आवश्यकता प्रतीत हुई। सफाई के मामले में भी दोनों गांवों को काफी काम करना होगा।
मौरीकला और पटेवा के बीच अनेक समानताएं हैं। मसलन, दोनों संपन्न ग्राम हैं। मौरीकला धमतरी जिले का हिस्सा होने के कारण शेष जिले की ही तरह पानी व उसके कारण धान की बहुतायत वाला गांव है। यहां एक तरह से बेफिक्री है। उन्हें लॉकडाऊन की बहुत चिंता इसलिये नहीं है क्योंकि ज्यादातर लोगों को यहीं काम करना है। वे ज्यादा बाहर नहीं जाते, न दूसरे गांवों-शहरों में काम के लिये गये हैं। बहुत ही थोड़े लोग काम के सिलसिले में बाहर गये हुए हैं।
दोनों गांवों की सरपंच महिलाएं हैं। ये दोनों कृषि पर आधारित गांव हैं। इन गांवों के आसपास दो फसलें लेने का चलन है, जिसके कारण यहां गर्मी में भी चारों ओर हरे-भरे खेत दिखाई देते हैं। हालांकि पटेवा में गेहूं, चना, तिंवरा आदि भी उगाया जाता है। परंतु यहां पेयजल की कमी है। दूसरी तरफ, र्मौरीकला कुरूद से लगभग 15 और रायपुर से 50 किमी दूर बसा है।
केवल एक किमी दूर बने कठौली में उप स्वास्थ्य केंद्र है और मिडिल स्कूल तक पढ़ाई का इंतजाम भी। डिनेश्वरी साहू, अनुसूईया साहू व गायत्री नगारची यहां की तीन मितानिनें हैं जिनके माध्यम से कोरोना से बचाव के लिये लोगों को जागरूक किया जा रहा है। यहां लगभग सारे स्थानीय नागरिक हैं, केवल एक परिवार कुछ समय पहले यहां आकर बसा है जो बिहार से संबंध रखता है। गांव वाले उसे लेकर इसलिये निश्चिंत हैं क्योंकि जब से वह परिवार यहां रहने आया है, कहीं भी नहीं गया है। उस परिवार का पंक्चर बनाने का काम है।
इस गांव में 30 मार्च को ही गांव वालों को दो माह का राशन दे दिया गया है, जिसके कारण अब वहां सस्ते राशन की दूकान में भीड़ होने का कोई कारण नहीं रह गया है। यहां दो आंगनबाड़ियां हैं जिनमें क्रमशः 19 और 24 बच्चे हैं। उनके परिवारों को बच्चों के लिए निर्धारित मध्यान्ह भोजन की बराबरी का सूखा राशन एक-एक सहायिका व कार्यकर्ता के माध्यम से दे दिया गया है।
20 वार्डों वाली ग्राम पंचायत के गांव पटेवा का आर्थिक आधार भी कृषि ही है। अभनपुर विकासखंड के अंतर्गत इस गांव का ज्यादा संबंध नयापारा से है। हालांकि यहां के काफी लोग बाहर भी काम करने जाते हैं। यहां गांव के बीचों-बीच टिन के पतरों की ऊंची छत डालकर सामूहिक कार्यों के लिये जगह बना दी गयी है। साप्ताहिक बाजार तो यहां भरता ही है, कई सार्वजनिक कार्यक्रम भी यहीं होते हैं। कोरनाबंदी के कारण इस साल नवरात्रि का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है। वैसे यहां कोरोना के प्रति जागरूकता के कुछ ऐसे उदाहरण मिले कि शक के आधार पर जांच के लिए कुछ लोगों को भेजा गया था। मितानिनें हर दूसरे दिन सभी घरों में जाकर लोगों की तबियत की जानकारी ले रही है और उन्हें सावधान रहने की ताकीद दे रही है।
यहां लोगों को दो माह का राशन वितरित किया जा चुका है। आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए भी नियमानुसार राशन दिया जा चुका है। इतना ही नहीं, निराश्रितों को पांच-पांच किलो मुफ्त राशन प्रदान किया गया है ताकि उन्हें दिक्कत न आए।
पटेवा के किसान चना, गेहूं, तिंवरा आदि भी लगाते हैं। इस साल बेमौसम की बारिश के कारण उनकी ये फसलें चौपट हो चुकी हैं। जिन लोगों ने समय रहते धान की दूसरी फसल ली है, वे तो कुछ बच जायेंगे पर बाकियों का नुकसान हो चुका है। नहर सुविधा के कारण यहां कृषि के लिये तो पानी की समस्या नहीं है परंतु पेय जल का अभाव है। गर्मी बढ़ने पर पीने के पानी की और भी कमी हो जाती है। नयी पानी टंकी के लिये कई बार आवेदन किया गया है, लेकिन प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसे ही, इस गांव में हाईस्कूल की भी ज़रूरत है। बच्चों को, खासकर लड़कियों को पढ़ने के लिए नयापारा तक जाना बहुत मुश्किल भरा हो जाता है। इस दूरी के कारण कई लड़कियां या तो मिडिल के आगे नहीं पढ़तीं अथवा ऊंची कक्षाओं में कुछ दिन पढ़कर छोड़ देती हैं।
बंद का पालन कड़ाई से
हमारे गांव में हर तरह के काम धंधे को पूरी तरह से बंद हैं। यहां तक कि नाई, धोबी आदि की दूकानें भी हमने बंद करा दी हैं। पुलिस की गाड़ी भी गांव में नियमित तौर पर पेट्रोलिंग करती है। हम अपने कोटवार दीपक नगारची के माध्यम से जो भी शासकीय आदेश व सूचनाएं आती हैं, उन्हें तत्काल मुनादी के जरिये लोगों तक पहुंचाते हैं। हमें विश्वास है कि लोग कोरोना के बारे में जान गये हैं और उससे बचने के पूरे उपाय अमल में लाएंगे।
हम सभी को बतला रहे हैं कि वे घरों से बाहर न निकलें एवं बार-बार अपने हाथों को धोते रहें। लोगों से हमने एक-दूसरे से हटकर रहने तथा समूह न बनाने की अपील की है, जिसका पालन ज्यादातर लोग कर रहे हैं।
- खुशबू यादव
सरपंच, मौरीकला (आबादी 1500)
लोग सावधान हो गये हैं
कोरोना के बारे में अब इतना प्रचार व बातें हो गयी हैं कि ज्यादातर लोग इसके बारे में सब कुछ जान गये हैं। वे सुरक्षा के उपाय भी जानते हैं पर असली बात है उनसे अमल कराना। पंचायत की ओर से पूरी कोशिश की जा रही है कि उन्हें पूरी तरह से जागरूक किया जाये। कोटवार के जरिये बार-बार मुनादी कराई जा रही है। लोगों से वे सारे कदम उठाने के लिये कहा जा रहा है जो कि आवश्यक हैं।
- भेनमति राजू पाल
सरपंच, पटेवा
महिलाएं भी जागरूक हैं
महिलाओं को अधिक सतर्क किया जा रहा है क्योंकि वे घर के लोगों को बेहतर ढंग से समझाईश दे सकती हैं। हम उनसे लगातार आग्रह कर रहे हैं कि इस बीमारी को हल्के में न लें। हमारे गांव की महिलाएं अब काफी जगरूक हो गयी हैं।
- शम्मी पाल
पंच, पटेवा
जांच के लिये भेजा, एक आईसोलेशन में
पटेवा गांव में बाहर से आए कुछ लोगों को जांच के लिये भेजा गया। वैसे दोनों की रिपोर्ट निगेटिव आने से लोगों को राहत हुई है। यहां के कुछ लोग बाहर चले गये थे। उनके लौटने पर पंचायत ने आग्रह कर उन्हें जांच के लिये नयापारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा था। इसी तरह, एक 24 वर्षीय युवक के नागपुर से लौटने की खबर मिलने पर उसे भी जांच के लिये रायपुर भेजा गया था। उसकी भी रिपोर्ट नॉर्मल पायी गयी है पर ऐहतियात के तौर पर उसे आईसोलेशन में रखा गया है। अब उसकी तबियत ठीक बताई जाती है।
लॉकडाऊन में गांव
देश भर में कहर बरपा रहे कोविड-19 यानी कोरोना वायरस से छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं है। फिलहाल हमारे यहां उसकी सघनता चाहे कई अनेक प्रदेशों की तरह न हो जहां इसका प्रकोप बढ़ गया है, पर कुछ पॉजिटिव मामले मिलने से यहां भी उसकी आमद तो हो ही चुकी है। राज्य सरकार, प्रशासन, स्वास्थ्य कर्मी व पुलिस के सम्मिलित प्रयासों से कोरोना के खिलाफ लड़ाई जारी है। अमीरों की लाई लेकिन गरीबों के लिए मुसीबत बन चुके कोरोना का शोर शहर केंद्रित तो है पर उसे लेकर हमारे ग्रामीण इलाकों की स्थिति क्या है, लोग कितने जागरूक हैं और शहरों के मुकाबले हमारा गंवई प्रखंड इस बीमारी से लड़ने में अपनी भूमिका कैसे निभा रहा है, इसकी थाह ली हमारे प्रकाशन ‘हाईवे चैनल’ के सम्पादक विवेक घाटगे और ‘देशबन्धु’ के राजनीतिक सम्पादक डॉ. दीपक पाचपोर ने। रायपुर से बाहर निकलकर कुछ गांवों की उन्होंने लॉकडाऊन में यात्रा कर लोगों से बातचीत की। वहां का हालहवाल लेकर लौटे हमारे सम्पादकद्वय का साझा धारावाहिक रिपोर्ताज- लॉकडाऊन में गांव।
- सम्पादक