पहले भी विरोध झेल चुकी हैं सोनिया गांधी
कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष को लेकर मचे घमासान के बीच वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी की चर्चा तेज हो गई..वहीं चिट्ठी के बारे जब राहुल गांधी के बयानों का जिक्र होने लगा तो ऐसा लगा कि सोनिया गांधी एक बार फिर विरोध का सामना तो नहीं कर रही हैं..वैसे कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी का पहले भी विरोध हो चुका है.. उस वक्त भी सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था;
कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष को लेकर मचे घमासान के बीच वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी की चर्चा तेज हो गई..वहीं चिट्ठी के बारे जब राहुल गांधी के बयानों का जिक्र होने लगा तो ऐसा लगा कि सोनिया गांधी एक बार फिर विरोध का सामना तो नहीं कर रही हैं..वैसे कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी का पहले भी विरोध हो चुका है.. उस वक्त भी सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था. कब और कैसे हुआ था सोनिया गांधी का विरोध..कांग्रेस में इस वक्त हलचल का दौर जारी है..कांग्रेस में अध्यक्ष को लेकर कश्मकश देखने को मिल रही है.लेकिन ये कोई पहली बार नहीं है जब कांग्रेस में ऐसी हलचल देखने को मिली हो..इससे पहले भी कई बार कांग्रेस ऐसी स्थितियों से गुजर चुकी है..कांग्रेस पार्टी इस वक्त मानों अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. करीब 134 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के सामने आज फिर अध्यक्ष पद को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. वैसे ये सवाल पार्टी के सामने डेढ साल से बना हुआ है. कुछ लोग सोनिया गांधी के साथ हैं तो कई सीनियर नेता चाहते हैं कि वह कुर्सी खाली कर दें. पार्टी का अध्यक्ष ऐसे व्यक्ति को बनाया जाए जो जनता के बीच एक्टिव रह सके. वैसे सोनिया गांधी के लिए यह सब अतीत का खुद को दोहराना जैसा है...दरअसल राजनीतिक करियर की शुरुआत करते वक्त सोनिया गांधी ने इससे भी बड़ा विरोध झेला था. लेकिन तब वो न सिर्फ मजबूती से वापस आईं, बल्कि 19 साल तक अध्यक्ष पद पर बरकरार भी रहीं... तो चलिए आपको इतिहास में लेकर चलते हैं..तो यह किस्सा है 1998 का.. दरअसल शुरूआत में सोनिया गांधी ने राजनीति में आने से इनकार कर दिया था.. लेकिन 1997 में नेताओं के खूब मनाने के बाद वो पार्टी में शामिल हो गईं. वो समय ऐसा था जब कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी..फिर सीताराम केसरी के बाद 14 मार्च 1998 को सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया गया. तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की थी, अलग-अलग बंटे धड़ों को एक साथ लाने की थी.. लेकिन सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद संभाले अभी एक ही साल बीता था कि 15 मई 1999 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तीन बड़े नेताओं ने बगावत कर दी. सोनिया गांधी के खिलाफ आवाज उठाने वालों में शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर थे. दरअसल, लोकसभा चुनाव आनेवाले थे. पार्टी का एक धड़ा चाह रहा था कि सोनिया गांधी को आगे करें और उनके चेहरे पर चुनावी मैदान में उतरें.. लेकिन इन तीन नेताओं ने इस बात का विरोध करना शुरू कर दिया और सोनिया गांधी को विदेशी मूल का कहकर पीएम पद का उम्मीदवार बनाने को लेकर विरोध किया. इस विरोध को देखते हुए सोनिया गांधी ने एक पत्र लिखकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस वर्किंग कमिटी को सौंपे गए अपने लेटर में सोनिया गांधी ने लिखा था कि
मैं विदेश में पैदा जरूर हुई, लेकिन मैंने भारत को अपना देश चुना और अपनी आखिरी सांस तक यहीं रहूंगी. भारत मुझे अपनी जान से भी प्यारा है.
सोनिया गांधी का यह पत्र सामने आने के बाद उनके समर्थन में इस्तीफों की जैसे होड़ लग गई. दिग्विजय सिंह, शीला दीक्षित, अशोक गहलोत, गिरिधर गमांग जैसे नेताओं ने भी इस्तीफा दे दिया. फिर क्या था सोनिया को मनाने की कोशिशें तेज हो गई. समर्थक भूख हड़ताल पर बैठ गए और सोनिया से इस्तीफा वापस लेने की मांग करने लगे..और आखिरकार सोनिया गांधी मान गईं... और अब एक बार फिर कांग्रेस में भूचाल आ गया. 23 नेताओँ की चिट्ठी के बाद राहुल की टिप्पणी से पार्टी गुटों में बंटती दिखी. कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने तो इस्तीफे तक की पेशकश करने की बात कही. खैर अब तो मामला शांत होता दिखाई दे रहा है..साथ ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष बने रहने की मांग को भी स्वीकार कर लिया है. लेकिन सवाल यही कि क्या पार्टी नेता अभी भी सोनिया के नेतृत्व को लेकर सहज नहीं है.