वाद-विवाद और विचार विमर्श के बाद बने कानून, जनप्रतिनिधियों को बढ़ानी चाहिए भागीदारी : ओम बिरला
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में पेश किए जाने वाले विधेयकों पर वाद-विवाद और चर्चा पर जोर देते हुए कहा है कि वाद-विवाद और विचार-विमर्श के बाद ही कानून बनने चाहिए;
गुवाहाटी। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में पेश किए जाने वाले विधेयकों पर वाद-विवाद और चर्चा पर जोर देते हुए कहा है कि वाद-विवाद और विचार-विमर्श के बाद ही कानून बनने चाहिए। उन्होंने समाज के आकांक्षी वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रख कर कानून बनाने की वकालत करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि जनप्रतिनिधियों को भी ज्यादा से ज्यादा अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए। उन्होने कहा कि सदन में वाद-विवाद में सक्रिय भागीदारी के माध्यम से विधायक और सांसद न केवल विधेयकों के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं बल्कि साथ ही लोगों के कल्याण और विकास को गति देकर लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखने के चैंपियन बन सकते हैं।
उद्घाटन के बाद पाकिस्तान के हालात को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए बिरला ने कहा कि भारत में सत्ता का सहज हस्तांतरण हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।
सोमवार को असम विधान सभा में 8वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (भारत क्षेत्र) सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए बिरला ने कहा कि, विधायिका की मूल जिम्मेदारी लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि समाज के आकांक्षी वर्गों की जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाए जाएं।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सांसदों को समाज के आकांक्षी वर्गों की भावनाओं को आवाज देनी चाहिए और उनके कल्याण के मुद्दों पर विधायिकाओं के पटल पर बहस करनी चाहिए।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा ज्योतिराव फुले का उल्लेख करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि हमारी नीतियां और कार्यक्रम संविधान के मनिषिओं द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में होने चाहिये। प्रधानमंत्री के शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और अन्य क्षेत्रों पर विचारों और कार्यवाही को इस दिशा में उल्लेखनीय कदम मानते हुए, बिरला ने जन केंद्रित नीति निर्माण के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा सक्रिय भागीदारी और चर्चा का आह्वान किया।
भारत के मजबूत और जीवंत लोकतंत्र का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए एक मार्गदर्शक है, आदर्श है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) दुनिया में लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने और लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम कर रहा है।
सम्मेलन के उद्घाटन के बाद मीडिया से बात करते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र के मामले में भारत मार्गदर्शक की भूमिका में है। पाकिस्तान के हालात को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता का सहज हस्तांतरण हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। भारत में पारदर्शिता के साथ निष्पक्ष चुनाव होते हैं, 90 करोड़ से ज्यादा मतदाता चुनाव में भागीदार होते हैं और जिस राजनीतिक दल को जनादेश मिलता है , उसे सहज रूप से सभी स्वीकार करते हैं।
कार्यक्रम में बोलते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्य भारतीय जीवन शैली के अभिन्न अंग हैं। प्राचीन काल से भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं फल-फूल रही हैं। यह जिक्र करते हुए कि भारत और असम में राजनीति लोकतांत्रिक सिद्धांतों के इर्द-गिर्द घूमती है, सरमा ने कहा कि पिछले आठ दशकों के दौरान असम विधान सभा ने कई ऐतिहासिक बहसें देखी हैं, जिनमे कई महान हस्तियां ने लोकतंत्र के इस मंदिर को सुशोभित किया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आधुनिक लोकतंत्र में जनता अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से बहुत उम्मीद करती है। लोग चाहते हैं कि सांसद उनकी आवाज बनें और उनके जीवन को प्रभावित करने वाले बुनियादी मुद्दों के समाधान के साथ-साथ उनके सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी निभाएं।
कार्यक्रम में बोलते हुए सीपीए के कार्यवाहक अध्यक्ष इयान लिडेल-ग्रिंगर ने कहा कि इस सम्मेलन के विचार विमर्श से निकले निष्कर्ष से राष्ट्रमंडल देशों को अपने सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।
राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, असम विधान सभा के अध्यक्ष बिस्वजीत दैमारी, भारत के राज्यों के विधानसभा अध्यक्ष एवं पीठासीन अधिकारियों के अलावा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी सम्मेलन में मौजूद रहे। सम्मेलन का समापन 12 अप्रैल को होगा।