आवारा कुत्तों के बाद अब कबूतरों पर कार्रवाई, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कबूतरों को दाना डालने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है। कोर्ट ने बीएमसी को फटकार लगाते हुए कहा कि वह मनमाने ढंग से फैसले नहीं बदल सकती;

Update: 2025-08-13 12:53 GMT
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा
  • कोर्ट ने बीएमसी को लगाई फटकार, कहा - वह मनमाने ढंग से फैसले नहीं बदल सकती

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कबूतरों को दाना डालने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है। कोर्ट ने बीएमसी को फटकार लगाते हुए कहा कि वह मनमाने ढंग से फैसले नहीं बदल सकती।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध का आदेश ऐसे समय में दिया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों में आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम भेजने का फैसला सुनाया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर बीएमसी के वकील रामचंद्र आप्टे ने कहा, "कोर्ट ने एक विशेष समिति नियुक्त की है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं की जांच करेगी। समिति अपनी सिफारिशें तैयार करेगी और इन्हें सौंपने के बाद कोर्ट इन सिफारिशों के आधार पर अंतिम फैसला लेगी।"

याचिकाकर्ता के वकील हरीश जे. पांड्या ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर कहा, "कबूतरों को दाना डालने वालों को अस्थायी आधार पर बीएमसी से अनुमति के लिए आवेदन करने की मंजूरी दी गई थी। दो अलग-अलग याचिकाकर्ताओं ने आवेदन जमा किए। समय सीमा नहीं बताई गई है। बीएमसी के वकील ने बताया कि उन्हें एक आवेदन प्राप्त हुआ, लेकिन दूसरा नहीं मिला। उन्होंने अनुरोध किया कि बीएमसी के वकीलों को गुरुवार तक इन आवेदनों की प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं।"

सुनवाई के दौरान बीएमसी ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि वह सुबह 6 से 8 बजे के बीच कुछ शर्तों के साथ कबूतरों को दाना डालने की अनुमति देने को तैयार है। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब पहले सार्वजनिक हित में प्रतिबंध लगाया गया था, तो अब एक व्यक्ति की बात पर फैसला कैसे बदला जा सकता है।

कोर्ट ने बीएमसी को निर्देश दिया कि फैसला बदलने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करें, सार्वजनिक नोटिस जारी करें और सभी हितधारकों, विशेषकर नागरिकों से सुझाव लें।

कोर्ट ने यह भी कहा, "पालिका सीधे फैसला नहीं ले सकती। सार्वजनिक स्वास्थ्य और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों पर विचार करना होगा।"

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