खरीफ फसल खरीद का समर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा: टिकैत

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के साथ धोखा बताते हुए कहा कि सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है।;

Update: 2020-06-02 14:04 GMT

लखनऊ। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के साथ धोखा बताते हुए कहा कि सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है।

भाकियू प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने मंगलवार को कहा कि हाल ही में खरीफ फसलों के लिये घोषित समर्थन मूल्य देश के भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खडी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम वृद्धि है। सरकार ने कृषि विश्वविद्यालयों की लागत के बराबर ही समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया है।

उन्होने कहा कि किसानों को कुल लागत सी 2 पर 50 प्रतिशत जोड़कर बनने वाले मूल्य के अलावा कोई मूल्य मंजूर नहीं है। सरकार महंगाई दर नियंत्रण करने के लिए देश के किसानों की बलि चढ़ा रही है। इसी किसान के दम पर सरकार कोरोना जैसी महामारी से लड़ पायी है। इस महामारी में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का नहीं मांग का संकट बना हुआ है।

टिकैत ने कहा कि सरकार द्वारा धान का समर्थन मूल्य वर्ष 2016-17 में 4.3 प्रतिशत, 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत वृद्धि की गयी थी। वर्तमान सीजन 2020-21 में यह पिछले पांच वर्षों की सबसे कम 2.92 प्रतिशत वृद्धि है। सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य में प्रत्येक कुन्तल पर 715 रुपये का नुकसान है। ऐसे ही एक कुन्तल फसल बेचने में ज्वार में 631 रुपये, बाजरा में 934रुपये, मक्का में 580 रुपये, तुहर/अरहर दाल में 3603 रुपये, मूंग में 3247 रुपये, उड़द में 3237 रुपये, चना में 3178 रुपये, सोयाबीन में 2433 रुपये, सूरजमुखी में 1985 रुपये, कपास में 1680 रुपये, तिल में 5365 रुपये का नुकसान है।

उन्होने कहा कि भारतीय किसान यूनियन सरकार से जवाब चाहती है कि आखिर इस वृद्धि के लिए कौन सा फार्मूला अपनाया गया। भाकियू मांग करती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी कानून बनाया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वाले व्यक्ति पर अपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए।
 

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