झारखंड : जनजातीय परिवार पत्तों को जोड़ संवार रहे जिंदगी
तेतुलिया गांव की रहने वाली फूलमणि सोरेन बताती हैं कि वन विभाग में पत्तल (पत्तों से बनी थाली) बनाने की मशीन उपलब्ध है, जिसकी मदद से वहां पत्तल निर्माण किया जा रहा है।;
रांची | झारखंड के साहिबगंज जिला के बोरियों प्रखंड की बोझी गांव की उर्मिला देवी परिवार और गांव के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर गांव से करीब ढाई किलोमीटर पैदल चलकर पड़ोस के जंगल जाती हैं और वहां से पलाश के पत्ते इकट्ठे कर, घर लाकर उनके पैकेट बनाती हैं। ये सभी मिलकर 8 रुपये प्रति पैकेट की दर से वन विभाग को जोड़े हुए पत्ते उपलब्ध कराते हैं। इस तरह कोरोना संकट के समय इन्हें रोजगार मिल गया है।
तेतुलिया गांव की रहने वाली फूलमणि सोरेन बताती हैं कि वन विभाग में पत्तल (पत्तों से बनी थाली) बनाने की मशीन उपलब्ध है, जिसकी मदद से वहां पत्तल निर्माण किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, "हम वन विभाग के लिए कार्य कर रहे हैं। इस कार्य से मेरे जैसे लगभग 20 लोगों को तालाबंदी के इस संकट की घड़ी में रोजगार मिला है। इस काम से विगत 3 सप्ताह में हमने करीब 2500 से 3000 रुपये तक कमाए हैं।"
साहिबगंज की कई ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने कोरोना संकट के इस दौर में पत्तों को जोड़ने का रोजगार ढूंढ लिया है।
ग्रामीण विकास विभाग झारखंड सरकार के अंतर्गत कार्यरत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी संपोषित सखी मंडल की महिलाएं 'मुख्यमंत्री दीदी किचन' केंद्रों पर पलाश तथा बरगद के पत्तों से निर्मित पत्तल में खाना परोसती हैं। स्वच्छता की दिशा में ग्रामीण महिलाओं के द्वारा शुरू किया गया यह अनूठी पहल है।
साहेबगंज की तरह देवघर जिले के 10 प्रखंडों की सभी 194 पंचायतों के हर मुख्यमंत्री दीदी किचन केंद्र पर प्रतिदिन पलाश तथा बरगद के पेड़ के हरे पत्तों से पत्तलों का निर्माण कर उसमें गरमा गरम खाना परोसा जा रहा है।
देवघर की उपायुक्त नैन्सी सहाय ने आईएएनएस से कहा कि पत्तल बनाने का कार्य जहां पर्यावरण के लिए ठीक है, वहीं इससे रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है।
उन्होंने कहा, "जिले में दीदी किचन और दाल-भात केंद्रों में पत्तल प्लेट उपयोगी है। यह देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार महिलाओं द्वारा चुने गए पत्तों से प्लेट तैयार कर उसका इस्तेमाल दीदी किचेन और दाल-भात केंद्रों में किया जा रहा है, जिससे लाभ हो रहा है। फिलहाल हमारा लक्ष्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सबल बनाना है।"
पालोजोरी प्रखंड के मसानजोर पंचायत के राधाकृष्ण आजीविका सखी मंडल की सोनाली मोदी ने आईएएनएस से कहा, "शुरुआत में इन्होंने प्लास्टिक के प्लेट में खाना परोसना शुरू किया था, जिसके निष्पादन से गांव में कूड़े का अंबार बढ़ रहा था जिससे गंदगी एवं वायरस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इस वजह से हमलोगों ने सोचा कि क्यों न जरा सी मेहनत कर पत्तल का निर्माण किया जाए और उसी में खाना परोसा जाए।"
वे कहती हैं कि प्लास्टिक एवं थर्मोकोल प्लेट की कीमत चुकाने में प्रतिदिन करीब 300 से 400 रुपये का खर्च आता था। इस खर्च से आसानी से बचा जा सकता था, क्योंकि गांव में पलाश, केला और बरगद के पेड़ उपलब्ध होने से इन्हें हरे पत्ते मुफ्त में मिल जाते हैं।
साहिबगंज जिले के लगभग 20 परिवार विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के अंतर्गत हैं। यहां मुख्यमंत्री दीदी किचन के लिए वन विभाग द्वारा विशेष रुप से पलाश के पत्तों के पत्तल निर्माण किया जा रहा है। इस कार्य में बोरियों एवं मंडरों प्रखंड के 3 गांव के लगभग 20 पीवीटीजी परिवार द्वारा वन विभाग की मदद की जा रही है।
इसके तहत यह 20 परिवार जंगल से पत्ते इकट्ठा कर वन विभाग को उपलब्ध करा रहे हैं। पिछले 25 दिनों में प्रत्येक परिवार द्वारा 250 से 300 पत्तों के पैकेट तैयार कर वन विभाग को सौंपे गए हैं।
वन विभाग द्वारा प्रत्येक परिवार को 8 रुपये प्रति पैकेट की दर से भुगतान किया जाता है। इन पत्तों से पत्तल का निर्माण कर वन विभाग द्वारा साहिबगंज में चल रहे 301 मुख्यमंत्री दीदी किचन तक पत्तल पहुंचाया जाता है। प्रत्येक दीदी किचन 40 पैसे प्रति पत्तल की दर से पत्तल खरीदता है। इस कार्य में शामिल बांझी, तेतुलिया, रोलडीह गांव के प्रत्येक परिवार को पिछले महीने 2500 से 3000 रुपये तक की आमदनी हुई है।