आरोपपत्र के साथ सभी दस्तावेज रहें तो बेहतर, लेकिन इसके बिना भी मान्य : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई आरोपपत्र वैध ही माना जाएगा, भले ही अभियोजन पक्ष उसके साथ दस्तावेज दाखिल न किए जाएं;

Update: 2024-02-11 09:41 GMT

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई आरोपपत्र वैध ही माना जाएगा, भले ही अभियोजन पक्ष उसके साथ दस्तावेज दाखिल न किए जाएं।

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा, "हालांकि सभी दस्तावेजों को आरोपपत्र के साथ संलग्‍न करना बेहतर है, लेकिन उसके न रहने की स्थिति में इसे अमान्य नहीं किया जा सकता।"

अदालत ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच करने का जांच अधिकारी काे अधिकार है। मगर समझौता इसलिए नहीं किया जाता, क्योंकि आरोपी के खिलाफ संहिता की धारा 173(2) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया है।

इसमें कहा गया है कि अगर अदालत आरोपपत्र के साथ पेश किए गए सबूतों से संतुष्ट है और अपराध का संज्ञान लेती है, तो आगे की जांच लंबित होने या कुछ दस्तावेजों के अभाव से आरोपपत्र की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता।

न्यायमूर्ति मेंदीरत्ता ने धोखाधड़ी के एक मामले में वैधानिक जमानत की मांग करने वाले एक आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें तर्क दिया गया कि अधूरा आरोपपत्र जमानत देने का आधार होना चाहिए।

आरोपी ने दावा किया कि अदालत के समक्ष अनुरोध दायर करने के बावजूद जांच अधिकारी द्वारा कुछ मूल दस्तावेज अभी तक एकत्र नहीं किए गए हैं।

अदालत ने याचिका खारिज कर दी, यह देखते हुए कि आरोपपत्र निर्धारित 90-दिन की अवधि के भीतर दायर किया गया था और अदालत द्वारा अपराधों का संज्ञान लिया गया था।

इसमें कहा गया है कि कुछ दस्तावेजों के अभाव या आगे की जांच लंबित होने से आरोपी सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत वैधानिक जमानत का हकदार नहीं है।

Full View

Tags:    

Similar News