भारत ने अनुच्छेद 370 पर ओआईसी के बयान को 'गलत जानकारी और गलत इरादा वाला' करार दिया

विदेश मंत्रालय ने अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करने पर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बुधवार को कड़े शब्दों में निंदा की और इसे "गलत जानकारी और गलत इरादे वाला" करार दिया;

Update: 2023-12-14 08:30 GMT

नई दिल्ली। विदेश मंत्रालय ने अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करने पर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बुधवार को कड़े शब्दों में निंदा की और इसे "गलत जानकारी और गलत इरादे वाला" करार दिया।

भारत की शीर्ष अदालत द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के राष्ट्रपति के आदेश को सर्वसम्मति से बरकरार रखेे जाने के एक दिन बाद ओआईसी ने फैसले पर "चिंता" जताई।

मुस्लिम देशों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने अनुच्छेद 370 को पलटने को "अवैध और एकतरफा" बताया और इसे वापस लेने की मांग की।

विदेश मामलों के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बुधवार को एक बयान में कहा, "भारत भारतीय सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के महासचिव द्वारा जारी बयान को खारिज करता है। यह गलत सूचना और गलत इरादे वाला है।"

पाकिस्तान के परोक्ष संदर्भ में प्रवक्ता ने कहा : "ओआईसी मानवाधिकारों के सिलसिलेवार हनन और सीमा पार आतंकवाद के एक बेपरवाह प्रमोटर के इशारे पर ऐसा करता है, जिससे उसकी कार्रवाई और भी संदिग्ध हो जाती है। ऐसे बयान केवल ओआईसी की विश्‍वसनीयता को कमजोर करते हैं।"

ओआईसी के जनरल सेक्रेटरी ने अपने बयान में कहा था कि वह आत्मनिर्णय के अधिकार की तलाश में जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अपनी एकजुटता की पुष्टि करता है।

इसके अलावा, संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों के अनुसार जम्मू और कश्मीर के मुद्दे को हल करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाने का आह्वान किया।

2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खतम्‍ हो गया। इसके बाद केंद्र सरकार ने इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में पुनर्गठित करने का कदम उठाया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के पास कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं रह गई है।

उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा कोई मामला नहीं है कि राष्ट्रपति के 2019 के आदेश बुरे विश्‍वास या शक्ति के अनुचित प्रयोग के तहत थे।

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