ब्रिक्स की कामयाबी में और कितनी ईंटों की जरूरत

22 से 24 अगस्त तक दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेता बंद दरवाजों के पीछे इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्या इस समूह का स्वरूप बदलने का समय आ गया है?;

Update: 2023-08-22 17:46 GMT

22 से 24 अगस्त तक दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नेता बंद दरवाजों के पीछे इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्या इस समूह का स्वरूप बदलने का समय आ गया है? अगर हां, तो कौन से देशों को इससे जोड़ा जा सकता है? और वो कौन से पैमाने होंगे जिन पर यह निर्णय आधारित होगा. पिछले सालों में कई नए अंतरराष्ट्रीय संगठन बने हैं और पुराने कमजोर पड़े हैं. लेकिन दुनिया की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के समूह ब्रिक्स में दुनिया की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही है.

ब्रिक्स का गठन एक ऐसे समय में हुआ था, जब दुनिया को नए भूराजनैतिक नजरिए से देखा जा रहा था. आर्थिक प्रगति के वजह से दुनिया के बहुत सारे देश तेजी से उभर रहे थे. वे न सिर्फ आर्थिक विकास में अपना हिस्सा चाहते थे बल्कि विश्व राजनीति में भी अहम भूमिका निभाना चाहते थे.

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: मोदी किन मुद्दों को उठा सकते हैं

संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की बात हो रही थी और भारत और ब्राजील के अलावा जर्मनी और जापान जैसे देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनना चाहते थे. संयुक्त राष्ट्र का सुधार तो नहीं हुआ, बाद के सालों में वह और भी वैश्विक प्रतिस्पर्धा का शिकार हो गया, उस समय बने जी 4 जैसे संगठन उतने अहम नहीं रहे, लेकिन ब्रिक्स अपने बड़े बाजार, सुरक्षा परिषद के दो स्थायी सदस्यों और इन देशों के वैश्विक मंच पर अपने हितों के दावों की वजह से महत्वपूर्ण होता चला गया.

ब्रिक्स की नींव

2001 में अमेरिकी निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने अपनी एक रिपोर्ट में ब्राजील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के बारे में एक रिपोर्ट दी. यहां पहली बार 'ब्रिक' शब्द का इस्तेमाल किया गया. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कैसे विकासशील देशों में इन चार देशों की अर्थव्यवस्थाएं सबसे तेजी से बढ़ रही हैं. इस रिपोर्ट पर इतनी चर्चा हुई कि कुछ साल बाद इन चारों देशों ने अनौपचारिक रूप से साथ आने का फैसला किया. साल 2009 में पहली बार चारों देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति रूस में एक दूसरे से मिले और अपनी अर्थव्यवस्थाओं को और मजबूत बनाने पर चर्चा की. अगले साल दक्षिण अफ्रीका भी इसमें शामिल हो गया और यह समूह ब्रिक से ब्रिक्स बन गया.

किन बातों पर होगी ब्रिक्स शिखर सम्मलेन में चर्चा?

एक दशक तक पश्चिमी देश इसे गैरजरूरी समूह समझ कर नजरअंदाज करते रहे. लेकिन पहले कोरोना महामारी और फिर यूक्रेन युद्ध ने ब्रिक्स की अहमियत बदल दी. वैक्सीन संकट के दौरान पश्चिमी देशों का टीकों को विकासशील देशों के साथ साझा ना करना और उसके बाद यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही उन्हीं देशों से रूस के खिलाफ आवाज उठाने की उम्मीद करना और ऐसा करने के लिए मजबूर करना ब्रिक्स देशों को खटकता रहा है. चीन खुल कर रूस के पक्ष में खड़ा दिखा, भारत ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलने का फैसला किया. वहीं ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका इस कोशिश में रहे कि ना रूस उनसे रूठे और ना अमेरिका मुंह फेरे.

Tags:    

Similar News