वृहत्तर मानवीय मूल्यों की संवाहक है हिन्दी : प्रो.सेठी
विश्व हिन्दी दिवस अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद का किया गया आयोजन;
नई दिल्ली। विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय ने वातायन (यूके) संस्था के साथ मिलकर 'अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी' विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया।
इस परिसंवाद में विश्व भर के अलग-अलग देशों से आए हुए विद्वान लेखकों ने शिरकत की। उद्घाटन सत्र में हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय संबंध के अधिष्ठाता प्रो. अनिल राय और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल जोशी मुख्य वक्ता रहे। परिसंवाद के अगले चरण में इंग्लैंड से आए पद्मेश गुप्त, मीरा कौशिक, जय वर्मा, और वातायन (यूके) संस्था की दिव्या माथुर।
यूएसए से अनूप भार्गव और सुश्री रजनी भार्गव, ऑस्ट्रेलिया से रेखा राजवंशी ने हिस्सा लिया। स्वागत वक्तव्य देते हुए इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय की कार्यकारी प्राचार्या प्रो.रेखा सेठी ने कहा कि जब हम भाषा और साहित्य की बात करते हैं तो उसके केंद्र में मानवीय मूल्य भी होते हैं।
आज का यह परिसंवाद ग्लोबल और लोकल का एक संगम है और इस दिशा में इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय हमेशा से पहल करता रहा है। कॉलेज की आईक्यूएसी की संयोजक डॉ. विनीता सिन्हा ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परम्पराओं को विकसित करने की पूरी गुंजाइश है और इसके लिए भाषा और भाषा के माध्यम से संस्कृति का संरक्षण भी आवश्यक है।
अतिथि वक्ता प्रो. अनिल राय ने हिन्दी सेवा के क्षेत्र में प्रमुख विदेशी विद्वानों के योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि प्रवासी हिन्दी साहित्य को भी हिन्दी साहित्य के इतिहास में जगह मिलनी चाहिए। आज हिन्दी में पचास करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट प्रयोक्ता हैं। आज वक्त की जरूरत यह है कि साहित्य से इतर विषयों पर हिन्दी में लिखने वाले लोग भी आगे आएं। इसी क्रम में उन्होंने गुणाकर मुले के विज्ञान-लेखन और प्रभाष जोशी के खेल संबंधी लेखन को भी याद किया।
केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने बताया कि शैलेंद्र श्रीवास्तव के प्रस्ताव पर 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस का आरंभ हुआ। स्वतंत्र भारत में हिन्दी भाषा को इतना महत्व दिया गया था कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की बैठकों में स्वयं प्रधानमंत्री भी शामिल होकर हिन्दी को बढ़ावा देते थे। उन्होंने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, वो हमारी सोच और जीवनशैली को भी तय करती है।
उन्होंने प्रधानमंत्री के सुझाव पर आरंभ हुए भारतीय भाषाओं में व्यावसायिक पाठ्यक्रम को एक महत्वपूर्ण कदम बताया। परिसंवाद सत्र में चर्चा करते हुए विभिन्न देशों से आए हिन्दी विद्वानों ने अपने अनुभवों को छात्राओं के साथ साझा किया और दुनिया भर में हिन्दी की संभावनों पर विचार किया। अन्तिम सत्र में छात्राओं के लिए साहित्यिक प्रनोत्तारी का आयोजन किया गया।