घृणा और लोभ से प्रेम : 'अंधा युग'
महाकाव्य महाभारत के अनेक आयाम हैंl इसीलिये विभिन्न तरह से इसकी व्याख्या, टीका और चर्चा करना कवि, कथाकार और नाटककारों को प्रिय रहा है;
By : देशबन्धु
Update: 2023-04-07 18:21 GMT
महाकाव्य महाभारत के अनेक आयाम हैंl इसीलिये विभिन्न तरह से इसकी व्याख्या, टीका और चर्चा करना कवि, कथाकार और नाटककारों को प्रिय रहा हैl इस काव्य का फलक बहुत विस्तृत हैl मुख्य पात्रों के अतिरिक्त कई अन्य किरदार भी सूत्रों में ही बेहद गूढ़ बात बता जाते हैंl इसी क्रम में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल ने पूर्व निदेशक एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी पद्मश्री रामगोपाल बजाज के निर्देशन में 'अंधा युग' का 4 दिवसीय मंचन कियाl
अंधा युग धर्मवीर भारती द्वारा लिखित महाभारत में वर्णित युद्ध के अंतिम दिनों की कथा का काव्यात्मक नाट्य हैl भारत की आजादी के बाद लिखा गया यह नाटक अपने शिल्प और कथावस्तु के कारण ही प्रसिद्ध हैl यह काव्य-नाटक युद्ध की हिंसा, आक्रामकता और प्रतिफल को दर्शाता हैl नाटक यह चेतावनी देता है कि युद्ध एवं हिंसक कृत्य सिर्फ सामाजिक संरचना को ध्वस्त कर सकते हैंl इनके बाद शेष बचती हैं दुःखद यादें, कष्ट और पीड़ाl
'जो कुछ शुभ था, सुंदर था, कोमलतम था, वह हार गया', अपनी शुरूआत से ही यह प्रस्तुति दर्शकों पर अपनी पकड़ बना लेती हैl मंच पर सभी अभिनेताओं ने जानदार अभिनय कियाl गांधारी, धृतराष्ट्र,अश्वत्थामा, विदुर, संजय, कृतवर्मा, युयुत्सु आदि ने दर्शकों पर विशेष छाप छोड़ीl कृष्ण के संवादों के लिए प्रसिद्ध अभिनेता स्व.ओम शिवपुरी की इसी नाटक के लिए 1963 में रिकार्ड की गयी आवाज़ का प्रयोग बहुत प्रभावी थाl सुन्दर संगीत और ध्वनि प्रभाव के लिए अजय कुमार, संतोष सिंह एवं राजेश सिंह की चर्चा अवश्य ही होनी चाहिएl साउती चक्रवर्ती की प्रकाश परिकल्पना विशेष रूप से प्रभावी हैl परंतु शुरुआती प्रस्तुति में कोरस में कुछ गीतों को गाते हुए कहीं कहीं अभिनेता हिचकिचाते से लगेl
नाटक देखने के बाद प्रबुद्ध दर्शकों के बीच इसकी विशेष चर्चा होती रहीl समसामयिकता इसके लोकप्रिय होने का बड़ा कारण हैl वर्तमान में चल रहा यूक्रेन युद्घ हो या देश की राजनीतिक स्थितियां, चर्चाओं के दौर चल रहे थेl अर्धसत्य से लड़े गये इस युद्ध में मृतकों के बाद बचे रहे अश्वत्थामा, युयुत्सु आदि की स्थिति पर दर्शक विस्मय में थेl केवल सत्य की तरफ रहने के आग्रह ने, युयुत्सु को आत्महत्या के लिए मजबूर कियाl उसका मानना था कि कृष्ण केवल सत्य की ओर होंगेl युयुत्सु कौरवों की ओर से नहीं लड़ाl लेकिन युद्ध समाप्ति के बाद उसे माता गांधारी एवं प्रजाजनों की अवहेलना और घृणा का पात्र बनना पड़ाl नतीजा यह हुआ कि वह आत्माहंता बना l
दिल्ली के दर्शकों ने कुछ समय पहले ही भारंगम में रमनप्रीत कौर के निर्देशन में डाइस ऑफ डिजायर नामक नाटक भी देखा हैl जिसमें 13 अभिनेत्रियां मंच पर थीं, महाभारत के ही प्रसंगों और व्यथा के साथl कुछ उल्लेखनीय स्त्री पात्रों की दृष्टि से वहाँ भी महाभारत को ही दिखाया गया थाl सत्यवती, कुंती, गांधारी, द्रौपदी, अंबा, अंबालिका इत्यादि महिलाओं ने उस कालखंड को कैसे भुगताl निश्चित रूप से दोनों नाटकों का क्राफ्ट अलग था, लेकिन कथ्य और युद्ध से विनाश जैसी बातें इसका केंद्र थींl