स्कूलों की मनमानी व कमीशनखोरी पर लगे लगाम, मुनाफे के चक्कर में संचालक हर वर्ष बदलते हैं किताबें

ग्रेनो/रबूपुरा ! पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में काफी हद तक भ्रष्टाचार ने अपनी मजबूत जडें़ जमाईं हैं।;

Update: 2017-03-27 00:56 GMT

ग्रेनो/रबूपुरा !  पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में काफी हद तक भ्रष्टाचार ने अपनी मजबूत जडें़ जमाईं हैं। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी एवं पाठ्य साम्रगी व अन्य समानों में बढ़ती कमीशनखोरी के चलते शिक्षा इतनी महंगी हो चली है कि गरीब जनता के लिए बच्चों को पढ़ा पाना एक चुनौती हो चुकी है। निजी स्कूल संचालक नियमों की जमकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। कमीशनखोरी कर मुनाफा कमाने के चक्कर में हर वर्ष किताबें, ड्रेसें व अन्य आवश्यक समान में संचालकों द्वारा बदलाव किया जाता है।
साथ ही फीस व वाहन सेवा भी मनमाफिक तरीके से वसूली जाती है। लोगों की मानें तो स्कूल संचालकों की विभागीय अधिकारियों से मिलीभगत व कुछ राजनैतिक लोगों में मजबूत पकड़ होने के कारण स्कूलों में नियमों की अनदेखी की शिकायत के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं होती। वहीं लोगों का कहना है इस बार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार से भ्रष्टाचार पर अकुंश लगाने की उम्मीद जताते हुए कहा है कि हमारे नवनिवार्चित मुख्यमंत्री  को शिक्षा की तरफ  विशेष ध्यान देकर ऐसे माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। एडवोकेट मुनेश कुमार का कहना है कि अधिकांश स्कूलों द्वारा किताब, कापियां, वर्दी आदि हर साल बदल दिए जाते हैं। जिनसे कमीशन के रूप में पुस्तक विके्रताओं से मोटी रकम स्कूल संचालकों को पहुंचाई जाती है। सरकार को निजी स्कूलों में प्राईवेट प्रकाशन की किताबों पर रोक लगाकर सभी स्कूलों में सरकारी किताबों का प्रयोग अनिवार्य कर देना चाहिए। किसान विकास समिति के अध्यक्ष धीरू भैया का कहन है स्कूल संचालक अपनी मनमर्जी से फीस वसूलते हैं इनके खिलाफ  सख्त नियम बनाकर सभी निजी स्कूलों में फीस, वाहन शुल्क एक समान निर्धारित होनी चाहिए तथा प्रत्येक वर्ष बदली जाने वाली किताबों व अन्य सामग्री के प्रचलन पर पूर्णतय: रोक लगनी चाहिए। अखिल भारतीय किसान सभा के कमेटी सदस्य नत्थीराम शर्मा का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों ने पढ़ाई के नाम पर लूट-खसोट मचा रखी है। जल्द ही इनके प्रति कोई कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन का रास्ता चुना जाएगा। वहीं मंगेश त्यागी, अनुराग गोयल, विष्णुदत्त शर्मा, श्यौराज सिंह, मोहन सिंह, दिनेश कुमार आदि से जब इस सम्बंध में बात की तो सभी का एक जैसा ही हाल मिला। इनका कहना है कि स्कूलों द्वारा किताबें बदल दी जाती हैं। जो दूसरे बच्चे के काम आने लायक नहीं रहतीं। अपने मुनाफे के चक्कर में छोटे-छोटे बच्चों पर किताबों का भार बढ़ा दिया जाता है। अभिवावकों का भारी-भरकम फीस व महंगाई से पढ़ाई करा पाना दुश्वार हो चुका है।
 

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