सरकार बनेगी वोडाफोन आइडिया की सबसे बड़े शेयरधारक

वोडाफोन आइडिया ने कहा है कि केंद्र सरकार कंपनी में 35.8 हिस्सेदारी खरीदने जा रही है.;

Update: 2022-01-11 18:11 GMT

वोडाफोन आइडिया (वीआई) पर स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए और अडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के तहत करीब 50,000 करोड़ रुपए बकाया हैं जो उसे केंद्र सरकार को देने हैं. अब कंपनी ने यह बकाया राशि देने की मियाद चार सालों तक बढ़ा दी है और इस अवधि में जो ब्याज देय होगा उसे शेयरों में बदल कर सरकार को दे दिया जाएगा.

ऐसा करने के बाद सरकार कंपनी के 35.8 शेयरों की मालिक हो जाएगी, वोडाफोन समूह के पास करीब 25.8 प्रतिशत शेयर रहेंगे और आदित्य बिड़ला समूह के पास लगभग 17.8 प्रतिशत. कंपनी के अनुमान के मुताबिक इस ब्याज का कुल मूल्य करीब 16,000 करोड़ रुपए है.

नहीं होंगे अधिकार

ऐसा करने का प्रस्ताव सरकार ने ही कंपनी को दिया था. 2021 में टेलीकॉम क्षेत्र में सुधार लाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ सुधारों की अनुमति दी थी, जिनमें से एक कर्ज में डूबी हुई कंपनियों को देय राशि के भुगतान के लिए चार साल का शुल्क स्थगन या मोरेटोरियम देने का कदम भी था.

सरकार के सबसे बड़े शेयरधारक हो जाने का यह मतलब नहीं है कि वोडाफोन अब एक सरकारी कंपनी हो जाएगी. सरकार अभी भी कंपनी से संबंधित कोई भी कार्यकारी फैसला नहीं ले पाएगी. अभी भी निदेशकों की नियुक्ति और अन्य अहम् फैसले लेने का अधिकार वोडाफोन समूह और आदित्य बिड़ला समूह के पास ही रहेगा.

हालांकि बाजार में इस कदम का असर नकारात्मक रहा. इस घोषणा के बाद शेयर बाजार में वीआई के शेयर का मूल्य 19 प्रतिशत गिर गया. कई जानकारों ने इसे वीआई का राष्ट्रीयकरण बताया है.

निवेशकों की तलाश

मनीनाइनलाइव के सम्पादक अंशुमान तिवारी ने ट्विट्टर पर लिखा कि टेलीकॉम नीति में अव्यवस्था की वजह से एक सफल निजी टेलीकॉम कंपनी का राष्ट्रीयकरण होने जा रहा है.

2016 में भारत के टेलीकॉम क्षेत्र में रिलायंस जियो के प्रवेश के बाद से कीमतों को लेकर एक जंग छिड़ गई, जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान वीआई का हुआ है. वीआई दो लाख करोड़ से भी ज्यादा के कर्ज में डूबी हुई है और ब्रिटेन में उसकी मालिकाना कंपनी ने भारत में और पैसे लगाने से मना कर दिया है.

इस वजह से कंपनी काफी समय से ऐसे निवेशकों की तलाश कर रही है जो उसमें पैसा लगा सकें. कंपनी को लंबी अवधि के लिए निवेश की तलाश है जिनकी मदद से वो भी बाजार में लंबे समय तक रह सके.

एयरटेल पर भी एजीआर के तहत भारी रकम बकाया है लेकिन उसने चार साल बाद भुगतान करने के प्रस्ताव को स्वीकार किया है.

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