प्रवासी मजदूरों से मजाक कर रही है सरकार : कांग्रेस

कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ने प्रवासी मजदूरों के घर वापसी के लिए जो फरमान जारी किया है वह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है;

Update: 2020-05-01 15:34 GMT

नयी दिल्ली। कांग्रेस ने कहा है कि सरकार ने प्रवासी मजदूरों के घर वापसी के लिए जो फरमान जारी किया है वह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है जिसमें सरकार को पता ही नहीं है कि कितने लोग अपने घरों को लौटना चाहते हैं और उनकी वापसी के लिए कितने वाहनों की जरूरत पड़ेगी।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि लॉक डाउन के करीब 40 दिन बाद सरकार ने प्रवासी मजदूरों को घर लाने का एक फैसला लिया लेकिन वह भी आधा अधूरा है और इसमें मजदूरों की घर वापसी के पुख्ता इंतजाम नहीं है। सरकार को मालूम ही नहीं है कि कितने मजदूर कहां फंसे हैं और कितने घर वापसी के इच्छुक हैं, उनके लिए कोई व्यवस्था रणनीतिक ढंग से नहीं बनायी गयी है।

उन्होंने कहा कि अकेले बिहार और उत्तर प्रदेश से ही 40 से 45 लाख प्रवासी मजदूर तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र आदि राज्यों में हैं। राजस्थान कहता है कि उसके ढाई लाख प्रवासी हैं। इसी तरह से पंजाब में चार लाख, ओडिशा में सात लाख असम के डेढ़ लाख प्रवासी श्रमिक जगह जगह फंसे हैं। पूरी स्थिति को देखकर लगता है कि सरकार के पास प्रवासी मजदूरों को लेकर कोई योजना ही नहीं है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्यों को बसें भेजकर अपने श्रमिक लाने काे कहा है। उन्होंने केंद्र सरकार के 29 अप्रैल को इस संबंध में जारी आदेश को ‘तुगलकी फरमान’ बताया और कहा कि इसमें कहीं नहीं कहा गया है कि इस पूरी प्रक्रिया में केंद्र सरकार की किस तरह की भूमिका होगी। उन्होंने इसे जिम्मेदारी से भागने का प्रयास बताया और कहा कि केंद्र के इस आदेश के जरिए प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों में भेजने में किसी तरह की गड़बड़ी होने का ठीकरा राज्यों के सिर फोड़ने की कोशिश है।

उन्होंने कहा कि यह आदेश केंद्र सरकार के कुप्रबंधन और अदूरदर्शिता का परिणाम है। यदि उसमें प्रवासी श्रमिकों के प्रति कोई लगावा होता तो दो चरणों के लॉकडाउन के दौरान उनकी व्यवस्थित घर वापसी का इंतजाम कर लिया होता। दो दिन पहले उसने अचानक प्रवासी श्रमिकों को घर भेजने का फरमान जारी किया तो उसमें कहीं कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही है। सरकार को यह काम चरणबद्ध तरीके से तथा व्यवस्थित तरीके से करना चाहए था लेकिन ऐसा लगता है कि यह कदम हड़बड़ी में उठाया गया है।
 
श्री सिंघवी ने कहा कि केंद्र सरकार को प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के लिए खुद ही ठोस प्रबंधन करने चाहिए, लेकिन उसने पूरा दायित्व राज्यों के सिर मढ़ दिया है। केंद्र सरकार को इन प्रवासियों को व्यवस्थित तरीके से उनके घरों तक भेजने के लिए रेल गाडियां चलानी चाहिए थी लेकिन उसने राज्यों को बसें चलाने के लिए कहा। उनका कहना था कि जिस तरह से राज्यों के प्रवासियों के आंकड़े सामने आ रहे हैं उनको बसों तथा अनुबंधित बसों के जरिए वापस भेजने में कई महीने लग जाएंगे।

उन्होंने इसे केंद्र सरकार का अव्यवहारिक कदम बताया और कहा कि यदि इन श्रमिकों को उनके घरों को वापस भेजने के प्रति केंद्र सरकार जिम्मेदारी से काम करती तो उसे विशेष रेल गाडियां चलाकर लोगों को कोरोना से बचने के नियमों का पालन करते हुए आसानी से उनके घरों तक पहुंचाया जा सकता था। रेल के सफर में यह काम समय पर भी पूरा होता और इसमें सामाजिक दूरी का भी पूरा ध्यान रखा जाता।

प्रवक्ता ने कहा कि सरकार ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को लेकर दो दिन पहले प्रपत्र जारी किया और इस फरमान को तत्काल लागू कर दिया है। इसके लिए पहले से ही ठोस इंतजाम किए जाने की जरूरत थी जिसमें सामाजिक दूरी जैसे आवश्यक नियम का सख्ती से पालन करना भी शामिल है लेकिन यह कदम हडबडी में उठाया गया है इसलिए सामाजिक दूरी जैसे नियमों का पालन प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के क्रम में कठिन हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले बिना सोचे समझे और बिना तैयारी के ही लॉक डाउन लागू किया और इसी का परिणाम था कि प्रवासियों को लाॅक डाउन के आरंभ से ही भारी दिक्कतों का समाना करना पड़ रहा है। इसी कुप्रबंधन का परिणाम है कि महंगाई तेजी से बढ़ रही है और सब्जी, आटा, दालें आदि आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं।
 

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