फिल्म रिव्यु - मरजावां ,खलनायक के किरदार में छाए रितेश देशमुख
फिल्म देखना चाहते है एक मरजावां जिसमें एक्शन, इमोशन और मसाला तीनो है;
यह सप्ताह दो अलग अलग मूड की फिल्में लेकर आया जो दर्शकों को खींचने में कितनी सफल हो पाएंगी यह तो अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन दर्शकों के पास चॉइस है की वो किस तरह की फिल्म देखना चाहते है एक मरजावां जिसमें एक्शन, इमोशन और मसाला तीनो है और दूसरी मोतीचूर चकनाचूर जिसमें कॉमेडी के भरपूर पंच है या फिर हॉलीवुड की फिल्म 'फोर्ड वर्सस फेरारी' जोकि सच्ची कहानी पर आधारित है, एक वक़्त था जब रेसिंग के लिए फेरारी गाड़ियों का ही वर्चस्य रहा था, लेकिन उस वक़्त फोर्ड कंपनी की कार उसे रेसिंग में हराती है और दुनियां को दिखा देती है की ज़ज़्बा, हिम्मत और ताक़त हो तो कोई भी बड़ा काम आसानी से किया जा सकता है, निर्देशक जेम्स मैनगोल्ड की इस फिल्म में क्रिश्चियन बेल, मैट डेमन, केट्रियोना बाल्फे, जोश लूकस, नोआ ज्यूप, ट्रेसी लेट्स और जॉन बर्नथल जैसे कलाकार है।
फिल्म रिव्यु - मरजावां
कलाकार - सिद्धार्थ मल्होत्रा, रितेश देशमुख, तारा सुतारिया, रकुल, नासर और रवि किशन।
निर्देशक मिलाप जावेरी ने एक्शन पैक फिल्म बनाने का सोचा तो उन्होंने अस्सी नब्बे के दशक की फिल्म बनाने के लिए सिद्धार्थ मल्होत्रा को चुना जो अपने स्टाइल और एक्टिंग के ज़रिए जवां दिलों के पसंदीदा एक्टर बन चुके है, लेकिन यहाँ कहना थोड़ा सही होगा की निर्देशक पूरी तरह की मसाला फिल्म बनाने में सफल नहीं हो पाए क्योंकि फिल्म कहीं न कहीं कमज़ोर साबित होती है। फिल्म की कहानी शुरू होती है अन्ना यानि नासर से जो एक बच्चे को गटर से उठाकर अपने पास ले आता है और उसका पालन पोषण करता है, अन्ना एक टैंकर माफिया है जो उस बच्चे को भी अपराधी और काले कारनामों का हेड बना देता है, यह बच्चा बड़ा होकर रघु यानि सिद्धार्थ मल्होत्रा बनता है जो अन्ना को अपने पिता के रूप में देखता है और उनकी हर बात मानना उसका पहला काम है इसी कारण अन्ना उसे अपने बेटे से ज्यादा चाहता है और रघु भी उसका राइट हैंड बनकर उसके हर काम में उसका साथ देता है। अन्ना का असली बेटा है विष्णु यानि रितेश देशमुख जो कद में बोना है लेकिन दिमाग से शातिर। विष्णु रघु से बेहद नफरत करता है उसे लगता है रघु की वजह से उसे अपने पिता से वो प्यार नहीं मिल रहा जो मिलना चाहिए था इसी वजह से उसके मन में रघु के लिए नफरत भरी हुई है और वो उन बस्ती वालो से भी नफरत करता है जो रघु को दिलोंजान से चाहते है इसमें एक बार डांसर आरज़ू यानि रकुलप्रीत भी है। एक बार उनकी बस्ती में कश्मीर से आयी ज़ोया यानि तारा सुतारिया से रघु की मुलाकात हो जाती है, ज़ोया जोकि बोल नहीं सकती है जिससे रघु प्यार करने लग जाता है, लेकिन विष्णु कुछ ऐसे हालत पैदा कर देता है जिसकी वजह से रघु को ज़ोया को गोली मारनी पड़ती है उसके जाने के बाद रघु को कुछ समझ नहीं आता, वो अपनी ज़िन्दगी में बहुत खालीपन महसूस करता है, उधर विष्णु के जुर्म बस्तीवालों पर बढ़ते जाते है तब सब रघु के पास आते है और अपना दुखड़ा रोते है। इन सबको देखते हुए रघु विष्णु से अपनी मोहब्बत का बदला लेने और बस्ती वालों को उसके ज़ुल्म से निजात दिलाने के लिए निकल पड़ता है। फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने अच्छी एक्टिंग की है और रघु के किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है वहीँ तारा भी बहुत खूबसूरत लगी है तो रकुल ने भी अपने किरदार को अच्छा निभा दिया है। फिल्म में बोने बने विष्णु के रूप में रितेश देशमुख ने जबरदस्त खलनायिकी दिखाई है। सिद्धार्थ और रितेश की साथ यह दूसरी फिल्म है और दोनों ही फिल्मों में रितेश खलनायक बने है। फिल्म में डायलॉगबाज़ी कुछ ज्यादा ही दिखाई गयी है जो कभी कभी ओवर लगती है। पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में रवि किशन ने कमाल कर दिया है। फिल्म के ज्यादातर गाने हिट लिस्ट में शामिल है खासकर नूरा फ़तेहि का 'एक तो कम ज़िंदगानी'।