प्रशासनिक सुस्तता के कारण धान बोने से वंचित हो रहे किसान
प्रशासन के सुस्त रवैये के खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ा रहा;
गरियाबंद। प्रशासन के सुस्त रवैये के खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ा रहा। रबि फसल की आस लगाए किसान बार बार कलेक्टर और एसडीएम कार्यालय का चक्कर लगाकर हतोत्साहित होते दिखाई पड़ रह है। बार बार आने जाने से उन्हे समय बर्बादी के साथ आर्थिक नुकसान भी वहन करना पड़ा रहा है।
इसके बाद भी कमजोर प्रशासन के चलते वे किसान खाली हाथ ही लौटने मजबुर है। जबकि जिले के अधिकांश किसान राज्य शासन के इस आदेश को और प्रशासन के नियम कानून के उलझनो को किनारे कर अपने खेतो मे रबी फसल का कार्य भी प्रारंभ कर दिये है। से नाराज किसान अनुविभागीय अधिकारी कार्यालय पहुचे हुए थे। परंतु एसडीएम के राजिम मे होने के कारण वे उनसे नही मिल पाए। यहां पहुचे किसानो ने बताया कि रबी फसल बुआई का समय निकलता जा रहा है और प्रशासन नियमो मे उलझा कर उनका समय बर्बाद कर रही है। शासन की मंशा स्पष्ट दिख रही है वे नही चाहती कि किसान रबी फसल ले।
इसे देखते हुए अब गरियाबंद ब्लाक के 20 से अधिक गांव के किसानो ने रबी फसल बुआई का निर्णय लेते हुए कार्य आंरभ कर दिया है। इसी बात को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को बताना चाह रहे थे। परंतु उनके अनुपस्थित होने के कारण अब वे कल ज्ञापन सौपेंगे। किसानो ने कहा कि पटवारी, सरपंच और कृषि विस्तार अधिकारी के पंचनाम रिपोर्ट दिये जाने के बाद भी पृथक से आवेदन मांगा जाना उचित नही है। राज्य शासन द्वारा जलस्तर के निम्नता को देखते हुए रबि फसल बोने के पहले प्रशासन से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है परंतु प्रशासन के लचिलेपन और बार बार नियमो बदलाव के कारण रबि फसल बोने के लिए इच्छुक किसानो का समय कलेक्टर और एसडीएम कार्यालय मे ही चक्कार लगाने मे बर्बाद हो रहा है।
वही कई किसान शासन प्रशासन के नियमो को ताक मे रखते हुए अपने खेतो मे रबि फसल का बुआई का कार्य भी प्रारंभ कर चुके है। राज्य शासन के द्वारा बनाए गए नियमो के बाद से ही किसान लगातार आंदोलन और धरना प्रदर्शन कर रबि फसल लेने की अनुमति मांगते रहे है। पूर्व मे राज्य शासन द्वारा अनुमति हेतु कलेक्टर को अधिकार दिया गया था परंतु बाद मे किसानो द्वारा आंदोलन किए जाने के चलते यह अधिकार का विस्तार करते हुए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को भी इसमे शामिल कर दिया गया।
परंतु अनुविभागीय अधिकारी द्वारा रबी फसल बुआई के लिए किसानो से अनुमति दिये जाने के पहले मुल्याकंन रिपोर्ट आने के बाद भी किसानो से उनके जमीन का ऋण पुस्तिका, बीवन खसरा सहित अन्य दस्तावेज मांगे जा रहे है। जिससे किसानो को दिक्कतो का सामना करना पड़ रहा है।