33 साल बच्चों को पढ़ाकर सेवानिवृत्त होने के बाद भी जगा रहे हैं शिक्षा का अलख चिंताराम

गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता;

Update: 2019-09-08 16:24 GMT

खरोरा। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं।

भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

 शिक्षक दिवस के अवसर पर हम एक ऐसे शिक्षक की बात कर रहे हैं जो कि अपने पूरा जीवन शिक्षक की पेशे में 33 निकाल दिए 2 महीने पहले हुए रिटायरमेंट के बाद भी चिंताराम लिमतरिहा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन आज भी  कर रहे हैं।

श्री लिमतरिया के नेतृत्व में आज  हजारों युवा पीढ़ी विभिन्न पदों पर आसीन है जिसमें किसी ने डीएसपी रैंक हासिल करने में कामयाबी रखी है तो कोई स्टेनोग्राफर के पद पर है तो कोई शिक्षा की अलख जगा रहे तो  स्कूलों में कार्यरत है तो कोई बड़ा बिजनेसमैन बन कर कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं ।

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