ई-रिक्शा के जरिए गरीब महिलाओं ने सीखा जीवन जीने का नया तरीका
छत्तीसगढ़ राज्य में महिला स्वावलंबन की दिशा में तेजी से कदम रखने जा रहा है;
रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य में महिला स्वावलंबन की दिशा में तेजी से कदम रखने जा रहा है। पंचायती राज व्यवस्था के साथ सदन से लेकर सड़क तक राज्य की महिलाओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। आज हर पेशे में महिलाओं की भूमिकाएं दिखलाई पड़ने लगी है। इसी दिशा में एक और कदम अब ई-रिक्शा के जरिए जुड़ गया है जिसमें महिलाएं ई-रिक्शा को परिवार की आमदनी का सहारा बनाकर तेजी से आत्मनिर्भर बनने जा रही है।
राज्य की राजधानी रायपुर में ई-रिक्शा चलाकर परिवार को भरण पोषण करने वाली महिलाओं ने बातचीत में बताया कि वे पहले हमाली और घरेलू नौकरानी का काम कर रही थी। जिसमे मुश्किलें ज्यादा आमदनी कम थी। परंतु ई-रिक्शा में उनके जीवन जीने की दिशा को ही बदलकर रख दिया। आज वे आत्मनिर्भर है और परिवार में आमदनी बढ़ गई है। साथ ही बच्चों की परवरिश भी अच्छे ढंग से हो पा रही है।
बातचीत में ई-रिक्शा चलाने के दौरान जयस्तंभ चौक पर महिला चालक मंजू ध्रुव से बातचीत हुई जिसमें महिला ने बताया कि 7 वर्ष पहले पति की मौत हो गई।
तब ऐसा लगने लगा कि परिवार में गुजर बसर कैसे होगा। अशोक नगर की रहने वाली महिला पहले कबाड़ी का काम करने जा रही थी तभी महिला के भाई ने ई-रिक्शा के बारे में जानकारी दी और नवरात्रि पर ई-रिक्शा दिलाने में मदद की। आज दिन भर में रिक्शा चलाकर 400-500 की आमदनी कर लेती है इससे परिवार में दुख दर्द तकलीफें धीरे-धीरे दूर होती जा रही है। वे रिक्शा चलाकर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में बच्चों को शिक्षा दिला रही हैं। वे कहती हैं कि अन्य रिक्शा चलाने वाले पुरुष चालक प्रति स्पर्धा के कारण व्यवहार अच्छा नहीं करते। गलत निगाहों से देखते है किंतु समय के साथ हिम्मत आते जा रही है। जो उनको जीवन जीने का हौंसला देती है।
वही महिला चालक दुर्गा ध्रुव का कहना है कि पति रामचंद्र ध्रुव की कमाई से परिवार में गुजर बसर अच्छे ढंग से नहीं हो पा रहा था। इसीलिये पति के कंधों का भार कम करने के लिये ई-रिक्शा चलाना शुरू किया।
आज परिवार की आय बढ़ गई है। बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने जाते है। आर्थिक स्थिति में सुधार आया है और घर पर खाली वक्त गुजारने की जगह अब कमाऊ महिला कहलाने लगी हैं। इससे परिवार में होने वाले झगड़े रूक गये है और समाज में मान सम्मान भी बढ़ते जा रहा है। साथ में अन्य लोग सहयोग दे रहे है।
माथे की सिकन दूर हो चुकी है। वे कहती है कि जिस देश में रानी दुर्गावती, अवंतिबाईर् जैसी वीरांगना हुई है वहां उस देश की और राज्य की महिलाएं पीछे कैसे रह सकती है।