दीयों की रोशनी के बिना दीपावली का त्योहार अधूरा
भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा है।;
पटना । भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा है।
खुशियों और उल्लास से भरे दीपावली यानी दीपों के त्योहार को लोग हमेशा धूम-धाम से मनाते हैं। इस दिन ना सिर्फ लोग अपने परिवार वालों के साथ भगवान गणेश और लक्ष्मी मां की पूजा करते बल्कि दीपोत्सव भी मनाते हैं।
मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम, लंकापति रावण का वध करके वापस अयोध्या लौटे थे। जिसके बाद लोगों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। दीपों के इस त्योहार की तैयारी कितने ही दिन पहले से लोग शुरू कर देते हैं।
अमावस्या की अंधेरी रात में दीये की जगमगाती रोशनी से चारों तरफ उजियारा छा जाता है। भले ही आधुनिकता के चलन में दीयों का स्थान रंग-बिरंगी झालरों ने ले लिया हो लेकिन इसके बावजूद दीयों का क्रेज आज भी कम नहीं है।
अंधेरे को चीरते इन खूबसूरत दीयों के बगैर दीपावली का त्योहार अधूरा सा है। दीयों से न सिर्फ दीवाली रोशन होती है बल्कि उनकी रोशनी से मन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।