कांडला बंदरगाह को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि वह गुजरात में कांडला बंदरगाह पर 50 एकड़ भूमि एक निजी कंपनी को पट्टे पर दिए जाने के संबंध में क्षेत्रीय न्यायाधिकरण में नहीं होने की वजह से सुनवाई नहीं कर सकते;

Update: 2018-10-01 17:33 GMT

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि वह गुजरात में कांडला बंदरगाह पर 50 एकड़ भूमि एक निजी कंपनी को पट्टे पर दिए जाने के संबंध में क्षेत्रीय न्यायाधिकरण में नहीं होने की वजह से सुनवाई नहीं कर सकते।

मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव की पीठ ने कहा, "इसलिए, इस न्यायालय के क्षेत्रीय न्यायाधिकरण के अंतर्गत किसी भी तरह की कार्रवाई का कारण नहीं बनता और मौजूदा याचिका की इस अदालत में सुनवाई नहीं हो सकती।"

पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता एनजीओ, सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) को उचित मंच पर इस मामले को उठाने की इजाजत दे दी।

एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने अदालत से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार और कांडला पोर्ट ट्रस्ट (केपीटी) को द्रव्य संग्राहक टैंकों के उद्देश्य के लिए 28 मार्च, 2014 को फ्रेंड्स सॉल्ट वर्क्‍स एंड एलाइड इंडस्ट्री (एफएसडब्ल्यूएआई) को आवंटित किए गए 50 एकड़ जमीन के पट्टे रद्द करने के लिए कहे।

केंद्र ने क्षेत्रीय न्यायाधिकरण के अभाव के आधार पर याचिका का विरोध किया।

अदालत ने भूषण के निवेदन को अस्वीकार करते हुए कहा कि केपीटी के संचालन में केंद्र सरकार की भूमिका है।

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