चुनावों में खर्च सीमा हटा कर राष्ट्रीय चुनाव निधि के गठन की मांग

चुनावों में उम्मीदवारों की खर्च की सीमा तय करने को अव्यवहारिक बताते हुए आज राज्यसभा में इसे हटाने और सरकार के स्तर पर चुनावों के लिए राष्ट्रीय चुनाव निधि के गठन की मांग की;

Update: 2019-07-26 17:20 GMT

नई दिल्ली । चुनावों में उम्मीदवारों की खर्च की सीमा तय करने को अव्यवहारिक बताते हुए आज राज्यसभा में इसे हटाने और सरकार के स्तर पर चुनावों के लिए राष्ट्रीय चुनाव निधि के गठन की मांग की गयी जिससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लायी जा सके। 

कांग्रेस के प्रो. एम वी राजीव गौड़ा ने सदन में अपना निजी विधेयक ‘लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 2014’ पेश करते हुए कहा कि चुनावों में उम्मीदवारों की खर्च की सीमा तय किये जाने का उलटा असर हो रहा है और इससे भ्रष्टाचार तथा अवैध गतिविधियों को बढावा मिल रहा है। विधेयक में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन कर खर्च की सीमा तय करने संबंधी प्रावधान को हटाने की बात कही गयी है। 

उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि जो आदर्शवादी कानून बनाये गये हैं उनका उलटा असर हो रहा है। चुनाव लड़ने के लिए जितने संसाधन और धन की जरूरत होती है उसके कारण खर्च सीमा का उल्लंघन होना लाजमी है इसलिए उम्मीदवार कानून से बचने के लिए गलत तरीकों को अपनाता है। उन्होंने कहा कि चुनावी खर्च सीमा तय करना व्यवाहारिक नहीं है और इसे हटा देना चाहिए ताकि पारदर्शिता आये तथा सबको पता चले कि कौन उम्मीदवार चुनाव में कितना खर्च कर रहा है। एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रूपये का खर्च हुआ है और कहा गया है कि इसमें से 45 प्रतिशत सत्तारूढ पार्टी ने खर्च किया है। 

गौड़ा ने सुझाव दिया कि देश में चुनाव कराने के लिए राष्ट्रीय चुनाव निधि गठित की जानी चाहिए। इसके दो हिस्से हाेने चाहिए और पहले हिस्से में से बड़े राजनीतिक दलों को उनके पिछले चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर राशि दी जानी चाहिए। दूसरे हिस्से में से पहली बार चुनाव लड़ने वालों तथा छोटे दलों को पैसा दिया जाना चाहिए। इससे चुनाव खर्च में पारदर्शिता आयेगी। 

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