आजादी के हर सिपाही ने लगाया ‘वंदे मातरम्’ का नारा : रविशंकर प्रसाद

भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया;

Update: 2025-12-09 03:52 GMT

‘वंदे मातरम्’ ने क्रांतिकारियों को दी ऊर्जा, रविशंकर प्रसाद ने याद दिलाई ऐतिहासिक भूमिका

  • आजादी की लड़ाई में गूँजा ‘वंदे मातरम्’, रविशंकर प्रसाद ने किया उल्लेख
  • रविशंकर प्रसाद बोले-  फांसी के फंदे पर भी गूँजता था ‘वंदे मातरम्’
  • वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर रविशंकर प्रसाद ने रेखांकित किया ऐतिहासिक महत्व

नई दिल्ली। भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर इसके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में जितने भी क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उन सभी लोगों ने वंदे मातरम का नारा जरूर लगाया।

उन्होंने कहा कि यह नारा इन क्रांतिकारियों को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत करता था। यह सभी लोग वंदे मातरम का नारा लगाते हुए फांसी के फंदे को अपने गले में लगा लेते थे। दक्षिण में सुब्रमण्यम भारती ने इसका उद्घोष किया था और इसके बाद रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे विस्तार दिया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बताया कि आखिर इस गीत को क्यों तोड़ा गया, क्योंकि जिन्ना को इससे नफरत थी। इसी वजह से पंडित नेहरू पीछे हट गए थे। इन सब बातों के बारे में देश को पता होना चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि कैसे कांग्रेस ने वंदे मातरम पर कुठाराघात किया और आज तक कांग्रेस का यही रूख है। अब इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

भाजपा सांसद ने कहा कि इन लोगों ने सिर्फ राजनीतिक लाभ अर्जित करने के मकसद से देश का बंटवारा किया और वंदे मातरम के भाव को भी कमजोर करने का प्रयास किया। लेकिन, आज प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में वंदे मातरम की ऐतिहासिकता को रेखांकित किया। जिसने सभी लोगों को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कर दिया।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में वंदे मातरम में निहित राष्ट्रभक्ति की भावना को विस्तार से देशवासियों को बताने की कोशिश की। हम सभी लोगों को इस बारे में सीखने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री ने बताया कि वंदे मातरम के रचयिता सिर्फ बंकिम बाबू ही नहीं, बल्कि बाद में लोकमान्य तिलक, अरविंदो घोष, बिपिन चंद्र पाल सहित जितने भी आजादी की लड़ाई में योगदान देने वाले लोग थे, उन सभी ने वंदे मातरम के भाव को आत्मसात किया था।

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