समझौते की आस में एक दिन और खिंचा जलवायु सम्मेलन
मिस्र के शर्म अल शेख में चल रहा संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन निर्धारित समय से एक दिन और लंबा खिंच गया है. वार्ताकारों के बीच शायद 'लॉस एंड डेमेज' के भुगतान पर सहमति नहीं बन पा रही है;
संयुक्त राष्ट्र के 27वें जलवायु सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के साथ-साथ इस बार 'लॉस एंड डेमेज' के मुद्दे पर बहुत जोर रहा. दरअसल जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे गरीब और विकासशील देश चाहते हैं कि पांरपरिक तौर पर कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार रहे औद्योगिक देश उन्हें आर्थिक मदद दें ताकि वे जलवायु परिवर्तन की वजह से आ रही आपदाओं में होने वाले नुकसान की भरपाई कर सकें. इस मुद्दे पर शर्म अल शेख के जलवायु सम्मेलन में बहुत खींचतान रही है.
जलवायु पर यूरोपीय संघ के नीति प्रमुख फ्रांस टिमरमान्स ने वार्ताकारों से कहा है कि वे ऐसे किसी समझौते पर पहुंचें जो पृथ्वी के तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के अब से पहले हुए समझौतों पर आधारित हो. उन्होंने एक ट्वीट में शनिवार को कहा, "ग्लोसगो सम्मेलन में जिस पर सहमति बनी थी, यूरोपीय संघ उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए एकजुट है. साझेदारों के लिए हमारा संदेश साफ है: 1.5 सेल्सियस का लक्ष्य आज और यहां पर खत्म नहीं हो सकता."
वार्ताकार शनिवार को एक समझौते पर पहुंचने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए पैसे देने और इसकी जिम्मेदारी तय करने के मुद्दे पर गंभीर मतभेद दिखाई पड़ रहे हैं. इसीलिए समझौते की उम्मीद में 18 नवंबर तक चलने वाले सम्मेलन को एक दिन और आगे बढ़ाया गया है.
शुक्रवार को जारी हुए समझौते के मसौदे में तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने को लेकर सभी लगभग 200 देशों ने वचनबद्धता दोहराई है. लेकिन लॉस एंड डेमेज के मुद्दे पर पेंच फंसा हुआ है. लगभग 100 विकासशील देशों और चीन ने एक वैश्विक फंड बनाने का प्रस्ताव रखा है, लेकिन यूरोपीय संघ और अमेरिका उससे खुश नजर नहीं आते.
यूरोपीय संघ ने कहा है कि वह मुआवजा देने को तैयार है. लेकिन टिमरमान्स का कहना है कि इस फंड से सिर्फ उन देशों की मदद की जानी चाहिए, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, ना कि सारे विकासशील देशों की. पश्चिमी देशों का कहना है कि चीन अब दुनिया में सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाला देश है तो उसे भी पहले से औद्योगिक रूप से विकसित हो चुके देशों की तरह ही देखा जाना चाहिए. लेकिन चीन का कहना है कि उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन पश्चिमी देशों से कम है और हाल तक ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्सर्जन में उसका योगदान काफी कम है.
बुनियादी मुद्दों पर तीखे मतभेदों की वजह से सम्मेलन को एक दिन और खींचना पड़ा है. अब सबकी निगाहें अंतिम समझौते पर टिकी हैं. उसी से पता चलेगा कि जलवायु संकट से निपटने की दिशा में शर्म अल शेख के सम्मेलन में कितनी प्रगति हुई है. ये सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब यूरोप में युद्ध चल रहा है और कई देशों में ऊर्जा का संकट पैदा हो गया है. खासकर कई यूरोपीय देश आने वाली सर्दियों को लेकर परेशान है कि ऊर्जा की जरूरत को कैसे पूरा किया जाएगा.