दिल्ली में प्रदूषण से लड़ने के लिए निर्माण पर बैन, लेकिन मजदूर कहां जाएं
दिल्ली सरकार ने जहरीली होती हवा के खिलाफ कार्रवाई करते हुए निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है, लेकिन कई ऐसे मजदूर हैं जिनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.;
तोताराम मौर्य अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं और उनके ऊपर सात लोगों का पेट भरने की जिम्मेदारी है. वह निर्माण स्थलों पर ईंट और सीमेंट की बोरियों ढोने का काम करते हैं, लेकिन दिल्ली में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगने के कारण उन्हें 10 दिन से कोई काम नहीं मिला है.
यमुना नदी के किनारे स्थित अपनी झुग्गी के पास बैठे मौर्य कहते हैं, "अगर मैं वायु प्रदूषण से बीमार हो जाऊं और मर जाऊं, तो मैं काम करते हुए मरना पसंद करूंगा, क्योंकि मेरे पास परिवार का पेट भरने के लिए कुछ होगा."
दो करोड़ की आबादी वाला दिल्ली शहर सालभर चरम मौसम का सामना करता है. चिलचिलाती गर्मी से लेकर मूसलाधार बारिश और सर्दी शुरू होने से पहले शहर के लोग जहरीली धुंध का सामना करते हैं.
हर साल एक ही समस्या
दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में से एक है. अक्टूबर-नवंबर की शुरुआत से ही शहर खराब वायु गुणवत्ता की चपेट में आ जाता है. समस्या से निपटने के सरकार के वादों के बावजूद हर साल दिल्ली इस दौरान खराब एयर क्वालिटी से जूझती है.
धूल और वाहनों के धुएं को कम करने की उम्मीद में पहले भी निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. इससे शहर को भले कुछ राहत मिले, लेकिन मौर्य जैसे हजारों मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं. अधिकारी हवा में सूक्ष्म कणों को साफ करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसा नहीं करने पर यह कण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा से लगभग 20 गुना अधिक स्तर तक बढ़ सकते हैं.
45 वर्षीय मौर्य को एक दिन के काम के लिए 500 रुपये मिलते हैं. उनके लिए भी सर्दियों में जहरीली हवा के बीच काम करना मुश्किल होता है. वह कहते हैं, "खासकर ऐसे समय में भारी सामान उठाना कठिन है, जब प्रदूषण हो. जब धुआं फेफड़ों में जाता है और आंखें जलने लगती हैं तो मुझे बहुत खांसी होती है." मौर्य के मुताबिक बचाव का एकमात्र उपाय चेहरे पर रूमाल डालना है.
दिल्ली को चाहिए साफ हवा
हर साल इस समय ठंडी हवा धुंध, धुएं और धूल से मिल कर भारी हो जाती है और आसमान पर स्मॉग छा जाता है. निर्माण के कारण उड़ने वाली धूल, गाड़ियों से निकला धुआं और खेतों में पराली जलने से उठा धुआं इस स्मॉग की चादर को बनाते हैं. हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों (पार्टिकुलेट मैटर) को प्रदूषण का एक बड़ा पैमाना माना जाता है. पीएम 2.5 बेहद छोटे कण होते हैं और ये इंसान के शरीर में जाकर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं.
समाधान की तलाश में शहर के अधिकारियों ने निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगा दिया है, शहर में आने वाले भारी वाहनों की एंट्री पर रोक लगा दी और स्कूल भी बंद कर दिए गए. एंटी स्मॉग गन से आसमान में फैले धूल के कणों को हटाया जा रहा है.
पिछले हफ्ते हुई बारिश से शहर के लोगों को थोड़ी राहत मिली. लेकिन बैन के बावजूद कुछ लोगों ने रविवार को दीवाली पर खूब पटाखे चलाए. इससे दिल्ली में सोमवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 420 तक पहुंच गया. स्विस समूह आईक्यूएयर द्वारा यह स्तर "खतरनाक" श्रेणी में आता है.
लाखों लोगों की जान लेता प्रदूषण
हवा की गुणवत्ता को 0 से 500 के स्केल पर नापा जाता है. 0 से 50 के बीच एयर क्वॉलिटी को अच्छा माना जाता है, जबकि 300 से ऊपर यह बेहद खतरनाक होती है. दिल्ली में हर साल एक्यूआई 300 से ऊपर दर्ज किया जाता है. इससे शहर के लोगों में तरह-तरह की बीमारियां होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण से हर साल दुनिया भर में 42 लाख लोगों की मौत हो जाती है.
अधिकारी हवा खराब होने पर लोगों को बाहरी गतिविधियां सीमित करने की सलाह देते हैं. लेकिन मौर्य जैसे मजदूरों का कहना है कि वे घर पर बैठने या बीमार होने का जोखिम नहीं उठा सकते. 23 साल के एक और मजदूर प्रमोद कुमार कहते हैं, "अगर मैं बीमार पड़ गया, तो सब कुछ बिखर जाएगा." कुमार भी शिकायत करते हैं कि उन्होंने कई दिनों से काम नहीं किया है.