संसद सत्र की घोषणा 45 दिन पहले करना अभूतपूर्व : कांग्रेस

कांग्रेस ने संसद के मानसून सत्र शुरु होने की सरकार की घोषणा पर हैरानी जताते हुए कहा है कि अक्सर संसद सत्र शुरु होने के कुछ दिन पहले ही इसकी सूचना दी जाती थी, लेकिन इस बार अभूतपूर्व तरीका अपनाते हुए डेढ़ माह से ज्यादा समय पहले ही सत्र शुरु करने की घोषणा कर दी है;

Update: 2025-06-04 19:01 GMT

नई दिल्ली। कांग्रेस ने संसद के मानसून सत्र शुरु होने की सरकार की घोषणा पर हैरानी जताते हुए कहा है कि अक्सर संसद सत्र शुरु होने के कुछ दिन पहले ही इसकी सूचना दी जाती थी, लेकिन इस बार अभूतपूर्व तरीका अपनाते हुए डेढ़ माह से ज्यादा समय पहले ही सत्र शुरु करने की घोषणा कर दी है।

कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने बुधवार को एक बयान में कहा कि आमतौर पर संसद सत्र की तारीखों की घोषणा कुछ दिन पहले की जाती रही है, लेकिन इस बार सरकार ने अत्यधिक तत्परता दिखाते हुए सत्र शुरू होने से 47 दिन पहले ही तारीखों का एलान कर दिया है। यह अभूतपूर्व है और किसी सरकार में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि यह निर्णय मोदी सरकार ने केवल इसलिए लिया है ताकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन द्वारा बार-बार उठाई जा रही विशेष बैठक की मांग से बचा जा सके। कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के विभिन्न दलों के नेता तत्काल संसद की बैठक बुलाकर राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न गंभीर मुद्दों पर चर्चा कराने को महत्व दे रही है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर सरकार को जवाब देना चाहिए कि वह पहलगाम बर्बर हमलों के जिम्मेवार आतंकवादियों को अब तक न्याय के कटघरे में लाने में विफल रहने, ऑपरेशन सिंदूर के प्रभाव और उसके बाद उत्पन्न हालात तथा ऑपरेशन का स्पष्टरूप से राजनीतिकरण करने और सिंगापुर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के अहम खुलासों पर चर्चा हो।

उन्होंने कहा कि अगर विशेष सत्र बुलाती तो उसमें यह भी सवाल किये जाते कि भारत को पाकिस्तान के साथ एक ही श्रेणी में रखे जाने की गंभीर और चिंताजनक कूटनीतिक स्थिति तथा पाकिस्तान की वायुसेना में चीन की गहरी और खतरनाक घुसपैठ के स्पष्ट प्रमाण पूछे जाते। इसमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता को लेकर बार-बार किए जा रहे दावों, विदेश नीति और कूटनीतिक स्तर पर सरकार की लगातार होती विफलताओं से जुड़े सवाल भी होते।

कांग्रेस नेता ने कहा कि मानसून सत्र के दौरान भी ये तमाम मुद्दे, जो राष्ट्रहित में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, चर्चा के केंद्र में रहेंगे। प्रधानमंत्री ने भले ही विशेष सत्र से खुद को अलग रखा हो, लेकिन छह सप्ताह बाद उन्हें इन कठिन सवालों का जवाब देना ही होगा।

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