आंध्रप्रदेश सरकार ने महिला पुलिस के बारे में विवादित आदेश को वापिस लिया

आंध्र प्रदेश सरकार ने गुरूवार को उच्च न्यायालय को अवगत कराया कि वह महिला सुरक्षा सचिवों को 'महिला पुलिस' के रूप में मनोनीत करने के अपने आदेश को वापिस ले रही है;

Update: 2021-12-10 00:28 GMT

अमरावती। आंध्र प्रदेश सरकार ने गुरूवार को उच्च न्यायालय को अवगत कराया कि वह महिला सुरक्षा सचिवों को 'महिला पुलिस' के रूप में मनोनीत करने के अपने आदेश को वापिस ले रही है।

राज्य सरकार के इस आदेश को अदालत में चुनौती दी गई थी और इसी मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने न्यायालय को अवगत कराया कि वह उस आदेश को वापिस ले रही है।

मुख्य न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायाधीश ए वी सेशा साई की खंडपीठ को यह भी जानकारी दी गई कि सरकार इस दिशा में भी विस्तार से विचार कर रही है कि महिलाओं की सेवाओं का इस्तेमाल किस प्रकार किया जा सकता है। सरकार ने अदालत को बताया कि इस मामले में जल्दी ही एक हलफनामा दायर किया जाएगा। इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह तक स्थगित कर दी।

गौरतलब है कि जून माह में राज्य सरकार ने अपने एक आदेश में महिला सुरक्षा सचिवों का दर्जा बढ़ाते हुए उन्हें महिला कॉंस्टेबल के रूप में मनोनीत किया था। इसके बाद जुलाई में जिला अधिकारियों ने लगभग 15,000 महिलाओं को गांवों तथा वार्ड सचिवालयों में नियुक्त किया था। इस योजना के तहत ग्राम समरक्षणा कार्यादारसिस / वार्ड महिला समरक्षणा कार्यादारसिस को 15 जिम्मेदारियां दी गई थी जिनमें स्थानीय पुलिस के एसएचओ को अपराधों तथा कानून व्यव्स्था के बारे में जानकारी देना, महिलाओं को अपराधों, घरेलू हिंसा, साइबर क्राइम, तनाव को झेलने, लिंग आधारित हिंसा, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा के प्रति जागरूक बनाना शामिल था।

इस मामले में विशाखापट्टनम के उमामाहेश्चरा राव ने एक जनहित याचिका दायर की थी और इसे पुलिस भर्ती बोर्ड के नियमों के विरूद्ध बताया था। अक्टूबर में अदालत ने सरकार को इस मामले में एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था कि आखिर किस आधार पर उसने वार्ड तथा ग्राम सुरक्षा सचिवों को महिला पुलिस का दर्जा दिया तथा वह जिम्मेदारियां क्यों सौंपी जिनका निर्वहन करना पुलिस विभाग का काम है। इसी मामले में अदालत ने मुख्य सचिव, प्रधान सचिव ,गृह तथा आंध्रप्रदेश पुलिस सेवा आयोग के अघ्यक्ष को नोटिस जारी किए थे।

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