अंग्रेजी छोड़ हिंदी में ही बात करें, कहा अमित शाह ने
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि अलग अलग राज्यों के लोगों को आपस में अंग्रेजी की जगह हिंदी में बात करनी चाहिए.;
शायद इसलिए इस बार शाह ने सावधानीपूर्वक यह कहा कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में मान लेना चाहिए, न कि स्थानीय भाषाओं के. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को भी और लचीला बनाया जाना चाहिए और उसमें दूसरी स्थानीय भाषाओं से शब्दों को जोड़ लेना चाहिए.
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भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. अंग्रेजी और हिंदी के अलावा 21 प्रादेशिक भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया है. राज्यों के बीच संवाद के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है.
हिंदी को सरकारी बढ़ावा
लेकिन एनडीए सरकार लंबे समय से हिंदी के इस्तेमाल का विस्तार करने की कोशिश कर रही है, जिसका देश के कई कोनों में विरोध भी किया जाता है. शाह ने खुद बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत अजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है. यहां तक कि पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी के 22,000 शिक्षकों की भर्ती कराई गई है.
शाह ने यह भी बताया कि पूर्वोत्तर के नौ जनजातीय समुदायों ने अपनी बोलियों की लिपि को देवनागरी में परिवर्तित कर लिया है. इसके अलावा सभी आठ राज्य हिंदी को स्कूलों में दसवीं कक्षा तक अनिवार्य करने पर भी सहमत हो गए हैं.
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गृह मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि नौवीं कक्षा तक छात्रों को हिंदी का मूल ज्ञान देने की जरूरत है और हिंदी पढ़ाने की परीक्षाओं पर भी और ध्यान दिए जाने की जरूरत है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हिंदी के शब्दकोष का दोबारा अवलोकन कर उसे फिर से छापने की भी जरूरत है.
हिंदी के विस्तार पर केंद्र सरकार के इस जोर को लेकर फिर से विरोध शुरू हो रहा है. कांग्रेस पार्टी की केरल इकाई ने एक ट्वीट में कहा कि बीजेपी को हिंदी को विकल्प के रूप में थोपना नहीं चाहिए. #stophindiimposition के हैशटैग के साथ और भी कई लोगों ने हिंदी थोपे जाने के खिलाफ कई ट्वीट किए.