कुपोषण से देश को हो रहा 4 प्रतिशत जीडीपी का नुकसान
उद्योग संगठन एसोचैम ने कहा है कि कुपोषण के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को चार प्रतिशत का नुकसान हो रहा है;
नई दिल्ली। उद्योग संगठन एसोचैम ने कहा है कि कुपोषण के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को चार प्रतिशत का नुकसान हो रहा है और वित्त मंत्री अरुण जेटली को आगामी बजट में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ज्यादा आबंटन करना चाहिए। बाजार शोध एवं सलाह कंपनी ईवाई के साथ मिलकर तैयार एक शोधपत्र में संगठन ने यह बात कही है। इसमें कहा गया है कि दुनिया के 50 प्रतिशत कुपोषित बच्चे भारत में हैं।
साथ ही परिवार में महिलाओं और लड़कियों को सबसे अंत में खाना दिया जाता है जिससे उनके पोषण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के हवाले से शोधपत्र में कहा गया है कि छह से 59 महीने की उम्र के देश के 60 प्रतिशत बच्चे आयरन की कमी के शिकार हैं। मौजूदा सरकार ने महिलाओं एवं लड़कियों के लिए कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन इनके दायरे में आने वाली महिलाओं और लड़कियों की स्थिति भी पोषक आहार के मामले में कोई बहुत बेहतर नहीं है। पंद्रह से 49 साल की उम्र की 58 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं तथा 55 प्रतिशत दूसरी महिलाओं में आयरन की कमी है।
शोध पत्र के अनुसार, देश की बड़ी आबादी कुपोषित तथा असंतुलित आहार का सेवन करती है, चाहे वह पोषक तत्वों की कमी के कारण हो या उसकी अधिकता के कारण या फिर उसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो। यह समझना जरूरी है कि कुपोषण सिर्फ भोजन की कमी से ही नहीं स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, साफ-सफाई, संसाधनों तथा महिला सशक्तिकरण की कमी से भी होता है। एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि बजट में सरकार का फोकस ऐसी नीतियों पर होना चाहिए जिनसे स्वास्थ्य एवं सामाजिक अंतरों को पाटा जा सके। उचित पोषण देश के विकास के लिए काफी महत्तवपूर्ण है।
शोधपत्र में कहा गया है कि सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विविध प्रकार के खाद्यान्नों के सेवन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ, चावल या गेहूं की तुलना में बाजरे में ज्यादा प्रोटीन, खनिज तथा विटामिन होते हैं। इनमें विटामिन बी, कैलसियम, आयरन, पोटैशियम, मैगनीशियम तथा जस्ता जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं।
इन फसलों की लागत भी कम होती है। इसके बावजूद इसे गरीबों का आहार माना जाता है तथा चावल और गेहूं को इसके मुकाबले तरजीह दी जाती है। गुलेटीन से मुक्त होने के कारण गुलेटीन से एलर्जी वाले लोग या उच्च मधुमेह के मरीज भी इसका सेवन कर सकते हैं।