मेहनतकश बच्चों की फिल्म है सुपर 30
ऋतिक रोशन की फिल्म 'सुपर 30' देखने के लिए लोगों में खासा उत्साह दिख रहा है ट्विटर पर भी जमकर रिएक्शन आ रहे हैं;
फिल्म - सुपर 30
निर्देशक - विकास बहल
कलाकार - ऋतिक रोशन, मृणाल ठाकुर, पंकज त्रिपाठी और अमित साध
बायोपिक फिल्म में डायरेक्टर विकास बहल ने एक और नाम जोड़ दिया है वो है "सुपर 30", यह एक ऐसे इंसान की सच्ची कहानी है जिसका नाम है आनंद कुमार, जिन्होंने अपनी इच्छाओं और प्यार को त्याग कर एक ऐसे तबके को ऊपर उठाया जिनमें लगन और मेहनत तो है लेकिन आर्थिक स्थिति बिल्कुल डावांडोल है। इस किरदार को जीने के लिए निर्देशक विकास बहल ने ऋतिक रोशन को चुना जो डांस और एक्शन में माहिर है लेकिन इस फिल्म में उनका बिल्कुल सीधासाधा किरदार है जहाँ वो भोजपुरी बोलते नज़र आये है और उनके साथ है नायिका टीवी आर्टिस्ट मृणाल ठाकुर। जहाँ तक फिल्म की कहानी की बात है पटना शहर में गणित के एक छात्र आनंद कुमार यानि ऋतिक रोशन को वहां के मंत्री श्रीराम सिंह यानि पंकज त्रिपाठी उसे टॉप करने पर सम्मानित करते है रामानुजन मेडल देकर। आनंद को अपनी मेहनत का फल उस वक़्त मिलता है जब उसे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उसे एडमिशन के लिए बुलाया जाता है मगर उसकी गरीबी उसके रास्ते आ जाती है, उसके पिता यानि वीरेंद्र सक्सेना डाकिया है और किसी तरह से अपने परिवार का पेट पाल रहे है इसीलिए वो अपने बेटे को कैम्ब्रिज भेजने में असमर्थ होते है जिसका दुःख उनके चेहरे पर साफ नज़र आता है।
इसी बीच उसकी प्रेमिका ऋतू यानि मृणाल ठाकुर भी उससे नाराज़ होकर चली जाती है फिर एक दिन आनंद को लल्लन यानि आदित्य श्रीवास्तव का साथ मिलता है और वो उसको कोचिंग टीचर बना देता है जहाँ उसके दिन बदल जाते है वह पैसा कमाने लग जाता है और अमीरी ज़िन्दगी जीने लग जाता है, क्योँकि कोचिंग के लिए जो आते है वो अमीर घरों के बच्चे है इसी तरह आते जाते उसे एहसास होता है की वो अपने जैसे बच्चों के लिए कुछ नहीं कर पा रहा और वो चाहता है की किसी भी बच्चे को उसकी जैसी ज़िन्दगी न जिनी पड़े जो पैसों के आभाव से उच्च शिक्षा से वंचित हो जाए और यही से उसकी ज़िन्दगी की नई शुरुआत होती है, वो अपनी बात को अपने भाई प्रणव कुमार यानि नंदिश सिंह से कहता है और भाई का सहारा मिलते ही वो ऐसे 30 बच्चों को चुनता है जिनके अंदर मेहनत और लगन तो है लेकिन सहारा नहीं है वो उन बच्चों को आईआईटी की तैयारी करने का फैसला करता है लेकिन यह फैसला कितना मुश्किल साबित होता है यह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा। जहाँ तक एक्टिंग की बात है यह फिल्म ऋतिक की बेहतरीन फिल्मों में कही जाएगी क्योँकि इसमें कोई चमक धमक नहीं है एक साधारण से बिहार के टीचर का किरदार है जो उन्होंने बहुत ख़ूबसूरती से जिया है। मृणाल अपने छोटे से किरदार में सही लगी है। वीरेंद्र सक्सेना पिता के किरदार में खूब जमे है तो अमित साध, पंकज त्रिपाठी भी अपने किरदार को बखूबी निभा गए है। जहाँ तक गीत संगीत की बात है तो गाने ज्यादा ज़बान पर नहीं चढ़े है। दो घंटे पैंतीस मिनट की यह फिल्म आपको जीवन की एक राह दिखा सकती है। हम इस फिल्म को 5/3 स्टार देंगे।
फिल्म समीक्षक
सुनील पाराशर