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चीनी' के जहर के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई

अमेरिका में खाद्य कंपनियों के सामने एक अति आत्मविश्वासी, अति उत्साही प्रशासन के नेतृत्व में एक बड़ी चुनौती खड़ी है जो आसानी से न झुकने वाली शक्तिशाली खाद्य लॉबी को परिवर्तन के लिए बाध्य करने वाली है

चीनी के जहर के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई
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- जगदीश रत्तनानी

अमेरिका में खाद्य कंपनियों के सामने एक अति आत्मविश्वासी, अति उत्साही प्रशासन के नेतृत्व में एक बड़ी चुनौती खड़ी है जो आसानी से न झुकने वाली शक्तिशाली खाद्य लॉबी को परिवर्तन के लिए बाध्य करने वाली है। उम्मीद है कि यह बदलाव ईमानदार भोजन का एक नया युग लाएगा जिसमें कंपनियों को अधिक बिक्री के लिए चीनी खिलाने के लिए महंगी कीमत चुकानी होगी।

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प ब्रिगेड का जंगल राज अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पहले से ही नकारात्मक गिरावट ला रहा है, वहीं 2025 की पहली तिमाही में पर्यटकों के आगमन में नाटकीय रूप से कमी की सूचना दी गई है। उधर एलोन मस्क के चेनसॉ ने अमेरिकी सरकार के कई हिस्सों को प्रभावी ढंग से अपंग कर दिया है क्योंकि अधिकतर विभागों को छोटा या समाप्त कर दिया गया है लेकिन 100 वर्षों में नहीं देखे गए इस तूफान के बीच विवादास्पद अमेरिकी स्वास्थ्य और मानव सेवा सचिव रॉबर्ट एफ. कैनेडी, जूनियर ने कुछ अच्छा कर दिखाने की ठानी है। पिछले पखवाड़े केनेडी ने तीन सरल शब्द कहे थे- 'चीनी जहर है'। इसके साथ ही उन्होंने बड़ी खाद्य कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले उत्पादों में शक्कर के उपयोग की जांच करने के लिए अपना एजेंडा निर्धारित किया। स्वास्थ्य सचिव ने कहा- 'अब से चार साल बाद, हम इनमें से अधिकांश उत्पादों को बाजार से बाहर करने जा रहे हैं; या जब आप किराने की दुकान पर जाएंगे तो आपको उनके बारे में पता चल जाएगा।'

यह एक नाटकीय और महत्वपूर्ण परिवर्तन है, पूरी तरह से सकारात्मक और स्पष्ट रूप से सही कदम है लेकिन यह एक 'गलत' व्यक्ति की ओर से उठाया गया है- जो अन्यथा एक साजिश रचने वाला विचारक है, वैज्ञानिक विरोधी मान्यताओं और टीकों के खिलाफ शेखी बघारने के लिए मशहूर है। चिकित्सा एवं अनुसंधान संगठनों का तर्क है कि वह अंतत: स्वास्थ्य नतीजों को नुकसान पहुंचाएगा और आबादी के बीच टीके के खिलाफ हिचकिचाहट बढ़ाएगा, जिससे बीमारी से लड़ना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। स्थिति ऐसी है कि स्वास्थ्य के खिलाफ स्वास्थ्य सचिव खड़े हैं। बहरहाल, कैनेडी के पास सोडा और मीठे पैक किए गए उत्पादों को बेचने वाले 'बिग फूड' (और 'बिग फार्मा') कंपनियों के खिलाफ एक बड़ा और सकारात्मक एजेंडा भी है जो अमेरिका में मोटापे और मधुमेह महामारी के लिए जिम्मेदार होने के लिए जाने जाते हैं। वे कहते हैं कि अमेरिका में 38 प्रतिशत बच्चे पहले से ही मधुमेह या प्रीडायबिटिक हैं।

इस बदलाव के कई पहलू हैं, परन्तु उल्लेखनीय बात यह है कि खाद्य पदार्थों में अधिकांश शक्कर की मिलावट या उपयोग दुनिया भर में और बेशक भारत में फैल गया है जिसकी जड़ें अमेरिकी खाद्य डिजाइन, पैकेजिंग और विपणन में हैं।

अगर वैश्वीकरण ने चीन में विनिर्माण नौकरियों और भारत में सॉफ्टवेयर सेवाओं में उछाल लाया, तो वैश्वीकरण ने इन लोगों के लिए चीनी और उच्च फ्रैक्टोज़ कॉर्न सिरप लोडेड सोडा, चिप्स, कपकेक और पैक किए गए भोजन के नाम पर एक गहरा धक्का दिया। दावा है कि यह जीवन शैली में सुविधा दिलाता है लेकिन यह सुविधाओं के साथ स्वास्थ्य पर टिक टिक करने वाला टाइम बम बन गया है। उल्लेखनीय है कि आरएफ के जूनियर 'भोजन और भोजन जैसे पदार्थों' की बात करते हैं क्योंकि यह तर्क दिया जा सकता है कि पैक किए गए भोजन के रूप में जो कुछ बेचा जाता है वह खाद्यान्न जैसा होता है लेकिन खाद्यान्न बिल्कुल नहीं होता है।
हमने इस अभियान को भारत में बार-बार होते देखा है जहां दिग्गजों के खिलाफ नई जागरूकता और कुछ सक्रियता जड़ पकड़ रही है।

इस बात पर गौर करें: भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के तुरंत बाद एक वैश्विक खाद्य दिग्गज ने नाश्ते के रूप में कॉर्नफ्लेक्स लॉंच किया। उन्होंने कहा कि इसे भारतीयों द्वारा पसंद किया जाना चाहिए। कॉर्नफ्लेक्स के विज्ञापन पर भारतीय बाजार में लाखों डालर खर्च किए गए। प्रोमो में भारतीयों को कुल्चा, समोसे या इडली जैसे पारंपरिक गर्म नाश्ते को अस्वीकार करने और नए लॉन्च पर स्विच करने के लिए आमंत्रित किया जाता था। कॉर्नफ्लेक्स को एक ऐसा विकल्प बताया गया जो उपयोग में आसान, स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता है। उसी कंपनी ने जल्द ही अपने नाश्ते के अनाज के कई प्रकार पेश किए, उन्हें आकार, आकर्षक रूप से लाल, नीले और भूरे रंगों में 'फ्रॉस्टी डस्ट' के साथ प्रस्तुत किया गया- सभी में चीनी व रंग थे जो और कुछ भी हो लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थे। भारतीयों की आदतों को गर्म भारतीय भोजन से बदलकर अस्वास्थ्यकर पैक किए गए उत्पादों में बदलने की मांग पर जोर दिया जा रहा था।

यह उदाहरण कई खाद्य उत्पाद कंपनियों में से एक का है जिसने चीनी, कृत्रिम रंग और अपने उत्पादों में एडिटिव्स के वर्गीकरण (खाद्य में विभिन्न प्रयोजनों के लिए मिलाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पदार्थ शामिल हैं, जिनमें संरक्षण, स्वाद में सुधार, रंग निखारना और बनावट में बदलाव करना शामिल है) को आगे बढ़ाया है। फिर मार्केटिंग पेडल पर दबाव डाला और समय के साथ आम भारतीयों के स्वास्थ्य की कीमत पर व्यवसाय बनाने और बढ़ाने में सफल रहे। इनके लक्षित टारगेट में बड़ों के साथ बच्चे भी शामिल हैं। देश की सबसे पुरानी परिचालित कंपनियों में से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने एक बार जैम को 'ब्रेन फूड' के रूप में पेश करने की कोशिश की और यह तब तक जारी रहा जब तक कि सरकार ने इस कंपनी को काल्पनिक दावा करने से रोक नहीं दिया।

आज भी भारत में कई प्रमुख खाद्य और पेय ब्रांड अपने आप में संदिग्ध सामग्री ले जाते हैं और यह अक्सर इतनी अधिक मात्रा में होता है जिसकी कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अनुमति नहीं दी जाएगी। कई भारतीय ब्रांड नियमों और कानूनों के बड़े उल्लंघनकर्ता हैं लेकिन प्रतिष्ठित, विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त और भारी विपणन वाले अंतरराष्ट्रीय ब्रांड उनके पैमाने और पहुंच देखने के बावजूद खाने के लिए बदतर हो सकते हैं।

सोशल मीडिया अभियानों ने इनमें से कई को 'भारत' बनाम 'रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड' मैच-अप सूची में उजागर किया है और यह अक्सर ब्रांडों का मामला है जो भारत में अधिक चीनी और विभिन्न व कभी-कभी खतरनाक रासायनिक इनपुट के साथ दूर हो रहे हैं जबकि अन्य बाजारों में इनका स्पष्ट उल्लेख करते हैं।

भारत में ढीले नियम भी समस्या का एक हिस्सा हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) प्रणाली की सक्रियता के बारे में शक नहीं है लेकिन उसकी कमजोरी को उजागर करता है। इसमें क्षमता, पारदर्शिता, निरीक्षण की कमी और खराब प्रवर्तन के लिए कई अन्य चुनौतियों की समस्याएं शामिल हैं। भारतीय बाजार में अवसर का आकार अपने आप में एक समस्या है क्योंकि फायदा कमाने के लिए ब्रांड कुछ भी करेंगे और आम तौर पर सफलता पाते हैं यदि उनका टाईम होराइजन (टाईम होराइजन को अक्सर निवेश समय के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह वह समय सीमा है जिसके दौरान कोई निवेशक किसी योजना में अपनी पूंजी का निवेश करता रहेगा। इस अवधि के बाद कोई निवेशक अपना निवेश वापस ले लेगा। आम तौर पर निवेश के उद्देश्य और रणनीतियां निवेश टाईम होराइजन तय करती हैं) बहुत सीमित नहीं है।

इस मामले को भारतीय उपभोक्ताओं में जागरूकता की (हाल तक की) सापेक्ष कमी और ब्रांडों को न केवल सामग्री के लिए बल्कि पैकेजिंग और विज्ञापन में जो कहा जाता है- स्वस्थ, तेज, स्मार्ट परिणाम देने के दावों के साथ, उसके लिए भी जिम्मेदार ठहराने की चुनौतियों के साथ जोड़ना चाहिए; या इसके कुछ प्रकार, काफी नियमित रूप से उपभोक्ताओं पर थोप दिए जाते हैं। ये बातें कंपनी के मार्केटिंग साहित्य (किसी उत्पाद, सेवा या विचार को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सभी लिखित सामग्री, प्रकाशन व दस्तावेज़, इसमें ब्रोशर, विज्ञापन, बिक्री पत्र और वेबसाइट सामग्री जैसी चीज़ें शामिल हैं जिनका उद्देश्य संभावित ग्राहकों को सूचित करना और उन्हें पटाना है) में फ़ीड करता है कि, कैसे एक ब्रांड 'बाधाओं' के खिलाफ सफल हुआ या कैसे एक 'रणनीति' विफल हो गई और बदल गई जिसके कारण उत्पाद की कीमत कम करनी पड़ी। इस प्रकार सीमित और संकीर्ण मार्केंटिंग नीतियों का विवरण देने वाली प्लेबुक की सफलता का जश्न मनाने के बजाय मुद्दों के नैतिक आयाम को चिह्नित किया गया।

अमेरिका में खाद्य कंपनियों के सामने एक अति आत्मविश्वासी, अति उत्साही प्रशासन के नेतृत्व में एक बड़ी चुनौती खड़ी है जो आसानी से न झुकने वाली शक्तिशाली खाद्य लॉबी को परिवर्तन के लिए बाध्य करने वाली है। उम्मीद है कि यह बदलाव ईमानदार भोजन का एक नया युग लाएगा जिसमें कंपनियों को अधिक बिक्री के लिए चीनी खिलाने के लिए महंगी कीमत चुकानी होगी। भोजन में स्वाद, रंग, रंजक या अन्य योजक के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। नमक की सीमा चेक की जानी चाहिए। चीनी पर टैक्स लगाया जा सकता है। इन खाद्य दिग्गजों को आम लोगों की कीमत पर खुद को और अपने शेयरधारकों को अमीर बनाने की मुफ्त की सवारी समाप्त होनी चाहिए। यदि ट्रम्प प्रशासन इसमें से थोड़ा सा भी जनता को देने में मदद करता है तो यह एक ऐसे युग में जश्न मनाने का एक अच्छा परिणाम होगा जहां आम तौर पर अंधेरा दिखता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : द बिलियन प्रेस)


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