अपनी क्षमता पहचानी शुरु हो गया नया सफर
अंबिकापुर ! इस छोटे शहर की कुछ महिलाएं हिम्मत बढ़ाने का काम कर रही हैं। एक समय अज्ञात भय से महिलाएं रात में घरों से निकलने का साहस नहीं कर पाती थीं,

दीपक सराठे
कभी घरों से निकलते डरती थी, आज चला रही ऑटो
अंबिकापुर ! इस छोटे शहर की कुछ महिलाएं हिम्मत बढ़ाने का काम कर रही हैं। एक समय अज्ञात भय से महिलाएं रात में घरों से निकलने का साहस नहीं कर पाती थीं, ये महिलाएं रात में भी ऑटो चला रही है और मर्दों को भी उनके घरों तक छोड़ रही है। इसका श्रेय जिले की कलेक्टर रहीं श्रीमती ऋतु सैन को देती है, जिन्होंने न केवल उनका हौसला बढ़ाया बल्कि आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऑटो रिक्शा भी दिलाया।
शहर में अभी ऐसी महिलाओं की संख्या 15 है। इन्हें लोग गुलाबी गैंग का नाम देते हैं और अब ये इसी नाम से पहचाना-जाना पसंद भी कर रही हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में इन महिलाओं के साहस को एक बेजोड़ उदाहरण के रुप में देखा जा रहा है। श्रीमती ऋतु सैन जब जिले की कलेक्टर बनकर आई तो उन्होंने सबसे पहले महिलाओं की उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने महिला सहायता समूहों के जरिए पहले उन्हें संगठित और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया। एक समूह ऐसी महिलाओं का बना जो ऑटो चालक के रुप में काम करने के लिए तैयार हो गई। बस क्या था, यहीं से उनका सफर शुरू हो गया। इन महिला ऑटो चालकों की गुलाबी पोषाक ने इन्हें एक अलग और अनूठी पहचान दी है। यह दल गुलाबी गैंग की नाम से जाना जाने लगा है। इस दल की अध्यक्ष गीता सिंह का कहना है कि इस संगठन का यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि इस संगठन के अंतर्गत महिला ऑटो चालकों का यूनीफार्म गुलाबी है। प्रतिदिन हर महिला ऑटो चालक बिना डर व झिझक के काम करते हुए 300 से 800 रूपये तक कमाती है। पिछले एक वर्ष से ये महिला आटो चालक अपने परिवार की आर्थिक मदद कर रही है। गुलाबी गैंग की सरगुजा ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में अन्य प्रांतों में भी चर्चा में है।
... तो सीखाती हैं सबक
महिला ऑटो चालक अपने दल के सभी सदस्यों से हर समय जुड़ी रहती हैं। उनका कहना है कि शुरूआती दौर में उन्हें अपने काम में काफी डर लगता था। ऐसा भी कई बार हुआ कि ऑटो चलाते फब्तियां कसने की कोशिश की, उन्होंने अपने साथियों को इसकी सूचना दी और बाद में ऐसे लोगों को गर्व सबक भी सिखाया।
होता है गर्व
गुलाबी गैंक की अध्यक्ष गीता सिंह का कहना है कि रात के 10 बजे पहले कोई अकेली महिला ऑटो में बैठने से डरती थी, परंत अब ऑटो चलाने वाली महिलाएं रात को 10 बजे मर्दों को उनके घर तक छोड़ा आती है। इस दल से जुड़ी महिला ऑटो चालक सुबह 6 बजे से रात 11 बजे की टे्रन भी कव्हर करते हैं जो आदिवासी जिले के एक छोटे शहर के लिए बड़ी मिसाल है।


