स्कूल जाते झुलस रहे हैं छोटे-छोटे बच्चे,सरकार के निर्देशों का निजी स्कूलों पर कोई असर नहीं
अंबिकापुर ! अम्बिकापुर में निजी विद्यालयो में अव्यवस्था चरम सीमा पर है जहां प्रदेश के नामचीन मनेंद्रगढ़ रोड स्थित एक निजी स्कूल में बसें बंद किये जाने

अंबिकापुर ! अम्बिकापुर में निजी विद्यालयो में अव्यवस्था चरम सीमा पर है जहां प्रदेश के नामचीन मनेंद्रगढ़ रोड स्थित एक निजी स्कूल में बसें बंद किये जाने से छोटे-छोटे बच्चे भारी भरकम बसते को लेकर पैदल लम्बी दूरी तय करने को मजबूर है तो वही दूसरे बड़े विद्यालय नमनाकला स्थित स्कूल का आलम यह है कि वहां छुट्टी के समय इतना लंबा जाम लगता है कितेज धूम में बाइक में बैठे बच्चो का हाल बेहाल हो जाता है।
शहर के नमनाकला रिंग रोड स्थित निजी स्कूल के जिस गेट से बच्चो की छुट्टी की जा रही है वह गेट सकरी गली से जाकर मिलता है और छात्रो के परिजन उस गली में बेतरतीब चार पहिया वाहन ले जाते है नतीजन ऐसा जाम लगता है कि चार पहिया वाहन और बाइक सवार आमने-सामने आकर फंस जाते है। परिणाम स्वरुप लग्जरी कार में आने वाले लोग तो सडक़ पर जाम लगा कर एयर कंडीशन का मजा लेते रहते है, लेकिन दो पहिया वाहन में बैठे मासूम तेज धूप में झुलसते रहते है, लेकिन स्कूल का कोई भी चौकीदार या अन्य स्टाफ इन बेतरतीब वाहनों को रोकने के लिए वहा मौजूद नहीं होता है। गौरतलब है कि ये लोग स्कूल संचालित कर मोटी फीस तो वसूल रहे है लेकिन छात्रो की सुविधाओं के प्रति अपनी जवाबदारी से कोसो दूर है। वही मनेंगढ़ स्थित निजी विद्यालय के द्वारा अपनी बसों को बंद किये जाने से छोटे बच्चो के लिए इस स्कूल में पढना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। दरअसल बसों को बंद करने से बच्चे अब प्राइवेट वैन से स्कूल जाते है और प्राइवेट वैन को स्कूल के अन्दर जाने की अनुमति नहीं है। लिहाजा बच्चो को मुख्य द्वार पर ही एनएच पर उतार दिया जाता है और बच्चे वहां से पैदल अपनी क्लास तक जाते है। बड़ी बात यह है कि भारी भीड़ वाले इस स्कूल के मुख्य द्वार के सामने एनएच पर बच्चे बेतरतीब चलते है और एनएच पर भारी वाहनों की आवा जाही से बड़ा ख़तरा भी बना रहता है। वही उक्त विद्यालय के मुख्य द्वार से बच्चों की क्लास की दूरी लगभग पौन किलोमीटर है और इतनी दूरी को भारी बस्ते के बोझ के साथ तय करना बच्चो के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है, वही इस स्कूल में छोटे बच्चो की जानकारी के मुताबिक कक्षा दूसरी की सभी कक्षाए स्कूल की तीसरी मंजिल में संचालित की जाती है। अब आप खुद ही होच सकते है की पहले मुख्य द्वार से लम्बी दूरी तय कर के अन्दर आना और फिर तीसरी मंजिल तक सीढियों को चढ़ कर क्लास तक जाना वो भी बस्तों को टांग कर इन बच्चो के लिए पढ़ाई की राह कितनी कठिन है इसका अनुमान आप खुद ही लगा सकते है। बहरहाल इन समस्याओ को स्कूल प्रबंधन अपनी आदतानुसार जान कर भी अनजान बना रहता है।


