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अमरनाथ यात्रा: न रूकी है, न रूकेगी कुछ भी नहीं रोक पा रहा है भाग लेने वालों को

न कोई धमकी, न कोई प्रतिबंध, न कोई हादसा और न ही कोई प्राकृतिक त्रासदी इन बढ़ने वालों के कदमों को रोक पा रही

अमरनाथ यात्रा: न रूकी है, न रूकेगी कुछ भी नहीं रोक पा रहा है भाग लेने वालों को
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जम्मू। न कोई धमकी, न कोई प्रतिबंध, न कोई हादसा और न ही कोई प्राकृतिक त्रासदी इन बढ़ने वालों के कदमों को रोक पा रही हैं। जहां तक कि यात्रा प्रबंधों में प्रशासन की नीतिओं के चलते अभी से फैलने वाली अव्यावस्थों से वे दो-चार तो हो रहे हैं लेकिन उन्हें यांह अव्यवस्थाएं भी रोक नहीं पा रही हैं जिन्हें पार कर 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा में दर्शनार्थ पहुंचने वालों के कदम नहीं रुक रहे हैं।

चाहे कुछ भी हो या कुछ भी कहा जाए यह सच्चाई है कि अमरनाथ यात्रा दिनों के बीतने के साथ ही राष्ट्रीया एकता और अखंडता की यात्रा के रुप में भी सामने आ रही है। यात्रा में भाग लेने वाले किसी एक प्रदेश के नहीं है बल्कि सारे देश के विभिन्न भागों से आने वाले इसमें शामिल हैं तो कईयों के दिलों में यांह भी जज्बा है कि कश्मीर हिन्दुस्तान का है और वे अमरनाथ यात्रा में भाग लेकर इस जज्बे को प्रदर्शित कर सकते हैं।

वैसे कई श्रद्धालु यात्रा के दौरान भारत माता की जय, पाकिस्तान मुर्दाबाद और आतंकवाद विरोधी नारे लगा इस जज्बे को प्रदर्शित भी कर रहे हैं। जिसने इस यात्रा को धार्मिक कम और राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता की यात्रा अधिक बना दिया है हर बार की ही तरह।

यात्रा में भाग लेना वैसे इस बार इतना आसान नहीं है क्योंकि प्रशासन की नीतिओं के चलते यात्रा में भाग लेने के लिए पंजीकरण आवश्याक हो गया है। ऐसा भी नहीं है कि इंतजार मात्रा ने भाग लेने वालों के मनोबल को कम किया हो बल्कि बावजूद इसके वे यात्रा में शामिल हो रहे और रोचक बात यांह है कि इन अधिकतर भाग लेने वाले यात्रा की कि वे अनुमति पहलगाम यात्रामार्ग की ले रहे हैं और चले जा रहे हैं बालटाल के उस रास्ते से जो जोखिम भरा तो है लेकिन एक ही दिन में इस मार्ग का प्रयोग कर पवित्र शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते हैं।

परिणाम यह है कि ‘हर-हर महादेव’, ‘जयाकारा वीर बजरंगी’ और ‘जय बाबा अमरनाथ बर्फानी, भूखे को अन्न प्यासे को पानी’ के नारों से जम्मू कश्मीर की धरती फिर गूंजने लगी है। नारे लगाने वालों की भीड़ दिनों के साथ बढ़ती जा रही है। आने वालों की बाढ़ में बस एक जज्बा है उन आतंकवादियों के विरूद्ध भारतीया एकता का परिचया देना जो हमेशा यात्रा पर खतरे के रुप में मंडराते रहते हैं।

पौने दो लाख के करीब लोग अभी तक वार्षिक अमरनाथ यात्रा में शामिल हो चुके हैं। हालांकि जम्मू कश्मीर सरकार ने इस बार 8 लाख की संख्य्ाां निर्धारित की है भाग लेने वालों की लेकिन बढ़ती भीड़ को प्रतिकूल मौसम चिढ़ा रहा है।

य्ाात्र्ाा में भाग लेने के लिए दी गई आयु छूट का लाभ उठाने वाले कम नहीं हैं। कई महिलाएं तो तीन से पांच साल के बच्चों को गोद में उठाए पहाड़ों की कठिन और दुर्गम चढ़ाईयों को पार करते हुए देखी जा रही हैं। तो पांव से न चल पाने वाले पालकी के सहारे अमरत्व पाने की चाह में उन दुर्गम पहाड़ों की ऊंचाईयों को नापने का प्रय्ाास कर रहे हैं जहां के शिखर पर खडे़ हो कर सांस लेना भी दुर्भर है क्य्ाोंकि आक्सीजन की कमी से सभी दो-चार होते हैं।

स्थिति यह है कि पिछले 25 सालों से जो यात्रा बंदूकों के साए मंे चल रही है उसके सिर से बंदूकों का साया हटा नहीं है। ऐसा इसलिए भी आवश्यक हो गया है क्योंकि आतंकवादी हमलों का सिर्फ खतरा ही नहीं मंडराया इस यात्रा पर, बल्कि पिछले कई सालों से प्रत्येक बार आतंकवादी यात्रा को क्षति पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। खतरा इस बार भी मंडरा रहा है। सिर्फ बंदूकों का ही नहीं बल्कि प्रकृति का खतरा भी।

-सुरेश एस डुग्गर--


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