मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक
मणिपुर के हालात पर अब जाकर केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है

मणिपुर के हालात पर अब जाकर केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। गृहमंत्रालय के प्रवक्ता ने बुधवार को ट्विटर पर लिखा कि 'केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए 24 जून को दोपहर 3 बजे नई दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है।' यह घोषणा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वासरमा की दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात के तुरंत बाद की गई। श्री बिस्वासरमा एनडीए के पूर्वोत्तर चैप्टर नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक भी हैं। उन्होंने 10 जून को इंफाल का दौरा किया था और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह समेत कई नेताओं से मुलाकात की थी। हालांकि इन मुलाकातों का नतीजा क्या निकला, इस बारे में कुछ कहना कठिन है।
क्योंकि मई की शुरुआत से मणिपुर के हालात बिगड़ना शुरु हुए और दिन-ब-दिन खराब ही होते जा रहे हैं। अभी तक 110 से अधिक जानें जा चुकी हैं। 250 से ज्यादा चर्च जला दिए गए, हजारों घरों को आग के हवाले कर दिया गया। कुकी आदिवासी पलायन के लिए मजबूर हो गए। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की बात पर तनाव शुरु हुआ, जिसे शुरु में संभाला नहीं गया। राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने इस मुद्दे पर अक्षम्य लापरवाही बरती है, जिसका नतीजा आज मणिपुर के आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
यह दुखद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर पर बिना कुछ कहे अमेरिका दौरे पर चले गए। मणिपुर के कई प्रतिनिधि मंडलों ने उनसे मिलने की नाकाम कोशिश की। यह समझ से परे है कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर को इतनी चुप्पी क्यों अख्तियार करनी पड़ी है। प्रतिनिधि मंडलों से मिलने में उन्हें किस बात का डर या झिझक थी। और अब गृहमंत्रालय ने भी सर्वदलीय बैठक तभी क्यों रखी, जब प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर हैं। श्री मोदी का अमेरिका और मिस्र का दौरा 25 जून तक का है, उसके बाद भी यह बैठक रखी जा सकती थी। जब 50 दिनों तक ऐसी किसी पहल को सरकार ने टाला है, तो दो-तीन दिन और टाल ही सकती थी। वैसे भी तकनीकी सुविधा के कारण अब दुनिया के किसी भी कोने से किसी से भी जुड़ना आसान हो गया है। श्री मोदी के बारे में तो यही कहा जाता है कि वे दिन-रात काम करते हैं, और महज तीन घंटे सोते हैं, थकते नहीं हैं। तो इस बैठक में उन्हें भी वर्चुअली जोड़ा जा सकता था। आखिर देश के लिए इतना वक्त तो वे निकाल ही सकते हैं।
लेकिन केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी में बैठक करने का फैसला किया। गृहमंत्री अमित शाह पहले मणिपुर के दौरे पर जा चुके हैं और वे हालात संभालने में अक्षम साबित हुए, यह नजर आ रहा है। ऐसे में ये देखना होगा कि 24 तारीख की बैठक में इस गंभीर संकट का क्या हल सुझाते हैं। वैसे सर्वदलीय बैठक में सभी दलों के प्रतिनिधियों की रायशुमारी की जाती है। बताया जा रहा है कि गृह मंत्री विपक्षी नेताओं और सहयोगियों को मौजूदा स्थिति और उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी दे सकते हैं और क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इस बारे में पूछ सकते हैं। लेकिन सवाल ये है कि विपक्षी दलों से लगभग शत्रुता का भाव रखने की ओर बढ़ चुकी भाजपा क्या उनके मशविरों को सुनेगी या स्वीकार करेगी। क्योंकि इससे पहले देश में जब भी संकट आए, यही अनुभव रहा है कि भाजपा सरकार विपक्ष की अवहेलना करती रही है। महंगाई, आर्थिक संकट, कोरोना महामारी, चीन का अतिक्रमण, ऐसे तमाम संकटों पर विपक्षी दलों ने, खासकर कांग्रेस ने जो भी सलाह दी, उसे अनसुना कर दिया गया। इस बार सरकार का रुख किस तरह का रहता है, ये देखना होगा।
गौर करने वाली बात ये भी है कि सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाने का फैसला उसी दिन लिया, जब सोनिया गांधी ने मणिपुर के लोगों से शांति की अपील की। शाम साढ़े बजे सोनिया गांधी की अपील ट्विटर पर जारी हुई और रात 10 बजकर 25 मिनट पर गृहमंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट कर बैठक की जानकारी दी। सोनिया गांधी ने एक वीडियो में मणिपुर के लोगों से कहा कि मणिपुर में लोगों के जीवन को तबाह करने वाली अभूतपूर्व हिंसा ने हमारे देश की अंतरात्मा पर गहरा घाव छोड़ा है।... मेरी उन सभी के प्रति गहरी संवेदना हैं जिन्होंने इस हिंसा में अपनों को खोया है। ... मणिपुर के इतिहास में विभिन्न जाति, धर्म और पृष्ठभूमि के लोगों को गले लगाने की शक्ति और क्षमता है।... भाईचारे की भावना को जिंदा रखने के लिए विश्वास और सद्भावना की जरूरत होती है, वहीं नफरत और विभाजन की आग को भड़काने के लिए सिर्फ एक गलत कदम की।' सोनिया गांधी ने कहा कि आज हम एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। किसी भी राह पर चलने का हमारा चुनाव एक ऐसे भविष्य को आकार देगा जो हमारे बच्चों को विरासत में मिलेगा। मैं मणिपुर के लोगों, विशेष रूप से अपनी बहादुर बहनों से यह अपील करती हूं कि वे इस खूबसूरत धरती पर शांति और सद्भाव की राह का नेतृत्व करें। एक मां के रूप में मैं आपके दर्द को समझती हूं। मैं आप सभी से यह निवेदन करती हूं कि अपनी अंतरात्मा की आवाज को पहचानें।'
सोनिया गांधी की इस अपील में शब्दों का चयन बेहद प्रभावशाली है। चंद वाक्यों में उन्होंने मणिपुर और भारत की सद्भाव की संस्कृति का महत्व समझा दिया, भाईचारे के लिए जरूरी विश्वास को रेखांकित किया और एक मां के तौर पर उस दर्द को साझा किया, जो अपनों को खोने से होती है। विपक्ष की एक नेता होने के स्थिति में सोनिया गांधी इससे अधिक कुछ और नहीं कर सकतीं। लेकिन मणिपुर के हालात संभालने की कोशिश में उनका यह योगदान महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसा कर सकते थे। लेकिन एक बार फिर वे राजधर्म निभाने से चूक गए।


