सियासत : मुश्किल में अखिलेश, पिता और चाचा बागी बनने की राह पर
मुलायम सिंह यादव के विद्रोही बयान का असर यह हुआ कि उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव आज ही समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के रूप में इटावा की जसवंतनगर सीट से नामांकन करने के बाद बागी तेवर अपना लिये।

लखनऊ, 31 जनवरी (देशबन्धु) : समाजवादी पार्टी में बवंडर बढ़ता ही जा रहा है। विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी के नए सुप्रीमो अखिलेश यादव भले ही जीत के लंबे-चौड़़े दावे कर रहे हों, लेकिन उनके पिता और चाचा उनके विजय पथ पर ऐसी बाधाएं खड़ी कर रहे हैं, जिन्हें चाहकर भी दूर कर पाना उनके लिए कठिन होता जा रहा है।
मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव के भरमाने वाले बयानों ने कार्यकर्ताओं को एक बार फिर असमंजस में डाल दिया है।
अखिलेश की ताजा परेशानी यह है कि वह अपने पिता और चाचा का क्या करें जो उनके खिलाफ बोलकर पार्टी का चुनाव अभियान मटियामेट करने पर आमादा हैं।
अखिलेश यादव ने कांग्रेस से समझौता करके 105 सीटें कांग्रेस के हवाले कर दीं। अपनी पार्टी के 298 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दिए लेकिन पार्टी के संरक्षक के तौर पर जाने जा रहे मुलायम सिंह यादव समझौते के अगले ही दिन यह बयान देकर अखिलेश यादव को मुश्किल में डाल दिया कि इस गठबंधन से समाजवादी पार्टी को कोई फायदा नहीं। वह खत्म हो जाएगी।
लगे हाथ शिवपाल यह भी बोलने से नहीं माने कि मैं सपा का प्रचार नहीं करूंगा और जिन सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, वहां उन समाजवादियों को लड़ना चाहिए, जिन्होंने पांच साल तक अपने अपने क्षेत्र में मेहनत की है। विशुद्ध पार्टी विरोधी बयान को लेकर अखिलेश उकता जरूर उठे लेकिन कोई भी बयान देने से बच रहे हैं।
सियासी पंडितों को मानना है कि जो उनके पिता हैं, जिसे पार्टी का संरक्षक बनाया, जिसके बलबूते पार्टी यहां तक आ पहुंची है, अगर उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं तो परेशानी और बढ़ेगी और नहीं करते हैं तो पार्टी में विद्रोह की लपटें उठने लगेंगी।
मुलायम सिंह यादव के विद्रोही बयान का असर यह हुआ कि उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव आज ही समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के रूप में इटावा की जसवंतनगर सीट से नामांकन करने के बाद बागी तेवर अपना लिये। कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने एलान कर दिया कि वह 11 मार्च के बाद नई पार्टी का गठन करेंगे। साफ तौर पर कहा कि उनके साथ भितरघात किया गया है और मुलायम सिंह यादव सहित उनके लोगों को लगातार अपमानित किया जा रहा है।
पूरे भाषण के दौरान उनके निशाने पर अप्रत्यक्ष तौर पर अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव रहे।
शिवपाल ने अखिलेश यादव का नाम तो नहीं लिया पर तंज कसी कि सपा का चुनाव चिह्न उनकी कृपा से मिला है। हालांकि वह निर्दलीय लड़ने को भी तैयार थे। चुनाव लड़ने का मेरा मन नहीं था लेकिन जनता की ताकत मिलने पर मैं मैदान में आ गया हूं। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 105 सीटें दे दी गईं जबकि कांग्रेस की हैसियत केवल चार सीटों की थी। हमारे जिताऊ उम्मीदवारों की सीटें काटकर कांग्रेस की झोली में डाल दीं।
शिवपाल ने कहा कि मरते दम तक मुलायम सिंह यादव के साथ रहूंगा और हमारे जो उम्मीदवार उनके आशीर्वाद से दूसरे दलों से चुनाव लड़ रहे हैं उनका प्रचार करूंगा।
शिवपाल यहीं नहीं रुके। कहा कि हमारे पास जो विभाग थे वो अच्छे चले। हमने काफी काम किया लेकिन हमारी फाइलें जानबूझकर रोकी जाती रहीं फिर भी हमने काम किया। बाधाओं के बावजूद विभाग चलाये। बहुत से लोगों को नौकरी नहीं दे पाये इसका मलाल है। हम बर्खास्त भी हुए कि कोई गलत काम न हो, इसी का हमने विरोध किया और नेता जी ने हमारा समर्थन किया तो हम दोनों लोगों पर हमला बोला गया। मैंने मुख्यमंत्री से कहा था कि सब कुछ ले लो मगर नेताजी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना रहने दो। हमारे लोग आज भी संघर्ष कर रहे हैं और जेलों में हैं। बहुत से ऐसे मंत्री हैं जो सिर्फ फोटो खिंचवाते हैं वो नहीं हटाये गये। जो काम कर रहे थे उन्हें हटा दिया गया।
बागी तेवर वाले शिवपाल ने कहा कि हमारी लिस्ट का कहीं विरोध नहीं था। पक्के समाजवादी का टिकट अखिलेश ने सिर्फ इसलिए काटा गया कि शिवपाल सिंह यादव कैसे कमजोर हों। हम स्टार प्रचारक नहीं हैं, अच्छा है। हम इसी का प्रचार करेंगे। मैं नेताजी के निर्देश पर चुनाव लड़ रहा हूं।
उन्होंने सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव पर भी बगैर नाम लिए हमला बोला और कहा कि जो लोग कब्जा कर रहे थे, अवैध शराब बिकवा रहे थे यह कौन नहीं जानता। इसी का विरोध करने का खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा।
शिवपाल सिंह यादव के भाषण की प्रतिक्रिया ऐसी हुई कि कई और सपा नेता बागी तेवर अपनाने की तैयारी में हैं। अब देखना है कि अखिलेश यादव इन हालात को कैसे काबू में ला पाते हैं। क्या वह पिता, चाचा और दूसरे बागियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते हैं या मान-मनौवल वाली रणनीति अपनाते हैं।


