अखिलेश का 'त्याग' उप्र में भाजपा की मुश्किल बढ़ाएगा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2019 में भाजपा को एक जबरदस्त झटका दिया है। पिछले कुछ हफ्तों में उत्तर प्रदेश में चार महत्वपूर्ण उपचुनाव हुए हैं

नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2019 में भाजपा को एक जबरदस्त झटका दिया है। पिछले कुछ हफ्तों में उत्तर प्रदेश में चार महत्वपूर्ण उपचुनाव हुए हैं। सभी चुनावों में भाजपा को अखिलेश यादव की रणनीति के सामने हार का मुंह देखना पड़ा। चारों ही उपचुनाव महत्वपूर्ण थे। गोरखपुर और फूलपुर में तो राज्य के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की हार ही मानी जा रही है जबकि कैराना और नूरपुर में हिंदुत्व की राजनीति के कमजोर पड़ने के संकेत मिल रहे हैं। उपचुनावों में हार के बाद भाजपा के आला नेता इस उम्मीद में थे कि यह झटका अस्थाई है, 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समझौता नहीं होगा। इनका मानना था कि मायावती और अखिलेश यादव के बीच सीटों को लेकर विवाद हो जाएगा और सपा और बसपा अलग-अलग भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएंगी।
अखिलेश यादव के बयान के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव की संभावना अब बहुत ही कम हो गई है। मैनपुरी की एक सभा में अखिलेश यादव ने ऐलान किया कि अगर जरूरत पड़ी तो कुछ सीटों का त्याग करके भी सपा-बसपा की एकता को बनाए रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि 2019 में राज्य में भाजपा की हार सुनिश्चित की जाएगी। अखिलेश यादव के इस बयान के साथ ही उत्तर प्रदेश में संयुक्त विपक्ष की संभावना बहुत बढ़ गई है। भाजपा विरोधी ताकतों की एकता में कमजोरी तलाश रही सत्ताधारी पार्टी को मायावती के उस बयान से कुछ उम्मीद बढ़ी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि बहुजन समाज पार्टी किसी भी अन्य पार्टी से उसी हालत में सीटों का तालमेल करेगी जब उसके हिस्से में आने वाली सीटों की संख्या सम्मानजनक हो।
मायावती के इस बयान के बाद भाजपा वैकल्पिक रणनीति पर काम करने लगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भाजपा के कार्यकर्ता बसपा प्रमुख के बयान की प्रतियां बांटते देखे भी गए थे लेकिन अखिलेश यादव ने अपने हिस्से की सीटों की कुर्बानी की बात कहकर भाजपा के हलकों में फिर से निराशा के भाव जगा दिए हैं। अखिलेश यादव ने यह कहकर कि राज्य की जनता एकजुट हो गई है और राजनीतिक पार्टियों के पास एक साथ होकर चुनाव लड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। उन्होंने एक राजनीतिक संदेश भी दिया है। उधर अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को अपने साथ ले लिया है और उनके बेटे को गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा उम्मीदवार बनाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर में उनको शिकस्त दी थी।
अब खबर यह है कि संजय निषाद के साथ सपा गठबंधन बना रहेगा और निषाद पार्टी के अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया है कि उनकी पार्टी को जौनपुर से भी टिकट चाहिए। उन्होंने जौनपुर से अपनी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में धन्नजय सिंह के नाम की घोषणा भी कर दी है। अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के अलावा, कांग्रेस और अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल को भी साथ ले लिया है। कैराना उपचुनाव में हालांकि उम्मीदवार मायावती की पसंद की थी लेकिन उसको राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव निशान दिया गया था।
इस तरह से अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में, अपना दल और ओम प्रकश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुकी भाजपा को अखिलेश-मायावती गठबंधन से मुश्किलें पेश आ सकती हैं। पिछले दिनों ओम प्रकाश राजभर भी भाजपा से नाराज देखे गए हैं। उनकी नाराजगी के गंभीर राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने कहा था कि अगर पिछड़ी जाति के नेता, केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया गया होता तो भाजपा के हाथों फूलपुर और गोरखपुर में उतनी अपमानजनक हार न हुई होती। उनका यह तर्क अगर आगे बढ़ाया गया तो भाजपा को जबरदस्त नुकसान हो सकता है। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा के चुनाव के लिए जो मोर्चेबंदी तैयार हो रही है उसने सताधारी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
पार्टी के छुटभैया नेताओं के पार्टी की कमियां गिनाने वाले छिटपुट बयानों के मद्देनजर मोदी के जादू के कमजोर होने की संभावना जोर पकड़ रही है।


