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हवाई जहाज के किनारे भोजन उर्फ सबका साथ सबका विकास

हवाई जहाज के यात्रियों ने हवाई जहाज के बगल में, रनवे की जमीन पर बैठकर भोजन किया

हवाई जहाज के किनारे भोजन उर्फ सबका साथ सबका विकास
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- सर्वमित्रा सुरजन

ये हिंदू के जागने का ही असर है कि अब मोदीजी को सबका साथ, सबका विकास के वादे को पूरा करने में आसानी हो रही है। प्रधानमंत्री पद संभालने पर उन्होंने कहा था कि देश में ऐसा विकास कर देंगे कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाईयात्रा कर सकेंगे। उन्होंने ये कभी नहीं कहा था कि हवाई चप्पल पहनने वालों को अच्छे जूते पहनने लायक बना देंगे। यानी लोग जिस हाल में हैं, उसी हाल में या उससे बुरे हाल में कर देंगे, बस उन्हें हवा में उड़ने का सुख नसीब हो सकेगा।

हवाई जहाज के यात्रियों ने हवाई जहाज के बगल में, रनवे की जमीन पर बैठकर भोजन किया। ऐसा महान दृश्य इस महान देश ने कभी नहीं देखा था। पुराने जमाने में जब हवाई जहाज कम हुआ करते थे और गिने-चुने लोग ही हवाई यात्रा करते थे, तब जो लोग हवाई जहाज पर चढ़ नहीं पाते थे, वो हवाईयात्रियों को विमान की सीढ़ी तक छोड़ने और लेने जाया करते थे। यात्रियों के स्वागत और विदाई के लिए गेंदे की फूल-मालाएं हाथ में लेकर लोग जाते थे और दिल में एक हसरत भी कि काश कभी हम भी उड़ान भरने का सुख प्राप्त कर पाते। ये तो नेहरूजी जब तक प्रधानमंत्री रहे, उन्होंने देश के लाखों लोगों को विमानयात्रा से वंचित रखा। हवा में उड़ने का आनंद देने की जगह आम लोगों के लिए न जाने क्यों आईआईटी, आईआईएम बनवाए, इलाज, खेती, विज्ञान जैसे गैरजरूरी क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया। सार्वजनिक निकाय खड़े किए ताकि लोगों को सरकारी नौकरियां मिल सकें। और अब जब सरकार नौकरी नहीं दे पा रही है, तो चंद देशद्रोही मोदी सरकार पर ही उन्हें बेरोजगार रखने का इल्जाम लगा रहे हैं। जबकि सारी गलती नेहरू की है। आरएसएस के आर्थिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन ने इसे पूरे विस्तार से समझाया है।

श्री महाजन ने कहा है कि जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के कारण लोग सरकारी नौकरियों के पीछे भागने लगे। हर साल करोड़ों लोग नौकरी बाजार में आते हैं न तो सरकार और न ही बहुराष्ट्रीय कंपनियां इतनी नौकरियां दे सकती हैं। इससे निपटने का एकमात्र तरीका उद्यमियों को तैयार करना है। भारत कभी उद्यमियों का देश था। हमें उस भारत का पुनर्निर्माण करना है, और यह केवल बड़े पैमाने पर समाज के सहयोग से ही हो सकता है। इस कथन की व्याख्या यही समझ आती है कि अब बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने और उन पर चिंता जाहिर करने का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि सरकार नौकरी नहीं दे सकती है। मोदीजी ने चुनाव की रौ में भले 2 करोड़ रोजगार हर साल देने की बात कही थी, लेकिन बाद में उन्होंने पकौड़ा तलकर देश के पुनर्निर्माण में योगदान की राह दिखा दी थी। संघ उसी राह पर अब भारत को ले जाना चाहता है। इसलिए वह समाज से सहयोग की अपेक्षा कर रहा है।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगीजी ने भी बिल्कुल सही कहा कि हम जनभावनाओं के अनुरूप काम करते हैं। एक न्यूज चैनल की दो महान पत्रकारों ने उनसे सवाल किया कि राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को राहुल गांधी ने राजनैतिक कार्यक्रम बताया है, इस पर आपका क्या कहना है, तो योगीजी ने जवाब दिया कि कांग्रेस को ऐसा करने से किसने रोका था। इस जवाब को सुनकर लगा कि भाजपा हो या संघ, कांग्रेस की कमजोरियों को बिल्कुल सही तरीके से पकड़ते हैं।

नेहरूजी ने बांध, कारखानों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों की जगह मंदिर बनवाए होते तो देश का हिंदू कभी सो ही नहीं पाता, न ही उसे उठाने में मोदीजी को इतनी मेहनत करनी पड़ती कि खुद उन्हें सोने के लिए बमुश्किल 3-4 घंटे मिलते। इसी तरह कांग्रेस ने भी इतने लंबे वक्त के शासन में पंचायती राज, श्वेत क्रांति, हरित क्रांति, संचार क्रांति, सूचना क्रांति, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा इन बेकार की बातों पर ध्यान देने की जगह धर्म क्रांति की होती, योगीजी के मुताबिक राम मंदिर को राजनैतिक आयोजन बनाया होता, तो आज देश का माहौल कुछ और ही होता।

प्रधानमंत्री मोदी अपने संन्यासी जीवन में ही प्रसन्न रहते। उन्हें तो प्रधानसेवक इसलिए बनना पड़ा क्योंकि देश का अमृतकाल नजदीक आते जा रहा था और कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की अफीम सूंघ कर बेहोश पड़ी हुई थी। पंचशील और गुटनिरपेक्षता के चलते अखंड भारत जैसे सपने हाशिए पर चले गए थे। इससे पहले कि देश पूरी तरह उदार, धर्मनिरपेक्ष, गांधीजी के सपनों वाले रामराज्य में तब्दील हो पाता, मोदीजी ने कमान संभाल ली। अब देश में सनातन सुरक्षित है, क्योंकि जागा हुआ हिंदू उसकी जमकर पहरेदारी कर रहा है। इस कदर कि इसमें उसका वर्तमान, भविष्य दांव पर लग जाए, उसे कोई परवाह नहीं है।

ये हिंदू के जागने का ही असर है कि अब मोदीजी को सबका साथ, सबका विकास के वादे को पूरा करने में आसानी हो रही है। प्रधानमंत्री पद संभालने पर उन्होंने कहा था कि देश में ऐसा विकास कर देंगे कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाईयात्रा कर सकेंगे। उन्होंने ये कभी नहीं कहा था कि हवाई चप्पल पहनने वालों को अच्छे जूते पहनने लायक बना देंगे। यानी लोग जिस हाल में हैं, उसी हाल में या उससे बुरे हाल में कर देंगे, बस उन्हें हवा में उड़ने का सुख नसीब हो सकेगा। हालांकि कांग्रेस के शासनकाल में ही निजी विमानसेवाओं के आने के बाद हवाई यात्रा करने वालों का दायरा बढ़ गया, लेकिन विमानतल तो तब भी उच्चश्रेणी का ही अहसास कराते थे। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और एयरपोर्ट्स में वर्ग विभाजन तो था ही।

लिहाजा मोदीजी ने इस विभाजन को मिटाने का बीड़ा उठाया। अब जिस तरह रेलवे स्टेशनों पर 12-15 घंटे ट्रेनों का इंतजार होता है और यात्रीगण प्लेटफार्म पर बैठकर खाते-पीते समय बिताते हैं, कुछ वैसा ही हाल अब हवाईअड्डों का हो गया है। विमान के किनारे बैठकर भोजन करना, वर्ग विभाजन मिटाने का अनुपम उदाहरण है। अब विमान में उड़ने वाले रेल से सफर करने वालों पर रौब नहीं गांठ पाएंगे। यही है सबका साथ, सबका विकास। हवाई चप्पल वालों को जूता न मिल सका, तो जूते वालों को हवाई चप्पल पहना दो, बात तो एक ही है। ऐसा गणित मोदीजी ही समझा सकते थे।

कांग्रेस न जाने क्यों अब भी इस गणित को समझ ही नहीं रही है। राहुल गांधी फिर से भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े हैं, इस बार न्याय की मशाल उनके हाथ में है। लेकिन इस देश के लोगों को तो अपने नेता के हाथ में धर्म का दीया देखना अच्छा लगने लगा है। मोदीजी इसे अच्छे से समझते हैं। मोर को दाना वो चुगा चुके हैं, अब गाय को चारा खिला दिया। इसके बाद देश के प्रधानमंत्री मंदिरों की परिक्रमा करते दिखाई दे रहे हैं। उनके मंत्रीगण भी अलग-अलग मंदिरों में झाड़ू लगाते, पोंछा लगाते, पूजा करते दिख रहे हैं। 22 जनवरी को उत्तरप्रदेश के शैक्षणिक संस्थान बंद करने का आदेश आ ही चुका है, हो सकता है पूरे देश में इसका पालन हो। सरकार राह दिखा रही है कि पढ़ने-लिखने, काम-धाम में कुछ नहीं रखा है। भगवान की भक्ति में समय बिताओ और खुद को रामभरोसे छोड़ दो, सब वही ठीक करेंगे। जनता जब इस बात को समझ जाएगी तो फिर सरकार से अपनी भूख, बीमारी और गरीबी पर सवाल नहीं करेगी।

फिर ये सवाल भी नहीं उठेंगे कि मोदीजी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में प्रतीकात्मक जजमान बनने की भी क्या जरूरत है। अगर वे बाकी लोगों की तरह इस आयोजन के केवल दर्शक बन जाते, तो क्या उनकी भक्ति में कोई कमी हो जाती। सवाल इस बात पर भी नहीं होगा कि महानायक का दर्जा प्राप्त कर चुके अमिताभ बच्चन ने आखिर किस प्रयोजन से 14 करोड़ की जमीन अयोध्या में खरीदी है। और जब महाराष्ट्र में अपने पूर्वजों के किसान होने के नाम पर कृषि भूमि खरीदी थी, तब उनका प्रयोजन क्या था। देश में जय श्री राम के नारों का शोर भरकर मोदीजी तो लगातार यही कोशिश कर रहे हैं कि सवाल पूछने की परंपरा ही खत्म हो जाए। शंकराचार्यों को भी भाजपा यही समझा रही है कि सवाल-जवाब करने का कोई लाभ नहीं है। अब तो देश 22 जनवरी को मोदीजी के कहे अनुसार दीपावली मनाने की तैयारी कर रहा है।

रावण वध करके राम के अयोध्या लौटने पर दीपावली मनाने की कहानी अब पुरानी हो चुकी है। मोदीजी ने राम लला की पुनर्प्राणप्रतिष्ठा पर दीपावली मनाने कहा है, तो इस पर भी अब कोई सवाल नहीं होगा। लेकिन फिर भी एक सवाल करने की गुस्ताखी हो ही सकती है कि जैसे राम लला की प्राण प्रतिष्ठा फिर से संभव हो पाई, क्या वैसे कोविड में गुजरे लोगों के प्राण लौटाने का चमत्कार भी मोदी कर सकते हैं, क्या हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब की पुर्नप्राणप्रतिष्ठा को मोदीजी मुमकिन बना सकते हैं।


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