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दिल्ली में एक बार फिर वायु आपातकाल

दिल्ली में फिर से वायु प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि स्कूलों को बंद करने जैसे आपात कदम उठाने पड़ गए हैं. जानकार चिंतित हैं कि अभी ना तो दिवाली आई या और ना सर्दियां. जाने आने वाले हफ्तों में क्या हाल होगा.

दिल्ली में एक बार फिर वायु आपातकाल
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दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता 'सीवियर' यानी गंभीर श्रेणी में जा चुकी है, जो केंद्र सरकार के वायु गुणवत्ता निगरानी तंत्र 'सफर' के मुताबिक सबसे खराब श्रेणी है. दिल्ली का औसत एक्यूआई 504 हो चुका है, जबकि 'सफर' में अधिकतम सीमा ही 500 की है.

कुछ इलाकों में स्थिति इससे भी ज्यादा खराब है. ऐसे हालात में डॉक्टरों और सरकार की तरफ से घर के बाहर जाने से बचने की एडवाइजरी जारी की जाती है. चिंता इस बात की है कि अभी वायु गुणवत्ता पर अभी दिवाली और सर्दियों का असर होना बाकी है.

जैसे कोई काल्पनिक भविष्य

गुरुवार को दिल्ली की वायु गुणवत्ता में अचानक गिरावट आई थी और शाम होते होते एक्यूआई 400 पार कर गया था. शुक्रवार को 500 का आंकड़ा भी पीछे छूट गया. पूरे एनसीआर पर स्मॉग की मोटी चादर छा गई.

हालात को देखते हुए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरपी) के तीसरे चरण के तहत दिए गए कदमों को लागू कर दिया गया है. दिल्ली में प्राथमिक स्कूलों को दो दिनों के लिए बंद कर दिया गया है, पूरे एनसीआर में गैर-जरूरी निर्माण और गिराव पर बैन लगा दिया गया है.

इसके अलावा उत्सर्जन के पुराने मानकों वाली गाड़ियों का एनसीआर में प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया है. गुरुग्राम में धारा 144 के तहत खुले में किसी भी तरह के कूड़े को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. पर्यावरणविद चंद्र भूषण ने एक्स पर यह जानकारी साझा करते हुए लिखा कि हम ऐसी स्थिति में रह रहे हैं जो कभी काल्पनिक लगती थी.

जानकारों का कहना है कि इन हालात के लिए कई कारण एक साथ जिम्मेदार हैं. एनसीआर का अपना प्रदूषण पहले से मौजू तो है ही, हवा की गति कम होने की वजह से हवा उसे बहा कर दूर ले नहीं जा पा रही है.

पराली का समाधान जरूरी

साथ ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराई जलाने के मामले भी काफी बढ़ गए हैं, जिसकी वजह से धुंआ एनसीआर के प्रदूषण को और बढ़ा रहा है. दिल्ली में कई स्थानों पर पानी का छिड़काव भी किया जा रहा है.

केंद्र सरकार के 'डिसिशन सपोर्ट सिस्टम' के मुताबिक दिल्ली में पीएम2.5 के स्तर के बढ़ने में पराली के धुएं का योगदान गुरूवार को 22.4 प्रतिशत और शुक्रवार को 21 प्रतिशत था. सेटेलाइट से पंजाब में पराली जलाने के 1,921 मामले, हरियाणा में 99 और उत्तर प्रदेश में 95 मामले दर्ज किए गए.

जानकारों का कहना है कि उस अवधि की शुरुआत हो चुकी है जब पराली सबसे ज्यादा जलाई जाती है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में दो से 12 नवंबर के बीच पराली जलाने के 2500 से 2500 मामले प्रतिदिन दर्ज किए गए थे.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एग्जेकेटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉयचौधरी ने अखबार को बताया कि अगली फसल की बुवाई का समय करीब आ गया है और किसान जल्दी पराली से छुटकारा पाना चाहते हैं.

रॉयचौधरी के मुताबिक इस समय अगर किसानों को पराली से निजात पाने के आसान और पर्यावरण के अनुकूल उपाय उपलब्ध नहीं कराए गए तो उनके पास उसे जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहेगा.


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