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कांग्रेसियों को खल रही अहमद पटेल की अनुपस्थिति

राज्य में कांग्रेस पार्टी के नेता स्वर्गीय अहमद पटेल की अनुपस्थिति में खालीपन महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं के लिए अहमद पटेल का मतलब 'हर मरज की दवा' था

कांग्रेसियों को खल रही अहमद पटेल की अनुपस्थिति
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गांधीनगर, राज्य में कांग्रेस पार्टी के नेता स्वर्गीय अहमद पटेल की अनुपस्थिति में खालीपन महसूस कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं के लिए अहमद पटेल का मतलब 'हर मरज की दवा' था। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी की समस्याओं और चुनौतियों के समाधान करने के लिए और मार्गदर्शन करने के लिए कोई नेता नहीं है।

गौरतलब है कि स्वर्गीय अहमद पटेल का राजनीतिक जीवन 1976 में तब शुरू हुआ, जब उन्होंने पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव लड़ा। फिर वह यूथ कांग्रेस में शामिल हो गए। 1977 में इंदिरा गांधी ने उन्हें भरूच लोकसभा क्षेत्र से मैदान में उतारा, जहां से वे 1977, 1980 और 1984 में तीन बार निर्वाचित हुए, लेकिन 1989 और 1991 में चुनाव हार गए। 1985 में पार्टी नेतृत्व ने उन्हें गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया, जहां उन्होंने तीन साल तक सेवा की। .

बहुत कम उम्र में पटेल पार्टी अध्यक्ष के सलाहकार बन गए और समय-समय पर राजनीतिक संकटों को हल करने और दूर करने में मदद की।

गुजरात में पार्टी के उपाध्यक्ष यूनुस पटेल उन्हें याद करते हुए कहते हैं, वह एक मृदुभाषी नेता थे, दिल्ली में बैठे रहते थे, लेकिन उनके कान जमीन पर थे, वे तालुका और शहर स्तर पर छोटे से छोटे कार्यकतार्ओं और नेताओं के संपर्क में रहते थे, उनके लिए सभी की राय महत्वपूर्ण थी।

वह अन्य नेताओं से कैसे अलग थे इस सवाल पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गौरव पंड्या कहते हैं, अहमदभाई सावधानीपूर्वक योजना बनाने में विश्वास करते थे, वे लगभग डेढ़ या दो साल पहले विधानसभा या किसी अन्य चुनाव की तैयारी शुरू कर देते थे। इसके तहत वह अभियान की रणनीति तैयार करते थे, कौन कब और कहां प्रचार करेगा, कौन सा राष्ट्रीय नेता, सेलिब्रिटी या अभिनेता प्रचार करेगा, उसका फैसला करते थे।

पटेल सबसे निचले स्तर के पार्टी कार्यकतार्ओं और नेताओं के संपर्क में रहते थे, वे उनके सामाजिक और पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होते थे। अहमदाबाद में अहमद पटेल के साथ मिलकर काम करने वाले कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हिम्मतसिंह पटेल ने कहा कि अपने व्यक्तिगत संपर्को के कारण उनके लिए कैडर का दिल जीतना, उन्हें चुनाव लड़ने या न लड़ने के लिए राजी करना आसान हुआ करता था।

हालांकि बाहरी लोग उन्हें केवल एक मुस्लिम नेता के रूप में देखते थे, लेकिन कांग्रेसी अच्छी तरह जानते थे कि वह जाति, समुदाय और पंथ से ऊपर थे, जिसने उन्हें सभी समुदायों का प्रिय बना दिया था। यही वजह है कि उनकी बातों को गंभीरता से लिया जाता था और उनके निर्देशों का पार्टी में सभी पालन करते थे।

पंड्या का कहना है कि वह राज्य और केंद्रीय नेतृत्व के बीच एक सेतु के सामान थे। उनकी उपस्थिति से राष्ट्रीय नेताओं को राज्य में प्रचार करने में सहूलियत होती थी। राज्य स्तर पर उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों को काम बांट दिया था। सभी को लगता था कि वे पार्टी में योगदान दे रहे हैं, वह भावना आज नदारद है।

जब तक वे जीवित थे, एआईएमआईएम ने गुजरात में चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं की थी। इसे एआईएमआईएम नेतृत्व के साथ उनका व्यक्तिगत संबंध या उनका प्रभाव कहा जा सकता है। अब जब पटेल नहीं हैं, तो एआईएमआईएम राज्य का चुनाव लड़ रही है, जिससे कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रही है। कांग्रेस के राज्य महासचिव गुलाबखान रायमा ने कहा कि इससे पता चलता है कि वह कितने बड़े थे और पार्टी उनकी कमी को कैसे महसूस कर रही है।

डैमेज कंट्रोल अहमदभाई की सबसे बड़ी ताकत थी, चाहे निर्दलीय उम्मीदवार हों या पार्टी में बगावत। उनका एक फोन ही काफी था। उन्हें यह भी बखूबी पता था कि किसको और कैसे मनाना है। इससे पार्टी के उम्मीदवारों को कम से कम चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। यूनुस पटेल ने कहा कि उम्मीदवारों का चयन करने से पहले वह तालुका अध्यक्षों, जिला या शहर के अध्यक्षों और अधिकारियों से फीडबैक लेते थे। इससे पार्टी को विद्रोह का सामना कम करना पड़ता था।

अब जब कभी पार्टी को फंड की कमी का सामना करना पड़ता है, तो पटेल को हमेशा याद किया जाता है। यूनुस ने कहा कि जब तक वह जीवित थे तब तक गुजरात इकाई को धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ा।


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