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पानी के बाद भाजपा और एलजी अब कर रहे दिल्ली की शिक्षा प्रणाली पर प्रहार : दिलीप पांडे

आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा और दिल्ली के एलजी पर एक बार फिर हमला बोलते हुए कहा है कि पानी की किल्लत के बाद अब दिल्ली की शिक्षा प्रणाली पर प्रहार किया जा रहा है

पानी के बाद भाजपा और एलजी अब कर रहे दिल्ली की शिक्षा प्रणाली पर प्रहार : दिलीप पांडे
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नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा और दिल्ली के एलजी पर एक बार फिर हमला बोलते हुए कहा है कि पानी की किल्लत के बाद अब दिल्ली की शिक्षा प्रणाली पर प्रहार किया जा रहा है। अहंकार में डूबी भाजपा की ओर से अब क्रांतिकारी शिक्षा प्रणाली को खराब करने की तैयारी की जा रही है।

आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडे ने कहा है कि भाजपा के अहंकार की राजनीति में अब दिल्ली के शिक्षक भी झोंके जा रहे हैं। पिछले दिनों इन्हीं बीजेपी वालों ने दिल्ली के 28 लाख लोगों को पानी की किल्लत से तड़पाया था। अब भाजपा ने दिल्ली के क्रांतिकारी शिक्षा मॉडल पर हमला बोला है। इस बार इन्होंने एक ऐसा फैसला लिया है, जो दिल्ली के शिक्षा मॉडल की कमर तोड़ने के लिए लिया गया है।

दिलीप पांडे का आरोप है कि इस आदेश के तहत 3,150 टीजीटी शिक्षक, 847 पीजीटी शिक्षक और 1,109 अन्य विषयों के शिक्षकों का रातोंरात तबादला कर दिल्ली शिक्षा मॉडल की कमर तोड़ने की भाजपा ने साजिश रची है, जिसे हम कामयाब नहीं होने देंगे। भाजपा और एलजी ने सांठगांठ कर दिल्ली के 5,000 से ज्यादा शिक्षकों का तबादला कर दिया है। इसका असर शिक्षा प्रणाली पर सीधे तौर पर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि एक शिक्षक जिस स्कूल में जाता है, वहां वह बच्चों, उनके माता-पिता और स्टाफ के साथ एक रिश्ता बनाता है। इससे वह अपना काम और अच्छे से कर पाता है। जब इस तरह के ट्रांसफर की बात शिक्षा मंत्री आतिशी को मालूम हुई तो उन्होंने इस तरह के तबादलों का विरोध किया और कहा कि इसे रद्द किया जाना चाहिए। दिल्ली की शिक्षा मंत्री के निर्देशों के बाद भी यह फैसला कैसे आया, इस बात का जवाब तो दिल्ली के एलजी साहब या भाजपा दे सकती है।

दिलीप पांडे के मुताबिक, दिल्ली के सभी शिक्षक भाजपा के एलजी साहब से सवाल पूछ रहे हैं कि शिक्षा मंत्री के निर्देशों के बाद भी ट्रांसफर का यह तुगलकी फरमान क्यों जारी किया गया? इस तुगलकी फरमान से साबित हो गया है कि भाजपा नहीं चाहती है कि दिल्ली के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें और आगे बढ़ें। वह बच्चों का उज्जवल भविष्य नहीं देखना चाहती।


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