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तिरुपति लड्डू विवाद के बाद देश में हिंदू मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से फ्री करने का शोर क्यों?

आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में जो प्रसाद भक्तों को लड्डू के रूप में दिया जाता है

तिरुपति लड्डू विवाद के बाद देश में हिंदू मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से फ्री करने का शोर क्यों?
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नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में जो प्रसाद भक्तों को लड्डू के रूप में दिया जाता है, उसमें जानवरों की चर्बी और मछली तेल से बनाई जाने वाली घी का उपयोग किए जाने की खबर सामने आने के बाद से ही सनातन आस्था में विश्वास करने वाले लोगों की त्योरियां चढ़ी हुई हैं।

इस मामले के सामने आने के बाद देश के सभी प्रमुख धर्म स्थलों पर लोग सचेत हो गए हैं। इस पूरे प्रकरण पर बवाल इतना ज्यादा हो गया है कि अब इसकी आग धीरे-धीरे हिंदू मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से फ्री कराने के शोर के रूप में उठने लगी है।

तिरुपति बालाजी मंदिर में मिलावटी घी से बने प्रसाद के खुलासे ने पूरे देश के करोड़ों भक्तों की आस्था पर गहरी चोट पहुंचाई है। इस बात के सामने आने के बाद से देशभर के साधु-संतों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मांग शुरू कर दी है।

दरअसल, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का कानून अंग्रेजों के जमाने का है। अंग्रेजों ने ऐसा कानून बनाया था कि हिंदुओं के सभी मंदिर सरकार के नियंत्रण में रहें। जबकि, चर्चों और मस्जिदों को सरकारी नियंत्रण से बाहर रखा गया था। देश आजाद हुआ तो केंद्र सरकार ने अंग्रेजों के इसी कानून को आगे बढ़ाते हुए हिंदू धर्म दान एक्ट 1951 लागू किया। बदलाव कुछ भी नहीं हुआ, हिंदू मंदिर पहले की तरह ही सरकारी नियंत्रण में चले गए। इस कानून के तहत सभी राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया गया था कि वे बिना कारण बताए किसी भी मंदिर को अपने अधीन कर सकते हैं।

इसके बाद क्या था, धड़ाधड़ राज्य सरकार ट्रस्ट और बोर्ड का गठन कर हिंदू मंदिरों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेती चली गई। इस तरह देश के 4 लाख से ज्यादा प्रमुख मंदिर सरकारी नियंत्रण में आ गए और अब तो इनकी संख्या और भी ज्यादा है। अब इस कानून की वजह से हुआ यह कि मंदिरों की आय पर कर लगने लगे और उसका बड़ा हिस्सा सरकारी खजाने में जाने लगा। जबकि, इन मंदिरों के रखरखाव और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सरकार की तरफ से नाम मात्र की राशि ही उपलब्ध कराई जाती रही। जबकि, चर्च और मस्जिद इससे बाहर थे और समय-समय पर सरकार इन्हें आर्थिक मदद भी मुहैया कराती रही है।

इसके साथ ही बड़े मंदिरों के दानकर्ताओं ने जो जमीन दी, उसमें ज्यादातर जमीनों पर भी माफियाओं ने कब्जा कर लिया। लेकिन, सरकार का ध्यान इस ओर भी नहीं गया। ऐसे में तिरुपति बालाजी मंदिर प्रकरण में हुए खुलासे के बाद से ही हिंदू संगठनों और साधु-संतों ने मांग उठानी शुरू कर दी कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से बाहर किया जाए ताकि ये मंदिर खुद अपना रखरखाव कर सकें और वहां की व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके।

साधु संत यह मांग करने लगे हैं कि जिस तरह से अन्य धर्मों को स्वतंत्रता दी गई है, उसी प्रकार से बोर्ड बनाकर हमें भी धार्मिक स्वतंत्रता दी जाए। सभी मंदिरों को तत्काल सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए ताकि उनकी शुद्धता का ध्यान रखा जा सके। इस मामले को लेकर विभिन्न संगठन, नागरिक समाज और राजनीतिक हस्तियां एकजुट होने लगी हैं। सार्वजनिक मंचों पर बहस हो रही है। विश्व हिंदू परिषद भी इस मामले में आगे आया है और वह भी इस मांग के लिए संकल्प ले चुका है कि वह इसके लिए आंदोलन तक करेगा।

मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है और एक के बाद एक कई याचिकाएं इसके लिए दायर हो चुकी हैं। कुछ याचिकाओं में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिंदुओं के साथ धार्मिक भेदभाव को खत्म करने की अपील की गई है।


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