Top
Begin typing your search above and press return to search.

राहुल के पुंछ दौरे के बाद मोदी से उनकी सीधी तुलना!

यह जो कोर इशु है राष्ट्रवाद वह जब छद्म राष्ट्रवाद में भी परिवर्तित हो जाता है तब भी जनता की आंख नहीं खुलना चिन्ता की बात है

राहुल के पुंछ दौरे के बाद मोदी से उनकी सीधी तुलना!
X

- शकील अख्तर

यह जो कोर इशु है राष्ट्रवाद वह जब छद्म राष्ट्रवाद में भी परिवर्तित हो जाता है तब भी जनता की आंख नहीं खुलना चिन्ता की बात है। और पहलगाम ही घटना नहीं है। पहलगाम तो शुरूआत थी। उसके बाद अचानक सीजफायर सबसे बड़ा झटका थी। वाकई इतना बड़ा कि 11 साल में बने अंध भक्त भी हिल गए। बीजेपी और आरएसएस में भी बैचेनी फैल गई। अमेरिका की मध्यस्थता नहीं। सीधा आदेश।

क्या यह बात सही साबित हो रही है कि यथा प्रजा तथा राजा! सिद्धान्त: यह बात नहीं मानी जाना चाहिए। एक तो राजशाही की कहावत है। कर्मों के फल के सिद्धांत से बनी है। दूसरे शासक से ज्यादा जनता को आरोपित करती है। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च होती है। लेकिन आज जो दिख रहा है वह ऐसा लगता है कि जैसे हम लोग ही, जनता ही राहुल के योग्य नहीं हैं!

हम इसी को डिजर्व करते हैं जो पहलगाम के बाद हो रहा है। 11 साल में बड़ी-बड़ी घटनाएं हुईं। मगर कोई बड़ी नाराजगी, गुस्से, आक्रोश की लहर नहीं दिखी। बड़ी घटनाओं से आशय उनसे नहीं जिसे मोदी महत्व ही नहीं देते। जैसे नोटबंदी, कोरोना में सरकार का हाथ खड़े करना या बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी चिकित्सा, शिक्षा खतम करना और दूसरे तमाम आर्थिक रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े सवाल।

बड़े मामले वह जो मोदी के कोर इशु राष्ट्रवाद से जुड़े हैं। जिस राष्ट्रवाद के नाम पर बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करके, काल्पनिक आशंकाएं दिखाकर वे हर बार वोट लेते हैं। भैंस छीन ले जाने से लेकर मंगलसूत्र छीन ले जाने तक।

और वह मंगलसूत्र उन्हीं के राज में एक साथ 26 महिलाओं का छिन गया। पहलगाम। 370 हटाने से आंतकवाद खत्म हो गया है और उससे पहले नोटबंदी से हो गया था। बहुत सारी बातें। लोगों को खुद याद करना चाहिए।

तो ऐसी बड़ी बातें कोई सुरक्षा कवच तो बनाती नहीं केवल लोगों के मन में मोदी की बड़ी और बड़ी शक्ति को ही स्थापित करने की कोशिश करती हैं। मोदी का सारा जोर ऐसी ही बातों पर होता है। अभी आपने देखा गरम सिंदूर अपने लहू में बता दिया!

तो यह जो कोर इशु है राष्ट्रवाद वह जब छद्म राष्ट्रवाद में भी परिवर्तित हो जाता है तब भी जनता की आंख नहीं खुलना चिन्ता की बात है। और पहलगाम ही घटना नहीं है। पहलगाम तो शुरूआत थी। उसके बाद अचानक सीजफायर सबसे बड़ा झटका थी। वाकई इतना बड़ा कि 11 साल में बने अंध भक्त भी हिल गए। बीजेपी और आरएसएस में भी बैचेनी फैल गई। अमेरिका की मध्यस्थता नहीं। सीधा आदेश। प्रेसिडेन्ट ट्रंप यह कहते हुए दिखे कि मैंने दोनों से कह दिया कि युद्ध बंद करो। नहीं तो मैं बिजनेस बंद कर दूंगा। स्टाप इट . . . स्टाप इट साफ कहते दिखे। दोनों को एक समान मानकर। एक बार भी आतंकवादी नहीं कहा। अब तो लोगों ने शायद गिनना भी बंद कर दिया। लास्ट हमने जो देखा वह 9 बार बता रहे थे कि ट्रंप ने बोला। और हमारे प्रधानमंत्री ने एक बार भी विरोध नहीं किया कि यह किस भाषा में बोल रहे हैं। पाकिस्तान आतंकवादी भेज रहा है और आप उसे और हमें एक समान बता रहे हैं।

नहीं बोले मोदी! तो क्या फिर भी लोगों के मन में सवाल नहीं उठता कि यह कैसा राष्ट्रवाद है जो राष्ट्र पर हमले, राष्ट्र के अपमान पर भी कुछ नहीं बोलना?
गलवान में क्या हुआ था? चीन अंदर घुसा हमारे 20 जवानों को शहीद किया और वहीं कब्जा करके बैठ गया। और हमारे प्रधानमंत्री ने क्या कहा कि न कोई घुसा है और न कोई है! लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक वह अंदर बैठा हुआ है।

सड़कें बनाना, पक्के निर्माण करना, गांव बसाना, हमारी जगहों के नाम बदलना क्या नहीं कर रहा है? लेकिन मोदी मौन हैं! यह तो हुआ एक पक्ष कि कैसे मोदी अपने राष्ट्रवाद के मुख्य नारे या उनकी भारी शब्दावली में तो अपने मुख्य संकल्प की रक्षा भी नहीं कर पा रहे। शब्दों से होती भी नहीं है! नहीं तो डिक्शनरी ही सबसे बड़ा साहित्य या वीर रस का महाकाव्य होता!

दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हैं। हर जगह अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए। और सबसे बड़ी बात उपहास, अपमान के बाद भी। कृष्ण के इस उपदेश को तो लगता है उन्होंने ही सबसे ज्यादा आत्मसात किया है-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचना ! फल की इच्छा से दूर। और दूसरी तरफ देखिए यहां अभी तक पता नहीं चला है कि पहलगाम के आतंकवादी कौन थे लेकिन आपरेशन सिंदूर के नाम पर वोट मांगना शुरू कर दिए। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा में हमारे 46 जवान कैसे मारे गए थे यह भी आज तक पता नहीं चला मगर उसके नाम पर भी वोट मांग लिए गए थे।

लेटेस्ट ( नवीनतम) अभी राहुल गांधी पुंछ गए। पाकिस्तान ने यहां नागिरक क्षेत्रों पर भारी गोलाबारी की थी। 16 लोग मारे गए थे। 100 के करीब घायल हुए थे। मकान खंडहरों में बदल गए। गुरुद्वारे तक को नहीं छोड़ा। राहुल हर जगह गए। गुरुद्वारे जहां एक बुजुर्ग सरदार जी राहुल से कह रहे हैं कि मोदी यहां नहीं आए। पुंछ का नाम तक नहीं लिया। आपसे हमें बड़ी उम्मीदें हैं। देश को भी हैं। 11 साल की जाने कितनी घटनाएं हैं जहां राहुल लोगों के दु:ख दर्द में शामिल होने पहुंचे। नहीं लिख रहे। जनता को खुद याद करना चाहिए। और जनता को अगर याद नहीं रहता है तो फिर वही बात कि वह अच्छे और बुरे में फर्क ही नहीं करती है। उसे बहलाने वाला कि अच्छे दिन आएंगे, नारी पर वार नहीं होगा, 15 लाख खाते में आएंगे, इतने करोड़ रोजगार हर साल मिलेंगे, मेरे शासन में जन्म लेना सम्मान जैसी बातें ही पसंद है!

यह सवाल पूछने वाला नहीं कि इतनी सरकारी नौकरियां खाली पड़ी हैं युवाओं को क्यों नहीं दी जा रहीं? करीब दस लाख तो केन्द्र सरकार ने 2023 में लोकसभा में माना था कि पद रिक्त पड़े हैं। और 2024 में राहुल ने कहा 30 लाख पद। जिन्हें उन्होंने भरने का वादा किया था। पूरे देश को जोड़ने वाली दो भारत यात्राएं की। लेकिन हमने उपर ही कहा कि नहीं लिख रहे। अगर खुद महसूस नहीं कर रहे तो लिखने से भी फायदा क्या?

अभी तो एक महीना हुआ। पहलगाम की घटना को हुए। अगर वही भूल गए तो 11 साल का लेखा-जोखा लिखने से फायदा क्या?

दोनों विदेश में थे। राहुल अमेरिका से दौरा छोड़कर लौटे। सीधे सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में। पहलगाम में मारे गए पर्यटकों के लिए शोक प्रस्ताव, मौन। शाम को इन्डिया गेट। केंडल लाइट लेकर श्रद्धांजलि। आल पार्टी मीटिंग में। जिसमें खुद प्रधानमंत्री नहीं आए। दो आल पार्टी मीटिंग हुईं। दोनों बार प्रधानमंत्री नहीं आए। राहुल कश्मीर गए। वहां घायलों से मिले। कानपुर गए। मृतक के परिवार से मिले। हरियाणा के नरवाल परिवार से मिले और अभी पुंछ।

प्रधानमंत्री कहां गए? कोई पूछने वाला नहीं? अगर यह मीडिया पूछने वाला होता तो मोदी के राष्ट्रवाद का सारा नरेटिव ( झूठी कहानी) खतम हो जाता।
मगर यह मीडिया तो बीजेपी वाले कहते हैं कि राहुल पाकिस्तानी है तो उसे भी और बढ़ा चढ़ाकर चलाते हैं। देश में इस समय सबसे बड़ा अपराधी गोदी मीडिया है। ट्रंप जो एक बार भी

पाकिस्तान को आतंकवादी नहीं कह रहा उससे कोई सवाल नहीं कर रहे। और राहुल जो पाकिस्तान, आतंकवाद, चीन सबसे सवाल कर रहा है उसे सारी घटनाओं का जिम्मेदार बताने की कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन 11 साल में यह साफ हो गया कि इतनी कोशिशों, कहना चाहिए हर कोशिश के बाद भी यह राहुल को डरा, दबा नहीं पाए। तो क्या अब यथा प्रजा तथा राजा का मुहावरा बदलने का समय आ गया? यथा नेता तथा जनता होगा!

जनता भी राहुल के साथ उठ खड़ी होगी! जनता ऐसे ही होती रही है। इतिहास के हर मौके पर एक समय आता है जब जनता झूठ और भावनाओं के जाल से निकलकर सच और हिम्मत का रास्ता अख्तियार करती है। राष्ट्रवाद वही मुद्दा है जहां जनता मोदी से सबसे ज्यादा सफल होने की उम्मीद करती थी। और वहीं उसे सबसे ज्यादा निराशा हुई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it