मंगलसूत्र के बाद सिंदूर, नाम में बहुत कुछ रखा है
शेक्सपियर साहब भारत में होते तो शायद कभी न लिख पाते कि नाम में क्या रखा है, क्योंकि यहां तो बड़े सियासी खेल नाम के बूते ही खेले जाते हैं

- सर्वमित्रा सुरजन
भारतीय संदर्भ में नाम कई तरह से प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो ही जाता है, इसलिए शेक्सपियर कम से कम यहां नहीं लिख पाते कि गुलाब को गुलाब न कहो, तब भी वह खुशबू देगा। ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई बिना इस नाम के भी उतनी ही असरकार होती, लेकिन अभी उससे जो भावनात्मक मजबूती महसूस की जा रही है, यह शायद नाम का ही असर है।
शेक्सपियर साहब भारत में होते तो शायद कभी न लिख पाते कि नाम में क्या रखा है, क्योंकि यहां तो बड़े सियासी खेल नाम के बूते ही खेले जाते हैं। दुश्मनों को जवाब देने में भी कौन से नाम का क्या असर पड़ेगा, इसकी रणनीति भी तैयार होती है। तो कम से कम भारत के संदर्भ में देखें तो नाम में बहुत कुछ रखा है।
मंगलवार और बुधवार की दरमियानी रात जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान में बने 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया तो उसके लिए नाम चुना गया ऑपरेशन सिंदूर। भारतीयों के लिए सिंदूर महज एक रासायानिक पदार्थ वर्मिलियन नहीं है, बल्कि इसका सांस्कृतिक, धार्मिक और भावनात्मक महत्व है। हिंदू धर्म में बिना सिंदूर के विवाह संपन्न नहीं होता और विवाहिताएं तब तक सिंदूर लगाती हैं, जब तक उनका सुहाग बना रहता है, यानी जब तक पति जीवित है, विवाहिता मांग में सिंदूर भरती है। लेकिन पति की मौत के बाद सिंदूर नहीं लगाया जाता, इसलिए विधवा होने के लिए मांग उजड़ना जैसे मुहावरों का इस्तेमाल होता है। पौराणिक कथाओं में देवियों के श्रृंगार में सिंदूर शामिल था ही, लेकिन ऐतिहासिक तौर पर देखें तो गुप्त काल (लगभग 320-550 ई.) तक सिंदूर विवाह अनुष्ठानों से पूरी तरह जुड़ गया।
हमारी फिल्मों में कई भावुक दृश्यों में सिंदूर के जरिए नारी शक्ति या सुहाग की ताकत को दिखाया गया। फिल्म ओम शांति ओम का तो संवाद ही बेहद चर्चित हो गया था, जिसमें दीपिका पादुकोण कहती हैं- एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू, ईश्वर का आशीर्वाद होता है एक चुटकी सिंदूर, सुहागन के सिर का ताज होता है एक चुटकी सिंदूर, हर औरत का ख्वाब होता है एक चुटकी सिंदूर। इस फिल्म के लिए मयूर पुरी ने जब ये संवाद लिखा होगा तो उन्हें अनुमान भी नहीं रहा होगा कि यह न केवल कई मौकों पर अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया जाएगा, बल्कि लगभग 2 दशक बाद इसे आतंकवाद का जवाब देने पर भी दोहराया जाएगा। इसी फिल्म में मयूर पुरी ने एक और संवाद लिखा था कि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। और बुधवार को यह संवाद भी लोगों को याद आ गया जब पूर्व सेनाध्यक्ष मनोज नरवणे ने ट्वीट किया कि पिक्चर अभी बाकी है। दरअसल जनरल मनोज नरवणे ने संकेत दिए कि पाकिस्तान को अभी पहला सबक ही सिखाया है, अभी इसके आगे आतंकवाद के कई और अड्डे भी तबाह होंगे। आगे और किस तरह के नामों के तहत सैन्य कार्रवाई होगी, ये देखना होगा। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर का नाम रखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बता दिया कि राजनैतिक चतुराई और रणनीतिक कौशल उनमें कूट-कूट कर भरा है।
याद कीजिए, लोकसभा चुनावों के वक्त प्रचार रैलियों का, जिनमें नरेन्द्र मोदी ने मंगलसूत्र छीनने का आरोप विपक्ष पर लगाया था और महिला मतदाताओं को यही कहकर अपनी तरफ करने की कोशिश की थी कि भाजपा ही है जो उनके मंगलसूत्र की रक्षा कर सकती है। श्री मोदी के ऐसे बयानों की पय़ार्प्त आलोचना हुई और सवाल उठे कि वे किस तरह मंगलसूत्र को चुनावी मुद्दा बना सकते हैं। अब मंगलसूत्र के बाद नरेन्द्र मोदी ने सिंदूर का प्रतीक अपनी रणनीति में शामिल किया है और कमाल देखिए कि इस बार विपक्ष सवाल नहीं उठा रहा, बल्कि सरकार के साथ खड़े होने का दावा कर रहा है। ऐसा होना भी था, क्योंकि विपक्ष आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार के साथ है। इस ऑपरेशन का नाम सिंदूर न रखकर अ ब स कुछ भी रखा जाता, तब भी विपक्ष का रवैया यही रहता। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने सिंदूर नाम के ऑपरेशन से दूरगामी बाजी जीतने का दांव चल दिया है। पहलगाम हमले में आतंकियों ने पुरुषों को खास तौर पर निशाना बनाया था और खबरें थीं कि उनसे धर्म भी पूछा गया था। इस लिहाज से व्याख्या करें तो हिंदू स्त्रियों की मांग से सिंदूर उजाड़ने का काम आतंकियों ने किया और इसका जवाब देते हुए ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने आतंकियों के ठिकानों को उजाड़ दिया।
दो हफ्तों से देश इंतजार कर रहा था कि कब सरकार पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी। इस इंतजार में देश के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का बहाना विघ्नसंतोषियों को मिला और कई कश्मीरी नागरिकों व मुस्लिमों को जबरन प्रताड़ित किया गया। इस पर शहीद नेवी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल ने अपील भी की थी कि आतंकियों से बदला लें, लेकिन किसी को धर्म के नाम पर न सताएं। गौरतलब है कि हिमांशी नरवाल पहलगाम हमले में विधवा हुईं थीं, 16 अप्रैल को उनका विवाह हुआ था और 22 अप्रैल को उनके पति को आतंकियों ने मार दिया। उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई, जिसमें वे स्तब्ध अपने पति के शव के पास बैठी हैं। लेकिन इस घटना के बाद भी हिमांशी नरवाल ने हिम्मत का परिचय दिया और अपना दर्द बर्दाश्त करते हुए यही अपील की कि किसी निर्दोष को दर्द न मिले। कायदे से इस बात पर उनकी जी खोलकर सराहना होनी चाहिए थी लेकिन कुंठित सोच और नफरती कुनबे में बदल रहे समाज की तरफ से उन पर ऐसे-ऐसे लांछन लगाए गए जिनकी निंदा करने के लिए शब्द नहीं हैं।
विनय नरवाल की श्रद्धांजलि सभा में जब हिमांशी नरवाल लोगों से मिल रही थीं तो उनके चेहरे पर जूम कर वीडियो बनाए गए कि उनकी आंखों में दर्द नहीं है। किसी ने लिखा कि ये इतनी आराम से कैसे खड़ी है, जबकि इसका सुहाग उजड़े 20 दिन भी नहीं हुए। एक ट्रोलर ने तो हिमांशी पर आतंकियों से मिले होने तक का बेहूदा इल्जाम लगा दिया कि अपने पति को मरवाने में उसने साथ दिया और अब सरकार से मुआवजा लेकर वह अपने किसी कश्मीरी दोस्त से शादी कर लेगी। यानी जिसकी जैसी मर्जी हुई उसने हिमांशी नरवाल पर कीचड़ उछाला। हालांकि ऐसा करने वालों से ये नहीं देखा कि उन्होंने कितनी हिम्मत से अपने दर्द को समेटा है और समाज को एकजुट रखने की अपील की है। यह देखकर काफी अफसोस हुआ कि हरियाणा या केंद्र की भाजपा सरकार के किसी व्यक्ति ने ऐसे ट्रोलर्स को गलत नहीं कहा या खुलकर हिमांशी नरवाल के साथ वे खड़े हुए। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी ट्वीट कर टोलर्स की बात को गलत तो कहा, लेकिन सरकार से ऐसी कोई अपील नहीं की कि हिमांशी नरवाल पर कीचड़ उछालने वालों के सोशल मीडिया एकाउंट पर प्रतिबंध लगे। क्या ऐसे लोगों से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा नहीं था, यह सवाल अब भी सरकार के सामने है।
बहरहाल मंगलवार को हिमांशी नरवाल से मिलने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उनके करनाल स्थित घर पहुंचे। और मंगलवार की आधी रात को ही जब ऑपरेशन सिंदूर किया गया तो इसे हिमांशी समेत उन तमाम महिलाओं की उजड़ी मांग का बदला माना गया, जिनके पति पहलगाम हमले में मारे गए। इस लिहाज से ऑपरेशन सिंदूर इस कार्रवाई के लिए एक सटीक नाम माना जा रहा है और यहां श्री मोदी ने अपने रणनीतिक अंक बढ़वा लिए हैं। इस ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी देश और दुनिया को जब बुधवार सुबह औपचारिक तौर पर दी गई तो इसमें भी विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री के साथ कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने विस्तृत जानकारी दी कि किस तरह पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को चिन्हित किया गया, किस ठिकाने पर कौन से आतंकी संगठन का अड्डा था और पूरे ऑपरेशन में कितना वक्त लगा आदि।
सेना और सरकार की तरफ से यह भी एक माकूल कदम था कि दो महिला सैन्य अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी दी गई। हालांकि सेना में धर्म की पहचान गौण हो जाती है और कर्तव्यपरायणता ही सर्वोपरि रहती है, लेकिन फिर भी कर्नल सोफिया कुरैशी का सामने होना पाकिस्तान को कड़ा संदेश था और साथ ही देश के भीतर बैठे उन अराजक तत्वों को भी नसीहत थी कि धर्म के आधार पर विभाजन करने की कोशिश न की जाए, क्योंकि जब दुश्मनों को जवाब देने की बारी आती है तो भारतीय सेना में शामिल सारे धर्मों के लोग एक साथ मिलकर जवाब देते हैं। सोफिया का मतलब होता है बुद्धि और व्योमिका मतलब है आकाश की बेटी या आकाश में रहने वाली और दिलचस्प संयोग रहा कि भारतीय सेना ने बुद्धि और साहस दोनों के मेल से आकाश के जरिए ही आतंकियों को सबक सिखा दिया है।
भारतीय संदर्भ में नाम कई तरह से प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो ही जाता है, इसलिए शेक्सपियर कम से कम यहां नहीं लिख पाते कि गुलाब को गुलाब न कहो, तब भी वह खुशबू देगा। ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई बिना इस नाम के भी उतनी ही असरकार होती, लेकिन अभी उससे जो भावनात्मक मजबूती महसूस की जा रही है, यह शायद नाम का ही असर है।


