Top
Begin typing your search above and press return to search.

कर्नाटक के बाद प्रियंका ने उठाया मध्यप्रदेश का बीड़ा

कर्नाटक के बाद प्रियंका गांधी का खौफ बढ़ गया

कर्नाटक के बाद प्रियंका ने उठाया मध्यप्रदेश का बीड़ा
X

- शकील अख्तर

नफरत और विभाजन का एक और भयानक रूप महिला पहलवानों की पीड़ा में देखिए। किसी भी देश समाज में मजबूती का प्रतीक पहलवान हमेशा से होते आए हैं। मगर आज यह पहली बार है कि पहलवानों को वह भी महिला पहलवानों को घेर कर हराया जा रहा है। वह भी अखाड़े के बाहर!

कर्नाटक के बाद प्रियंका गांधी का खौफ बढ़ गया। उनके जबलपुर पहुंचने से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी सबसे बड़ी स्कीम लाडली बहना को लेकर जबलपुर पहुंच गए। वहां से उन्होंने अपनी इस योजना को लांच किया। जबलपुर से ही कांग्रेस का चुनाव अभियान शुरू हो रहा है और इसके लिए कमलनाथ ने बिल्कुल सही व्यक्ति का चुनाव किया। उन प्रियंका गांधी का जो पिछले चार सालों में कांग्रेस को मिले दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की जीत का निर्णायक फेक्टर थीं। 2018 के अंत में कांग्रेस ने तीन राज्य जीते थे। फिर लंबे सूखे के बाद पिछले साल के अंत में हिमाचल और अब कर्नाटक जीता है। दोनों राज्यों के चुनावों में मेन स्ट्राइकर प्रियंका रहीं।

इसलिए उनके जबलपुर आकर कांग्रेस के चुनाव अभियान की शुरूआत करने की खबर ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को बेचैन कर दिया। मध्यप्रदेश में इस बार चुनाव बिल्कुल उल्टा है। इससे पहले वहां कांग्रेस गुटों में बंटी होती थी और भाजपा पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ती थी। इस बार कांग्रेस एक है। दोनों बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह मिलकर काम कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी में यह पहली बार है कि वहां पार्टी में गुट ही गुट हैं। दिग्विजय के शब्दों में तीन भाजपा हैं। शिवराज भाजपा, महाराज भाजपा और नाराज भाजपा।

पार्टी जब कमजोर होती है तो उसके अन्तर्विरोध सामने आने लगते हैं। यही इस समय मध्यप्रदेश भाजपा में हो रहा है। हर जगह से विद्रोह और नाराजगी की खबरें आ रही हैं। प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की कोई हैसियत नहीं है। दरअसल उनके प्रभाव पर तो उसी दिन ग्रहण लग गया था जब उनकी पत्नी को भाजपा के लोगों ने ही इतना ट्रोल किया था कि उन्हें अपना ट्वीट डिलिट करना पड़ा था।

वह एक सामान्य मानवीय मामला था। मगर जिस तरह भाजपा ने हर मामले को हिन्दू-मुसलमान के रंग में रंग दिया है उससे यह एक सामान्य शिष्टाचार की बात भी तूल पकड़ गई थी। हुआ यह था कि प्रदेश अध्यक्ष की पत्नी को रात को किसी दवा की जरूरत पड़ी। वे बाजार गईं तो सारी दुकानें बंद थीं। केवल एक मेडिकल की खुली थी। उसने दवाई दी और कहा कि दीदी इसके यह प्रभाव हैं। ध्यान रखिएगा। महिलाएं संवेदनशील ज्यादा होती हैं। उन्होंने आकर एक ट्वीट कर दिया कि दुकानदार ने कितने कन्सर्न से उन्हें यह बात बताई। कितना केयरिंग है।

अब मुख्य ट्विस्ट। दवा दुकान वाला मुसलमान था। भक्त टूट पड़े। मगर उनसे पहले भाजपा नेताओं ने घोर पाप, अनाचार! मुसलमान की सराहना। क्या-क्या नहीं कहा गया। इस आधार पर बिल्कुल नहीं बख्शा गया कि वे प्रोफेसर हैं। उनके पिता प्रमोद कुमार मिश्रा संघ से भी जुड़े हैं और शिक्षा क्षेत्र में भी नाम है। पति तो बचाव में ही नहीं आ पाए। आखिर डॉ. स्तुति मिश्रा ट्वीटर पर इसी नाम से थीं को ट्वीटर ही छोड़ना पड़ा।

मैसेज क्या है कि जहर इतना फैलाया जा चुका है कि इसमें इंसान का कोई स्कोप ही नहीं है। धर्म और जाति से ही सब तय होगा। मणिपुर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। गृह युद्ध बन गया है। कोई कुकी कितना ही बड़ा अफसर हो, पुलिस वाला हो अपने ही जातीय समूह में सुरक्षित है। इसी तरह दूसरा जातीय समूह मैतेई भी। मंदिर, चर्च तीन सौ के करीब जला दिए गए हैं। हथियार लूटे जाने की कोई सीमा नहीं है। महिलाओं बच्चों को जिन्दा आग में झोंका जा रहा है। कारण?

नफरत और विभाजन की राजनीति और इसे सबसे ज्यादा हवा देने वाला गोदी मीडिया खामोश है। मणिपुर के लोग यहां गृहमंत्री अमित शाह केघर के सामने आकर प्रदर्शन करते हैं। शायद पहली बार ऐसा है कि उनके घर के बाहर प्रदर्शन हुआ। मगर मीडिया कुछ नहीं देख रहा है। बस शुक्र इतना है कि उसने मणिपुर की हिंसा का दोष नेहरू पर नहीं लगाया। नहीं तो नेहरू पर लगाने का कारण तो बहुत सॉलिड था। वह नेहरू ही थे जिन्होंने मणिपुर का भारत में विलय करवाया था 1949 में। न होता बांस न बजती बांसुरी।

तो बात मध्यप्रदेश की हो रही थी और मेहरबानी इस नफरत और विभाजन की राजनीति की कि सीधे उत्तर पूर्व सीमावर्ती राज्य मणिपुर तक पहुंच गई।
विभाजन की कोई सीमा नहीं होती। जैसा ऊपर लिखा कि जो भाजपा हमेशा एक होती थी वह भी अब विभाजित हो गई है। नफरत चीज ही ऐसी है कि भाई-भाई में फर्क डाल देती है। फिर भाजपा का संगठन क्या चीज है।

इस नफरत और विभाजन का एक और भयानक रूप महिला पहलवानों की पीड़ा में देखिए। किसी भी देश समाज में मजबूती का प्रतीक पहलवान हमेशा से होते आए हैं। मगर आज यह पहली बार है कि पहलवानों को वह भी महिला पहलवानों को घेर कर हराया जा रहा है। वह भी अखाड़े के बाहर!

किन दांवों से? वही नफरत और विभाजन के। उन्हें एक खास जाति का एक खास प्रदेश का बताया जा रहा है। देश के लिए लड़ने वाली ओलंपिक से कुश्ती में पहला मेडल लाने वाली महिला पहलवान को रोज उसकी जाति और राज्य याद दिलाया जा रहा है। ब्रजभूषण शरण सिंह गिरफ्तार नहीं होगा अब यह साफ हो गया है। महिला पहलवान प्रधानमंत्री मोदी से लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और सुप्रीम कोर्ट तक हो आईं हैं। और उसके बाद उन्होंने कहा है कि सरकार उसे गिरफ्तार नहीं करना चाहती। कितनी निराशा में महिला पहलवानों के मुंह से यह शब्द निकले होंगे।

जरा सोचिए कि एक महिला की मन:स्थिति क्या होती है। निर्भया का भयानक हादसा होते ही सारे आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था। केन्द्र सरकार और कांग्रेस हर तरह से पीड़ित परिवार के साथ खड़े थे। आज अगर कोई अपनी आवाज उठाता है तो उसे आन्दोलनजीवी कहा जाता है। उस समय जब सरकार और कांग्रेस हर तरह से मदद कर रही थी। निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर पहुंचाया तब भी उस समय का विपक्ष और अन्ना हजारे रोज आंदोलन कर रहे थे। निर्भया की मां सब कुछ होने के बावजूद चिंता में रहती थीं। बोलती थीं। तो सोचिए आज उल्टा पहलवानों को ही दोषी ठहराए जाने उनसे यौन शोषण के सबूत मांगने, समझौते का दबाव डालने पर उन पर क्या बीतती होगी। यौन शोषण के मामले में आरोपी को अपनी सफाई देना होती है। यहां पीड़िताओं से ऑडियो और वीडियो मांगे जा रहे हैं!

देश आज पूरी तरह बदल चुका है और इसे ठीक से समझ कर ही प्रियंका ने प्रधानमंत्री मोदी को सीधे निशाने पर लिया था। उनकी एक बात का जवाब भाजपा नहीं दे पाई।

इसलिए उनके द्वारा मध्यप्रदेश में चुनावी अभियान के बिगुल फूंकने से भाजपा घबराई हुई है। खासतौर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह। ऐसा लग रहा है कि इस बार उन्हें अकेले ही लड़ना पड़ेगा। मेहनती वे बहुत हैं इसमें कोई शक नहीं। मगर अब माहौल उनके पक्ष में नहीं है। लेकिन एक बात में उनकी तारीफ करना पड़ेगी कि वे गिवअप ( हार नहीं मानते) नहीं करते। कांग्रेस ने अभी गुजरात चुनाव ऐसे ही छोड़ दिया था। मगर शिवराज जबलपुर पहुंच गए और वहां से अपनी सबसे उम्मीदों भरी योजना को लागू किया।

परिणाम क्या होंगे पता नहीं। मगर फिलहाल तो कांग्रेस प्रियंका को अपने लिए शुभ मान रही है। और इसी तरह नर्मदा को भी। यहां पहले नर्मदा पूजा करके ही प्रियंका चुनावी अभियान की शुरूआत करेंगी।

पिछली बार जब कांग्रेस जीती थी तो उससे पहले दिग्विजय सिंह ने साढ़े छह महीने की साढ़े तीन हजार किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा की थी। यह यात्रा बहुत दुर्गम होती है। सड़क नहीं होती। पगडंडियां, नदी, नाले, पहाड़, वन, समुद्र सब लांघने पड़ते हैं। लेकिन मान्यता है कि आशीर्वाद भी मिलता है। कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्यप्रदेश जीता था। इस बार परिस्थितियां और अनुकूल हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it