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आखिर नॉर्थ बंगाल में क्यों नहीं चला ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की रणनीति का जादू

 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में 213 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के बाद रणनीतिकार प्रशांत किशोर फिर सुर्खियों में हैं

आखिर नॉर्थ बंगाल में क्यों नहीं चला ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की रणनीति का जादू
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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में 213 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस की शानदार जीत के बाद रणनीतिकार प्रशांत किशोर फिर सुर्खियों में हैं। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सफलता में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी अहम भूमिका मानी जा रही है। हालांकि सूबे के अन्य हिस्सों की तुलना में टीएमसी और प्रशांत किशोर की रणनीति का जादू नॉर्थ बंगाल में अपेक्षित रूप से नहीं चल पाया। नॉर्थ बंगाल में टीएमसी पर भाजपा भारी पड़ी। उत्तर बंगाल की कुल 42 सीटों की जिम्मेदारी भाजपा ने प्रहलाद सिंह पटेल को दी थी, जिसमें उन्होंने 25 में जीत दिलाई । दार्जिलिंग जिले की सभी पांच की पांच सीटें भाजपा ने जीतीं। पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रशांत किशोर टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार रहे हैं। इससे पहले वह बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित कई पार्टियों के लिए भी काम कर चुके हैं। प्रशांत किशोर पहली बार चर्चा में आए जब वर्ष 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में वह नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति बनाने में जुटे थे। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में भी अपनी रणनीति के बलबूते प्रशांत किशोर ने बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

2016 में कांग्रेस ने पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर को अपना रणनीतिकार बनाया और उन्हें जीत मिली। इस जीत का क्रेडिट कई दिग्गज नेताओं ने प्रशांत किशोर को दिया। इसके बाद यूपी विधानसभा चुनाव में भी वो कांग्रेस के रणनीतिकार रहे लेकिन पार्टी बुरी तरह हार गई। 2020 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली में उन्होंने आम आदमी पार्टी के लिए काम किया और शानदार जीत दिलाई। अब एक बार फिर बंगाल चुनाव में उनकी रणनीति कामयाब हुई है। लेकिन उत्तर बंगाल में उनकी रणनीतियों प केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल की रणनीति भारी पड़ी। प्रहलाद सिंह पटेल उत्तर बंगाल की कुल 42 विधानसभा सीटों के प्रभारी रहे।

बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनाव में ने नार्थ बंगाल की कुल 8 लोकसभा सीटों में से 7 पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। बीजेपी की लोकसभा चुनाव में भारी सफलता देख ममता बनर्जी समेत वामदलों और कांग्रेस को भी झटका लगा था। भविष्य के खतरे को भांपते हुए और इस क्षेत्र में पार्टी की पकड़ मजबूत बनाने के लिए ममता ने इसकी जिम्मेदारी सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को सौंपी थी।

भाजपा के एक नेता ने कहा, बीजेपी की जीत में जनजाति बहुल इलाकों के वोटरों की अहम भूमिका रही थी इसलिए प्रशांत किशोर ने इन लोगों के बीच पैठ बनाने के लिए विशेषतौर से रणनीति तैयार की। इन इलाकों में लोगों से जुड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने छोटे-छोटे कार्यक्रम किए। ममता बनर्जी की अहम योजना 'द्वारे सरकार' के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को करीब 10 लाख जाति प्रमाणपत्र जारी किए गए। पार्टी में जान फूंकने के लिए स्थानीय नेताओं से जनसंपर्क अभियान में लगने को कहा गया और 'दीदी को बोलो' जनसंपर्क अभियान शुरू किया गया। इस क्षेत्र में विकास कार्यों की गति तेज कर दी गई ताकि विधानसभा चुनाव में तृणमूल की वापसी सुनिश्चित हो सके। गोरखा नेता बिमल गुरुंग को जोड़ा गया लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की सटीक रणनीति के सामने ये कवायदें सफल नहीं हुईं।

प्रहलाद सिंह पटेल के प्रभार वाली 42 सीटों में से बीजेपी ने 25 विधानसभा पर भारी मतों से जीत हासिल की। दार्जिलिंग और अलीपुरद्वार में तो तृणमूल खाता तक नहीं खोल पाई। बंगाल में बीजेपी के 3 से 77 तक के सफर में इन 25 सीटों का बहुत अहम योगदान है। खास बात है कि दार्जिलिंग जिले की सभी पांच की पांच सीटें भाजपा ने जीतीं।


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