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आखिर उमा भारती को सक्रिय राजनीति में आने से रोक कौन रहा है!

देश की सियासत में उमा भारती की पहचान तेजतर्रार नेता के तौर पर रही है

आखिर उमा भारती को सक्रिय राजनीति में आने से रोक कौन रहा है!
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भोपाल। देश की सियासत में उमा भारती की पहचान तेजतर्रार नेता के तौर पर रही है। वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और विधायक भी रह चुकी हैं, मगर इन दिनों सक्रिय राजनीति से दूर हैं, अब वे सक्रिय राजनीति में लौटने की इच्छा जता रही हैं । सवाल यह उठता है कि आखिर उन्हें सक्रिय राजनीति में आने से रोक कौन रहा है।

उमा भारती उन नेताओं में से एक हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश की दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंका था और वर्ष 2003 में हुए विधानसभा के चुनाव में भाजपा को जीत दिलाई थी। उमा भारती इसके बाद राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं, मगर हुबली के तिरंगा प्रकरण की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और उसके बाद से वे मध्य प्रदेश की सियासत में ताकतवर तरीके से भाजपा में नहीं लौट पाई, हां यह बात अलग है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश से जाकर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ा, उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया गया।

उमा भारती कई बार भाजपा के मंच पर तो सक्रिय नजर आईं, मगर सियासी तौर पर उनकी सक्रियता कम होती गई और वे गंगा के संरक्षण के अभियान में लगी रहीं। मंगलवार को उमा भारती ने एक साथ कई ट्वीट किए और फिर सक्रिय राजनीति में लौटने की इच्छा जताई है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा है, "मेरी इच्छा थी कि मुझे भाजपा संगठन में जिम्मेवारी मिले। मैं स्वतंत्र चेतना के साथ गंगा किनारे एवं हिमालय में विचरण कर सकूं। मैं 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहती हूं। इस बीच का समय मैं भाजपा संगठन, हिमालय एवं गंगा को देना चाहती हूं।"

उमा भारती के इस ट्वीट के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है और कई मायने निकाले जाने लगे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का मानना है कि, उमा भारती वास्तव में कभी सन्यासी तो रही नहीं, उन्होंने भी सत्ता को करीब से देखा है, साथ ही वे अपने समर्थकों को यह संदेश देना चाहती हैं कि वे अभी भी सक्रिय हैं। साथ ही उनकी कहीं न कहीं पार्टी पर दवाब बनाने की भी कोशिश है। इसके बावजूद इस बात की संभावना है कि पार्टी कोई महत्व देगी।

मिश्रा साथ ही सवाल करते हैं कि क्या भाजपा की एक लॉबी उन्हें सक्रिय राजनीति में लौटने देगी, कोई चुनाव लड़ने देगी, क्योंकि उनकी सक्रियता बढ़ने का मतलब है, कई राजनेताओं खासकर मध्य प्रदेश के नेताओं के भविष्य पर खतरा मंडराना। ऐसी स्थिति मंे उमा भारती की इच्छा पूरी हो पाएगी, यह आसान नहीं लगता।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केके मिश्रा ने भी ट्वीट कर उमा भारती के राजनीति में लौटने और चुनाव लड़ने की इच्छा पर तंज कसा है और कहां है "दीदी उमा भारती जी ने 'गंगा सप्तमी' को 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, बेलगाम घोड़ों पर लगाम के लिए यह जरूरी है, पर दीदी गंगा के बुलावे पर बनारस पहुंचे उस पुत्र (?) से भी गंगा में तैर रही अनगिनत लाशों की कैफियत भी ले लीजिए?"

जानकारों की मानें तो, "भाजपा के पास उमा भारती सहित अन्य भगवाधारी लोगों की जगह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा चेहरा मिल चुका है और पुरानी पीढ़ी के कट्टर समर्थकों को किनारे किया जा चुका है तो फिर पार्टी का वर्तमान नेतृत्व उमा भारती जैसे नेताओं को फिर से जगह क्यों देगा, यह बड़ा सवाल है। यही लोग हैं जो उमा भारती का रास्ता रोके हुए हैं और वे इसे जान भी चुकी हैं। "


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