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अफगानिस्तान: युद्धग्रस्त गांव में दोबारा आशियाना बनाने की कोशिश

केंद्रीय शहर गजनी की सड़क के किनारे स्थित अफगान गांव अरजू कई वर्षों से युद्ध का मैदान रहा है.

अफगानिस्तान: युद्धग्रस्त गांव में दोबारा आशियाना बनाने की कोशिश
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युद्धग्रस्त अफगान गांव अरजू में आर्थिक संकट के चलते जावेद ने अपना घर बनाने की उम्मीद छोड़ दी है. तालिबान लड़ाके इस छोटे से गांव में और उसके आसपास सरकारी बलों से पांच बार लड़ चुके हैं. जावेद के मुताबिक, "दिन-रात फायरिंग होती रही और हमारा घर फायरिंग के बीच में था." जावेद और उनका परिवार अभी भी अपने रिश्तेदार के घर में शरण ले रहा है. उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे अपना घर बना सकें.

अपनी दुकान को फिर से पटरी पर लाने के लिए उन पर पहले से ही लगभग 1,60,000 अफगानी का बकाया है. जावेद चाहते हैं कि कोई एनजीओ या सरकार उसकी मदद करे. इस साल भीषण लड़ाई लड़ने के बाद अरजू गांव के कुछ बचे लोगों ने भी जून में घर छोड़ दिया. दो महीने बाद, अफगानिस्तान तालिबान के हाथ में आ गया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा संपत्ति फ्रीज करने से आर्थिक संकट पैदा हो गया. इस समस्या के साथ-साथ विनाशकारी सूखे ने भी भोजन की गंभीर कमी पैदा कर दी.

संघर्ष की कीमत चुकाते गांववाले
अफगानिस्तान में दो दशक से चल रहे संघर्ष का खामियाजा अरजू जैसे ग्रामीण इलाकों को भुगतना पड़ा है. नाटो, अमेरिकी सैनिकों, अफगान सरकार और तालिबान के बीच लड़ाई में हजारों नागरिक मारे गए हैं. शांति की स्थापना के साथ कुछ परिवार अब धीरे-धीरे अरजू लौट रहे हैं और अपने घरों के पुनर्निर्माण की कोशिश कर रहे हैं.

अरजू गांव की 55 वर्षीय लेलोमा ने अपनी बेटी को अफगान बलों और विद्रोहियों के बीच गोलीबारी में खो दिया. उनके पति के सिर में गोली लगी थी, लेकिन वह अब काम नहीं कर सकता. पहली बार जब उनका घर किसी युद्ध में नष्ट हुआ, तो उन्होंने इसे फिर से बनाया, लेकिन इस बार उनके पास इसकी मरम्मत के लिए पैसे नहीं हैं.

कर्ज चुकाने के लिए नहीं पैसे
स्थानीय लड़कियों के स्कूल में शिक्षक 65 वर्षीय रफीउल्लाह ने कहा कि लड़ाई के दौरान उनकी बेटी की गोली लगने से मौत हो गई. हालांकि स्कूल में कक्षाएं फिर से शुरू हो गई हैं और रफीउल्लाह अपने छात्रों के बीच लौटकर खुश तो हैं लेकिन वे अपनी बेटी के खोने का गम नहीं भुला पाए हैं. स्कूल का नीला गेट दर्जनों गोलियों से छलनी है, खिड़कियां टूट गईं हैं और दीवारें गोला-बारूद से दगी हुईं हैं. हाल के युद्ध में इस गांव के 40 नागरिक मारे जा चुके हैं.

गांव के रहने वाले नकीब अहमद कहते हैं, "अब हम खेती नहीं कर सकते और न ही अपने मवेशियों का इस्तेमाल कर सकते हैं. वे अब जा चुके हैं. उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है." सर्दियों के लिए खाद्य भंडार नहीं होने के कारण कुछ लोग गजनी या पाकिस्तान और ईरान में दिहाड़ी करने की कोशिश करते हैं. लेकिन कई लोग केवल सरकारी मदद या अंतरराष्ट्रीय सहायता की उम्मीद कर रहे हैं. अहमद कहते हैं, "हमारे पास जीवित रहने का और कोई रास्ता नहीं है. कई परिवारों पर कर्ज है और वे उन्हें चुका नहीं सकते."


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